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हरदोई: रंगमंच की विधा को बचाने की कोशिश, कलाकारों ने किया रंगमंच का आयोजन - हरदोई की खबरें

रस खान प्रेक्षागृह में एक रंगमंच का आयोजन किया गया, जिसमें कलाकारों ने मशहूर लेखक मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'बूढ़ी काकी' को नाट्य के रूप में प्रस्तुत किया. इस कार्यक्रम का आयोजन विलुप्त होती रंगमंच की विधा को बचाने के उद्देश्य से किया गया.

रस खान प्रेक्षागृह में हुआ रंगमंच का आयोजन
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Published : Jun 12, 2019, 9:27 AM IST

हरदोई: आधुनिकता के दौर में विलुप्त होती जा रही रंगमंच की विधा को एक बार फिर से जिंदा करने के लिए रस खान प्रेक्षागृह में रंगमंच का आयोजन हुआ. इस रंगमंच ने कलाकारों ने मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'बूढ़ी काकी' को बहुत ही अच्छे ढंग से नाट्य के रूप में प्रस्तुत किया.

रस खान प्रेक्षागृह में हुआ रंगमंच का आयोजन

मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'बूढ़ी काकी' की रंगमंच पर प्रस्तुति

  • रस खान प्रेक्षागृह में रंगमंच का हुआ आयोजन
  • रंगमंच पर कलाकारों ने किया मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'बूढ़ी काकी' को नाट्य के रूप में प्रस्तुत
  • विलुप्त होती रंगमंच की विधा को दोबारा जिंदा करने के उद्देश्य से हुआ इस रंगमंच का आयोजन
  • नाट्य में कलाकारों ने युवाओं द्वारा बुजुर्गों की उपेक्षा को दर्शाया
  • सिनेमा के दौर में विलुप्त होती रंगमंच की विधा को बचाने की कलाकारों की कोशिश

हरदोई: आधुनिकता के दौर में विलुप्त होती जा रही रंगमंच की विधा को एक बार फिर से जिंदा करने के लिए रस खान प्रेक्षागृह में रंगमंच का आयोजन हुआ. इस रंगमंच ने कलाकारों ने मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'बूढ़ी काकी' को बहुत ही अच्छे ढंग से नाट्य के रूप में प्रस्तुत किया.

रस खान प्रेक्षागृह में हुआ रंगमंच का आयोजन

मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'बूढ़ी काकी' की रंगमंच पर प्रस्तुति

  • रस खान प्रेक्षागृह में रंगमंच का हुआ आयोजन
  • रंगमंच पर कलाकारों ने किया मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'बूढ़ी काकी' को नाट्य के रूप में प्रस्तुत
  • विलुप्त होती रंगमंच की विधा को दोबारा जिंदा करने के उद्देश्य से हुआ इस रंगमंच का आयोजन
  • नाट्य में कलाकारों ने युवाओं द्वारा बुजुर्गों की उपेक्षा को दर्शाया
  • सिनेमा के दौर में विलुप्त होती रंगमंच की विधा को बचाने की कलाकारों की कोशिश
Intro:आशीष द्विवेदी
हरदोई up
9918740777,8115353000

स्लग--मुंशी प्रेमचंद की कहानी काकी का हुआ मंचन आधुनिकता के दौर में विलुप्त होती जा रही रंगमंच की विधा को मिलेगा बढ़ावा

