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काका हाथरसी आज भी करते हैं लोगों के दिल पर राज

उत्तर प्रदेश के हाथरस से मशहूर कवि काका हाथरसी आज भी लोगों के दिलों में राज करते हैं. काका हाथरसी की कविताओं को लोग देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सराहते हैं.

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आज भी याद है सबको काका हाथरसी की कविताएं
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Published : Mar 3, 2020, 11:55 AM IST

हाथरस: "काका दाढ़ी राखिए, बिन दाढ़ी मुख सून । ज्यों मंसूरी के बिना, व्यर्थ है देहरादून ।।" यह कविता की लाइनें हिंदी के हास्य व्यंग कविताओं के पर्याय माने जाने वाले कवि काका हाथरसी की है. काका हाथरसी की रचनाएं समाज में व्याप्त दोषों, कुरीतियों, भ्रष्टाचार, राजनीतिक कुशासन की ओर सबका ध्यान केंद्रित करती हैं. भले ही काका हाथरसी हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनकी हास्य कविताओं का सहारा लेकर आज भी लोग दूसरे लोगों को जवाब देने में प्रयोग करते हैं और काका आज भी हाथरस ही नहीं देश के अलग-अलग कोनों में बसे कविता प्रेमी लोगों के दिलों पर राज करते हैं.

आज भी याद है सबको काका हाथरसी की कविताएं

कवि काका हाथरसी का नाम था प्रभुलाल गर्ग
काका हाथरसी का असली नाम प्रभुलाल गर्ग था. काका हाथरसी का जन्म 18 सितंबर 1906 को उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में हुआ था. काका हाथरसी के पिताजी का नाम शिवलाल गर्ग और माता का नाम बर्फी देवी था. काका हाथरसी का जन्म गरीब परिवार में हुआ, लेकिन काका ने गरीब होते हुए भी जिंदगी से अपना संघर्ष जारी रखा और छोटी-मोटी नौकरी के साथ कविता रचना और संगीत शिक्षा का समन्वयक बनाए रखा.

कविता के साथ-साथ संगीत की भी लिखी थी पुस्तक
काका हाथरसी ने हास्य रस से ओतप्रोत कविताओं के साथ-साथ संगीत पर भी पुस्तकें लिखी थी. उन्होंने संगीत पर एक मासिक पत्रिका संगीत का संपादन भी किया था. जीवन के संघर्षों के बीच हादसे की फुलझड़ियां जलाने वाले काका हाथरसी ने 1932 में हाथरस में संगीत की उन्नति के लिए गर्ग एंड कंपनी की स्थापना की थी, जिसका नाम बाद में संगीत कार्यालय हाथरस हुआ.

अपने कविताओं से लोगों पर छोड़ी छाप
काका हाथरसी का कवियों में विशिष्ट स्थान था. सैकड़ों कवि सम्मेलनों में काका हाथरसी ने काव्य पाठ किया और अपनी छाप छोड़ दी. इनको 1957 में लाल किला दिल्ली पर होने वाले कवि सम्मेलन का बुलावा आया जहां इन्होंने अपनी शैली में काव्य पाठ किया और लोगों के दिलों पर गहरी छाप छोड़ दी. इसके बाद काका को कई पुरस्कार भी मिले. 1966 में ब्रज कला केंद्र के कार्यक्रम में काका को सम्मानित किया गया था. काका हाथरसी को कला रत्न से भी नवाजा गया. 1985 में काका हाथरसी को राष्ट्रपति की ओर से पद्मश्री की उपाधि से भी नवाजा गया था. काका को अमेरिका के बाल्टी मोर में आनरेरी सिटीजन के सम्मान से भी सम्मानित किया गया था.

भ्रष्टाचारियों पर लिखी थी हास्य व्यंग्य
काका हाथरसी ने फिल्म जगत में भी काम किया और जमुना किनारे फिल्म में अभिनय किया था. काका हाथरसी ने भ्रष्टाचारियों पर भी हास्य व्यंग्य करते हुए कविता लिखी जो लोगों में अभी गुनगुनाई जाती है". मन मैला तन ऊजरा, भाषण लच्छेदार, ऊपर सत्या चार है, अंदर भ्रष्टाचार, झूठों के घर पंडित बांचे, कथा सत्य भगवान की, जय बोलो बेईमान की, जय बोलो बेईमान की"

विदेशों में भी काका हाथरसी को जाता है सराहा
हाथरस के काका हाथरसी हास्य और व्यंग के क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ने वाले प्रसिद्ध कवि थे. देश में ही नहीं विदेशों में भी काका हाथरसी की कविताओं को लोगों की ओर से सराहा जाता है. हाथरस के लोगों के दिलों में अब भी काका हाथरसी की कविताएं बसी है और लोग हास्य के महान कवि काका हाथरसी को उनकी हास्य मई कविताओं और व्यंग्य के कारण कभी भूल नहीं पाएंगे.

