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कोरोना संकट में जौनपुर पहुंचे 3 लाख प्रवासी मजदूर, बन रहे आत्मनिर्भर - Migrant laborers are becoming self reliant

कोरोना वायरस महामारी ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं को ध्वस्त कर दिया है. ऐसे में शहरों से अपने गांव लौटे प्रवासी मजदूर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'लोकल पर वोकल' के नारे से प्रेरित होकर आत्मनिर्भर बन रहे हैं.

मजदूर बन रहे आत्मनिर्भर
मजदूर बन रहे आत्मनिर्भर
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Published : Jun 20, 2020, 3:02 PM IST

जौनपुर: विश्व में फैले नोवेल कोरोना वायरस ने देश के निचले तबके के लोगों के सामने रोजगार का बड़ा संकट खड़ा कर दिया है. लॉकडाउन में नौकरी छूटने के चलते लाखों की तादाद में प्रवासी मजदूरों ने अपने घर की तरफ पलायन किया. अब तक दूसरे राज्यों में फैक्ट्रियों में काम करके अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करते थे. लेकिन कोरोना महामारी ने उनसे ये भी छिन लिया. कुछ दिनों तक लॉकडाउन में संघर्ष करने के बाद अब श्रमिक अपने अपने जिले में ही काम शुरू करने का प्रयास कर रहे हैं.

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लोकल-वोकल की बात अब श्रमिक फॉलो कर रहे हैं. पीएम के इसी बात से प्रेरित होकर यूपी के जौनपुर में कई प्रवासी मजदूर अपने घरों के पास में ही चाय की दुकान, सब्जियों की ठेलिया लगाकर और भुट्टे बेचकर अपना परिवार चला रहे हैं. इस मुश्किल घड़ी में इन मजदूरों के पास एक मात्र यही रोजगार पाने का साधन दिख रहा है.

प्रवासी मजदूर आत्मनिर्भर बनने के लिए कर रहे हैं प्रयास

अपने गांव में ही शुरू की मजदूरी
लॉकडाउन के शुरूआती दिनों से अब तक जौनपुर में करीब 3 लाख प्रवासी मजदूर अपने घरों को लौटे हैं. इनके पास न तो कोई रोजगार था और ना ही घर चलाने के पैसे. लॉकडाउन में कुछ दिनों तक तो जैसे-तैसे गुजारा हो सका. लेकिन अब समस्या होने लगी. ऐसे में प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर बनने और लोकल पर वोकल के नारे ने कई प्रवासी मजदूरों को प्रेरित किया. जिले के तमाम मजदूर अपने घरों के आसपास ही दुकान और छोटा काम करके परिवार का पेट पाल रहे हैं.

परिवार चलाने के लिए बेच रहें भुट्टा
गुजरात के राजकोट से लौटे प्रवासी मजदूर भरत सोनकर बताते हैं कि लॉकडाउन में करीब डेढ़ महीने तक बड़ी मुश्किल से उन्होंने गुजारा किया. अब जब लॉकडाउन खुला है, तो उनके लिए मक्का ही परिवार के भरण-पोषण का सहारा बना है. भुट्टे की ठेलिया लगाकर वह रोजाना 200-300 रुपये कमा लेते हैं. इसी से उनके परिवार का भरण-पोषण हो रहा है.


कर्ज लेकर शुरू किया सब्जी का कारोबार

एक और मजदूर केराकत क्षेत्र स्थित घुड़दौड़ गांव के रहने वाले अशोक कुमार मुंबई में काम करते थे, लेकिन कोरोना वायरस के चलते उन्हें लौटना पड़ा. लॉकडाउन में बड़ी मुश्किल से उन्होंने कुछ समय तो काट लिया, लेकिन जब घर का खर्चा चलाना मुश्किल हो गया तो उन्होंने ब्याज पर कर्ज लेकर सब्जी का कारोबार शुरू किया. अब वह अपने गांव में ही घर-घर घूमकर सब्जी बेच रहे हैं. इसी से उनके परिवार का भरण पोषण हो रहा है.


