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हजारों घरों को रोशन करने वाले कुम्हारों की जिंदगी में पसरा अंधेरा

प्रकाश के त्योहार दिवाली में दूसरों के घरों को रोशन करने वाले कुम्हारों की जिंदगी आज अंधेरे में है. कुम्हारों का कहना है कि वह मिट्टी खरीदकर दीये बनाते हैं, लेकिन उनकी मेहनत भी नहीं वसूल होती है.

कुम्हारों की दिवाली में पसरा अंधेरा.
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Published : Oct 27, 2019, 11:26 PM IST

हाथरस: दीपावली के त्योहार पर लाखों घरों को रोशनी से जगमग करने वाले कुम्हारों की जिंदगी में आज अंधेरा पसरा हुआ है. आधुनिकता की चकाचौंध ने कुम्हारों के जीवन को तहस-नहस कर दिया है. अब कुम्हारों को दो वक्त की रोटी के लिए दिन भर मिट्टी के साथ मेहनत करनी पड़ती है, लेकिन इनकी मेहनत वसूल नहीं हो पा रही है.

देखें वीडियो.

महंगाई की वजह से दिवाली पर मिट्टी के दीये बनाना भी कुम्हारों को दुश्वार हो रहा है. वहीं कम मुनाफे के कारण कुम्हार भुखमरी के कगार पर है. सरकार द्वारा हाथरस के कुम्हारों के उत्थान के लिए कोई सुविधा भी उपलब्ध नहीं कराई जा रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि इन कुम्हारों की दिवाली कैसी होगी.

इनके घरों में है अंधेरा
दरअसल हाथरस में कुम्हारों की अच्छी खासी आबादी है और इनका मुख्य पेशा मिट्टी के बर्तन बनाकर उन्हें बेचना है. दीपावली के समय इन कुम्हारों को काम की अधिकता के कारण फुर्सत भी नहीं मिल पाती है, लेकिन दीपावली के पर्व पर हजारों लाखों घरों को रोशनी से जगमग करने वाले कुम्हारों की जिंदगी में आज अंधेरा है.

इसे भी पढ़ें- मिट्टी के दीयों की बिक्री पर टिकी है कुम्हारों की उम्मीद

नहीं बिकते हैं मिट्टी के दीये
इस दिवाली के मौके पर कुम्हार मिट्टी के चंद दीये बनाकर आसपास के बाजार में बेचने के लिए जाते हैं. वहां भी पूरे दीये बिक जाएंगे, इस बात की आशंका ही बनी रहती है.

मुश्किल से नसीब होती है दो वक्त की रोटी
बाजारों में दीयों की जगह अब रंग-बिरंगी लाइटों और झालरों ने ले ली है. ऐसे में मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों को दो वक्त की रोटी भी बमुश्किल नसीब होती है.

सरकार से नहीं मिलती मदद
कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए गांव के जिन तालाबों से मिट्टी निकालते हैं, उस पर अब लोगों को आपत्ति है. सरकार की तरफ से भी किसी प्रकार की मदद इन्हें मुहैया नहीं कराई जा रही है.

पैसे देकर खरीदते हैं मिट्टी
ऐसे में कुम्हारों का कहना है कि वह अब मिट्टी भी पैसों से खरीदते हैं. उन्हें एक क्विंटल मिट्टी के लिए 100 रुपये देने होते हैं. जिसमें 5 से 6 हजार दीये तैयार होते हैं. इन दीयों में करीब 200 दीये ही बिक पाते हैं. इससे कुम्हार भुखमरी की कगार पर हैं.

हाथरस: दीपावली के त्योहार पर लाखों घरों को रोशनी से जगमग करने वाले कुम्हारों की जिंदगी में आज अंधेरा पसरा हुआ है. आधुनिकता की चकाचौंध ने कुम्हारों के जीवन को तहस-नहस कर दिया है. अब कुम्हारों को दो वक्त की रोटी के लिए दिन भर मिट्टी के साथ मेहनत करनी पड़ती है, लेकिन इनकी मेहनत वसूल नहीं हो पा रही है.

देखें वीडियो.

महंगाई की वजह से दिवाली पर मिट्टी के दीये बनाना भी कुम्हारों को दुश्वार हो रहा है. वहीं कम मुनाफे के कारण कुम्हार भुखमरी के कगार पर है. सरकार द्वारा हाथरस के कुम्हारों के उत्थान के लिए कोई सुविधा भी उपलब्ध नहीं कराई जा रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि इन कुम्हारों की दिवाली कैसी होगी.

इनके घरों में है अंधेरा
दरअसल हाथरस में कुम्हारों की अच्छी खासी आबादी है और इनका मुख्य पेशा मिट्टी के बर्तन बनाकर उन्हें बेचना है. दीपावली के समय इन कुम्हारों को काम की अधिकता के कारण फुर्सत भी नहीं मिल पाती है, लेकिन दीपावली के पर्व पर हजारों लाखों घरों को रोशनी से जगमग करने वाले कुम्हारों की जिंदगी में आज अंधेरा है.