इसे भी पढ़ें- एटा: संविधान की शपथ लेकर विवाह बंधन में बंधे नवदंपति

हाथरस: "काका दाढ़ी राखिए, बिन दाढ़ी मुख सून । ज्यों मंसूरी के बिना, व्यर्थ है देहरादून ।।" यह कविता की लाइनें हिंदी के हास्य व्यंग कविताओं के पर्याय माने जाने वाले कवि काका हाथरसी की है. काका हाथरसी की रचनाएं समाज में व्याप्त दोषों, कुरीतियों, भ्रष्टाचार, राजनीतिक कुशासन की ओर सबका ध्यान केंद्रित करती हैं. भले ही काका हाथरसी हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनकी हास्य कविताओं का सहारा लेकर आज भी लोग दूसरे लोगों को जवाब देने में प्रयोग करते हैं और काका आज भी हाथरस ही नहीं देश के अलग-अलग कोनों में बसे कविता प्रेमी लोगों के दिलों पर राज करते हैं.

आज भी याद है सबको काका हाथरसी की कविताएं

कवि काका हाथरसी का नाम था प्रभुलाल गर्ग
काका हाथरसी का असली नाम प्रभुलाल गर्ग था. काका हाथरसी का जन्म 18 सितंबर 1906 को उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में हुआ था. काका हाथरसी के पिताजी का नाम शिवलाल गर्ग और माता का नाम बर्फी देवी था. काका हाथरसी का जन्म गरीब परिवार में हुआ, लेकिन काका ने गरीब होते हुए भी जिंदगी से अपना संघर्ष जारी रखा और छोटी-मोटी नौकरी के साथ कविता रचना और संगीत शिक्षा का समन्वयक बनाए रखा.

कविता के साथ-साथ संगीत की भी लिखी थी पुस्तक
काका हाथरसी ने हास्य रस से ओतप्रोत कविताओं के साथ-साथ संगीत पर भी पुस्तकें लिखी थी. उन्होंने संगीत पर एक मासिक पत्रिका संगीत का संपादन भी किया था. जीवन के संघर्षों के बीच हादसे की फुलझड़ियां जलाने वाले काका हाथरसी ने 1932 में हाथरस में संगीत की उन्नति के लिए गर्ग एंड कंपनी की स्थापना की थी, जिसका नाम बाद में संगीत कार्यालय हाथरस हुआ.

अपने कविताओं से लोगों पर छोड़ी छाप
काका हाथरसी का कवियों में विशिष्ट स्थान था. सैकड़ों कवि सम्मेलनों में काका हाथरसी ने काव्य पाठ किया और अपनी छाप छोड़ दी. इनको 1957 में लाल किला दिल्ली पर होने वाले कवि सम्मेलन का बुलावा आया जहां इन्होंने अपनी शैली में काव्य पाठ किया और लोगों के दिलों पर गहरी छाप छोड़ दी. इसके बाद काका को कई पुरस्कार भी मिले. 1966 में ब्रज कला केंद्र के कार्यक्रम में काका को सम्मानित किया गया था. काका हाथरसी को कला रत्न से भी नवाजा गया. 1985 में काका हाथरसी को राष्ट्रपति की ओर से पद्मश्री की उपाधि से भी नवाजा गया था. काका को अमेरिका के बाल्टी मोर में आनरेरी सिटीजन के सम्मान से भी सम्मानित किया गया था.

भ्रष्टाचारियों पर लिखी थी हास्य व्यंग्य
काका हाथरसी ने फिल्म जगत में भी काम किया और जमुना किनारे फिल्म में अभिनय किया था. काका हाथरसी ने भ्रष्टाचारियों पर भी हास्य व्यंग्य करते हुए कविता लिखी जो लोगों में अभी गुनगुनाई जाती है". मन मैला तन ऊजरा, भाषण लच्छेदार, ऊपर सत्या चार है, अंदर भ्रष्टाचार, झूठों के घर पंडित बांचे, कथा सत्य भगवान की, जय बोलो बेईमान की, जय बोलो बेईमान की"

विदेशों में भी काका हाथरसी को जाता है सराहा
हाथरस के काका हाथरसी हास्य और व्यंग के क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ने वाले प्रसिद्ध कवि थे. देश में ही नहीं विदेशों में भी काका हाथरसी की कविताओं को लोगों की ओर से सराहा जाता है. हाथरस के लोगों के दिलों में अब भी काका हाथरसी की कविताएं बसी है और लोग हास्य के महान कवि काका हाथरसी को उनकी हास्य मई कविताओं और व्यंग्य के कारण कभी भूल नहीं पाएंगे.

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