पीएम के लोकल पर वोकल नारे से हुए प्रेरित

वहीं केराकत क्षेत्र निवासी दीपक वर्मा गुजरात के सूरत में काम करते थे. वहां पर कोरोना वायरस के चलते वह घर लौटे तो उनके सामने रोजगार की सबसे बड़ी समस्या हो गई. ऐसी स्थिति में उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या काम करें. लेकिन फिर उन्होंने प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर बनने और लोकल पर वोकल से प्रेरित होकर चाय और पान बेचने का काम शुरू कर दिया. आज इसी से उनका परिवार चल रहा है.

जौनपुर: विश्व में फैले नोवेल कोरोना वायरस ने देश के निचले तबके के लोगों के सामने रोजगार का बड़ा संकट खड़ा कर दिया है. लॉकडाउन में नौकरी छूटने के चलते लाखों की तादाद में प्रवासी मजदूरों ने अपने घर की तरफ पलायन किया. अब तक दूसरे राज्यों में फैक्ट्रियों में काम करके अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करते थे. लेकिन कोरोना महामारी ने उनसे ये भी छिन लिया. कुछ दिनों तक लॉकडाउन में संघर्ष करने के बाद अब श्रमिक अपने अपने जिले में ही काम शुरू करने का प्रयास कर रहे हैं.

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लोकल-वोकल की बात अब श्रमिक फॉलो कर रहे हैं. पीएम के इसी बात से प्रेरित होकर यूपी के जौनपुर में कई प्रवासी मजदूर अपने घरों के पास में ही चाय की दुकान, सब्जियों की ठेलिया लगाकर और भुट्टे बेचकर अपना परिवार चला रहे हैं. इस मुश्किल घड़ी में इन मजदूरों के पास एक मात्र यही रोजगार पाने का साधन दिख रहा है.

प्रवासी मजदूर आत्मनिर्भर बनने के लिए कर रहे हैं प्रयास

अपने गांव में ही शुरू की मजदूरी
लॉकडाउन के शुरूआती दिनों से अब तक जौनपुर में करीब 3 लाख प्रवासी मजदूर अपने घरों को लौटे हैं. इनके पास न तो कोई रोजगार था और ना ही घर चलाने के पैसे. लॉकडाउन में कुछ दिनों तक तो जैसे-तैसे गुजारा हो सका. लेकिन अब समस्या होने लगी. ऐसे में प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर बनने और लोकल पर वोकल के नारे ने कई प्रवासी मजदूरों को प्रेरित किया. जिले के तमाम मजदूर अपने घरों के आसपास ही दुकान और छोटा काम करके परिवार का पेट पाल रहे हैं.

परिवार चलाने के लिए बेच रहें भुट्टा
गुजरात के राजकोट से लौटे प्रवासी मजदूर भरत सोनकर बताते हैं कि लॉकडाउन में करीब डेढ़ महीने तक बड़ी मुश्किल से उन्होंने गुजारा किया. अब जब लॉकडाउन खुला है, तो उनके लिए मक्का ही परिवार के भरण-पोषण का सहारा बना है. भुट्टे की ठेलिया लगाकर वह रोजाना 200-300 रुपये कमा लेते हैं. इसी से उनके परिवार का भरण-पोषण हो रहा है.


कर्ज लेकर शुरू किया सब्जी का कारोबार

एक और मजदूर केराकत क्षेत्र स्थित घुड़दौड़ गांव के रहने वाले अशोक कुमार मुंबई में काम करते थे, लेकिन कोरोना वायरस के चलते उन्हें लौटना पड़ा. लॉकडाउन में बड़ी मुश्किल से उन्होंने कुछ समय तो काट लिया, लेकिन जब घर का खर्चा चलाना मुश्किल हो गया तो उन्होंने ब्याज पर कर्ज लेकर सब्जी का कारोबार शुरू किया. अब वह अपने गांव में ही घर-घर घूमकर सब्जी बेच रहे हैं. इसी से उनके परिवार का भरण पोषण हो रहा है.


पीएम के लोकल पर वोकल नारे से हुए प्रेरित

वहीं केराकत क्षेत्र निवासी दीपक वर्मा गुजरात के सूरत में काम करते थे. वहां पर कोरोना वायरस के चलते वह घर लौटे तो उनके सामने रोजगार की सबसे बड़ी समस्या हो गई. ऐसी स्थिति में उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या काम करें. लेकिन फिर उन्होंने प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर बनने और लोकल पर वोकल से प्रेरित होकर चाय और पान बेचने का काम शुरू कर दिया. आज इसी से उनका परिवार चल रहा है.

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