इसे भी पढ़ें- मिट्टी के दीयों की बिक्री पर टिकी है कुम्हारों की उम्मीद

नहीं बिकते हैं मिट्टी के दीये
इस दिवाली के मौके पर कुम्हार मिट्टी के चंद दीये बनाकर आसपास के बाजार में बेचने के लिए जाते हैं. वहां भी पूरे दीये बिक जाएंगे, इस बात की आशंका ही बनी रहती है.

मुश्किल से नसीब होती है दो वक्त की रोटी
बाजारों में दीयों की जगह अब रंग-बिरंगी लाइटों और झालरों ने ले ली है. ऐसे में मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों को दो वक्त की रोटी भी बमुश्किल नसीब होती है.

सरकार से नहीं मिलती मदद
कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए गांव के जिन तालाबों से मिट्टी निकालते हैं, उस पर अब लोगों को आपत्ति है. सरकार की तरफ से भी किसी प्रकार की मदद इन्हें मुहैया नहीं कराई जा रही है.

पैसे देकर खरीदते हैं मिट्टी
ऐसे में कुम्हारों का कहना है कि वह अब मिट्टी भी पैसों से खरीदते हैं. उन्हें एक क्विंटल मिट्टी के लिए 100 रुपये देने होते हैं. जिसमें 5 से 6 हजार दीये तैयार होते हैं. इन दीयों में करीब 200 दीये ही बिक पाते हैं. इससे कुम्हार भुखमरी की कगार पर हैं.

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एंकर- दीपावली के त्यौहार पर लाखों घरों को रोशनी से जगमग करने वाले कुम्हारों की जिंदगी में आज अंधेरा ही अंधेरा है दरअसल आधुनिकता की चकाचौंध ने कुम्हारों के जीवन को तहस-नहस कर दिया है अब कुमारों को दो वक्त की रोटी के लिए दिन भर मिट्टी के साथ मेहनत करनी पड़ती है लेकिन इसके बावजूद भी मेहनत वसूल नहीं हो पा रही है दिवाली पर मिट्टी के दीए बनाना भी महंगाई के कारण कुम्हारों को दुश्वार हो रहा है मुनाफा कम होने के कारण कुम्हार भुखमरी के कगार पर है सरकार द्वारा हाथरस के कुमारों के उत्थान के लिए कोई सुविधा भी उपलब्ध नहीं कराई जा रही है अब ऐसे में कुम्हारों की दिवाली कैसी होगी आप खुद सोच सकते हैं।


Body:वीओ- दरअसल आपको बता दें की हाथरस में कुम्हारों की अच्छी खासी आबादी है और इन कुम्हारों का मुख्य पेशा मिट्टी के बर्तन वह सामान बनाकर उन्हें बेचना है दीपावली के समय इन कुम्हारों को काम की अधिकता के कारण फुर्सत भी नहीं मिल पाती है लेकिन दीपावली के पर्व पर हजारों लाखों घरों को रोशनी से जगमग करने वाले कुम्हारों की जिंदगी में आज अंधेरा ही अंधेरा है आधुनिकता की चकाचौंध ने कुम्हारों के जीवनयापन का संकट खड़ा कर दिया है हाड़ तोड़ मेहनत वह अपनी कला के चलते मिट्टी के दिए वध बर्तन बनाने वाले कुम्हारों को आज दो वक्त की रोटी के लिए परेशान होना पड़ रहा है दिवाली के समय जो कुमार दम भरने की फुर्सत नहीं पाते थे वही आज मिट्टी के चंद दिए बनाकर आसपास के बाजार में बेचने के लिए जाते हैं वहां भी पूरे दिए बिक जाएं इस बात की आशंका ही बनी रहती है बाजारों में दियो की जगह अब आधुनिक तरह की तमाम रंग बिरंगी लाइट ओं व झालरों ने ले ली है ऐसे में मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों के सामने समस्या मुंह खोले खड़ी है मिट्टी के सामान बनाने के लिए गांव के जिन तालाबों से कुमार मिट्टी निकालते हैं उस पर अब लोगों को आपत्ति है सरकार से भी किसी तरह की मदद इनको मुहैया नहीं हो पा रही है कुमारों का कहना है कि वह अब मिट्टी भी पैसों से खरीदते हैं जोके 500 से ₹700 तक मैं उन्हें पड़ती है जिसमें 5 से 6 हजार दीपक तैयार किए जाते हैं और 1000 दीपक लगभग ₹200 से ढाई ₹100 तक बिग पाते हैं इस कारण हाथरस के कुमार लगभग भुखमरी के कगार पर हैं सरकार द्वारा हाथरस के कुम्हारों के उत्थान के लिए कोई भी सुविधा अभी तक उपलब्ध नहीं कराई गई है अब ऐसे में कुम्हारों की दिवाली कैसी होगी आप खुद सोच सकते हैं।



बाइट- प्रकाश- मिट्टी के दीपक बनाने वाला कुम्हार।
बाइट- अशरफ बेगम -मिट्टी के बर्तन बनाने वाली महिला कुम्हार।


Conclusion:हाथरस में लाखों घरों को दीपक की रोशनी से जगमग आने वाले कुम्हार अंधेरे में जीने को मजबूर हैं बाजारों में चाइनीस लाइटों के आ जाने से कुमारों के मिट्टी के दीपक नहीं बिक पा रहे हैं जिससे कुम्हार अब भुखमरी की कगार पर है।
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