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कोरोनावायरस: हाथरस में विश्व टीबी दिवस पर होने वाले कार्यक्रम रद्द - hathras news

हर साल 24 मार्च को विश्व टीबी दिवस मनाया जाता है. इस बार कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए टीबी दिवस पर होने वाले कार्यक्रम रद्द कर दिए गए हैं.

जानकारी देते जिला क्षय रोग अधिकारी(डी टी ओ) अनिल सागर वशिष्ठ .
जानकारी देते जिला क्षय रोग अधिकारी(डी टी ओ) अनिल सागर वशिष्ठ .
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Published : Mar 24, 2020, 4:54 PM IST

हाथरस: हर साल 24 मार्च को विश्व टीबी दिवस मनाया जाता है, लेकिन इस बार टीबी दिवस पर होने वाले कार्यक्रम कोरोना वायरस संक्रमण के चलते नहीं हो रहे हैं. टीबी एक ऐसी बीमारी है, जिसके प्रति लोगों का जागरूक होना बहुत जरूरी है. हमारा देश भी इस बीमारी से अछूता नहीं रहा है. इस बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए सरकार के साथ-साथ कई स्वास्थ्य संस्थाएं भी काम कर रही हैं.

जानकारी देते जिला क्षय रोग अधिकारी अनिल सागर वशिष्ठ .
टीबी की बीमारी को छय रोग भी कहा जाता है. यह एक बड़ी संक्रामक बीमारी है. यह बीमारी माइक्रोबैक्टेरियम ट्यूबरक्लोसिस बैक्टीरिया (जीवाणु) के कारण होती है. टीबी अधिकतर फेफड़ों पर असर करती है. फेफड़ों में होने वाली टीबी को पल्मनेरी टीबी कहा जाता है. अगर यह शरीर के किसी दूसरे भाग में होती है तो उसे एक्स्ट्रा पल्मोनरी ट्यूबरक्लोसिस कहा जाता है. जिला क्षय रोग अधिकारी (डीटीओ) अनिल सागर वशिष्ठ ने बताया कि 24 मार्च को रॉबर्ट कोच जिन्होंने इस वैक्टीरिया की खोज की थी, उनकी याद में 1982 से विश्व टीबी दिवस मनाया जाता है. उन्होंने बताया कि टीबी एक संक्रामक रोग है. टीबी दो प्रकार की होती है. पल्मनेरी और एक्स्ट्रा पल्मोनरी ट्यूबरक्लोसिस. डीटीओ ने बताया कि ज्यादातर रोगी फेफड़ों की टीबी के होते हैं. उन्होंने उम्मीद जताई कि इस बीमारी को 2025 तक एलिमिनेट कर लिया जाएगा.

हाथरस: हर साल 24 मार्च को विश्व टीबी दिवस मनाया जाता है, लेकिन इस बार टीबी दिवस पर होने वाले कार्यक्रम कोरोना वायरस संक्रमण के चलते नहीं हो रहे हैं. टीबी एक ऐसी बीमारी है, जिसके प्रति लोगों का जागरूक होना बहुत जरूरी है. हमारा देश भी इस बीमारी से अछूता नहीं रहा है. इस बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए सरकार के साथ-साथ कई स्वास्थ्य संस्थाएं भी काम कर रही हैं.

जानकारी देते जिला क्षय रोग अधिकारी अनिल सागर वशिष्ठ .
टीबी की बीमारी को छय रोग भी कहा जाता है. यह एक बड़ी संक्रामक बीमारी है. यह बीमारी माइक्रोबैक्टेरियम ट्यूबरक्लोसिस बैक्टीरिया (जीवाणु) के कारण होती है. टीबी अधिकतर फेफड़ों पर असर करती है. फेफड़ों में होने वाली टीबी को पल्मनेरी टीबी कहा जाता है. अगर यह शरीर के किसी दूसरे भाग में होती है तो उसे एक्स्ट्रा पल्मोनरी ट्यूबरक्लोसिस कहा जाता है. जिला क्षय रोग अधिकारी (डीटीओ) अनिल सागर वशिष्ठ ने बताया कि 24 मार्च को रॉबर्ट कोच जिन्होंने इस वैक्टीरिया की खोज की थी, उनकी याद में 1982 से विश्व टीबी दिवस मनाया जाता है. उन्होंने बताया कि टीबी एक संक्रामक रोग है. टीबी दो प्रकार की होती है. पल्मनेरी और एक्स्ट्रा पल्मोनरी ट्यूबरक्लोसिस. डीटीओ ने बताया कि ज्यादातर रोगी फेफड़ों की टीबी के होते हैं. उन्होंने उम्मीद जताई कि इस बीमारी को 2025 तक एलिमिनेट कर लिया जाएगा.
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