एंकर--मशहूर लेखक मुंशी प्रेमचंद की कहानी बूढ़ी काकी का मंचन किया गया जिसमें साफ तौर पर कलाकारों ने बड़े ही अच्छे ढंग से प्रस्तुतीकरण किया मार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत इस कहानी वृद्धावस्था में युवाओं के द्वारा बुजुर्गों की उपेक्षा को दर्शाया गया है जब बुढ़ापे में सबसे ज्यादा जरूरत वृद्ध इंसान को होती है तो ऐसे में उनके रिश्तेदार उनका सब कुछ ले तो लेते हैं लेकिन यह भूल जाते हैं कि जिनकी वजह से वह अच्छा जीवन जी रहे हैं और उसी को भरपेट भोजन नहीं मिलता लिहाजा समाज में आ रही विद्रूपता को बयां करती मर्म से परिपूर्ण यह कहानी लोगों को जिंदगी का सार समझा गयी। तो वही आधुनिकता के इस दौर में विलुप्त होती जा रही रंगमंच की विधा को जीवंत रखने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं ऐसे में सबसे ज्यादा जरूरत है तो रंगमंच के कलाकारों को बढ़ावा देने की हालांकि अधिकारी रंगमंच की विधा को प्रोत्साहन देने की बात जरूर कर रहे हैं इस मौके पर जिलेभर के गणमान्य व्यक्ति और अधिकारी मौजूद रहे।


Body:vo--थिएटर एक समय में लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा होने के साथ ही उनके लिए प्रेरणा स्रोत भी था रंगमंच के कलाकार मोहक ढंग से कहानी का प्रस्तुतीकरण करते थे और लोग इन कहानियों से सीख लेते थे लेकिन समय बदलता गया और थिएटर की जगह बॉलीवुड ने ले ली ऐसे में थिएटर की प्रतिभा भी समय के साथ पीछे छूट गई।ऐसे में थिएटर को बढ़ावा देने के लिए मशहूर साहित्यकार लेखक मुंशी प्रेमचंद की कहानी बूढ़ी काकी का रंगमंच के कलाकारों ने मंचन किया कहानी की शुरुआत लेखक ने मानव जीवन के पथ अवस्था और बाल्यावस्था को की दृष्टि से देखा एक विधवा महिला बूढ़ी काकी में जीभ के स्वाद के अलावा अन्य कोई इच्छा शेष नहीं थी उसके जवान बेटे की आस में मर चुके थे इन संसार में ऐसा कोई नहीं था जिसे बूढ़ी काकी अपना था तो केवल उसका दूर का भतीजा बुद्धि राम बुधीराम नंबर बूढ़ी काकी की संपत्ति अपने नाम करा ली थी बुद्धि राम की पत्नी रूपा भी विभाग से कठोर थी उसके पुत्रों को भी कोई मोह नहीं था हालांकि उसकी बेटी लाडली बूढ़ी काकी से स्नेह रखी थी बात बात पर बुधराम के परिवार के लोग क्रोधित हो जाया करते थे और बूढ़ी काकी को डांटते रहते थे हाथ पैरों से लाचार बूढ़ी काकी पड़ी रहती थी बुद्धि राम के बेटे मुखराम की सगाई थी सगाई में मिठाइयां बन रही थी खाना बन रहा था और पूरे गांव में खुशी का माहौल था सारे मेहमान आराम फरमा रहे थे पूरे गांव में खाने की सुगंध फैल रही थी ऐसे में बूढ़ी काकी का मन खाने के लिए आतुर हो रहा था लेकिन अपशकुन के भय से वह खामोश बैठी थी वह मन ही मन सोच रही थी कि उसे कोई खाने के लिए नहीं पूछता भला उसे कचौड़ी कौन खिलाएगा वह धीरे धीरे जाकर हलवाई की कढ़ाई के पास बैठ गई थी तभी अचानक रूपा की नजर बूढ़ी काकी पर पड़ी तो वह आग बबूला हो गई और बूढ़ी काकी को जमकर खरी-खोटी सुनाई अपमानित होकर बूढ़ी काकी अपनी कोठरी में चली गई।

काफी समय तक जब किसी ने सुध नहीं ली तो बूढ़ी काकी का मन बेचैन हो उठा उनकी भूख जोर पकड़ने लगी और वह वहां से सरकती हुई जाकर पत्तलों के बीच बैठ गई लोग आसानी से देख ही रहे थे कि बुद्धिराम की नजर पड़ गई उस बूढ़ी काकी को बुधराम ने कोठरी में लाकर पटक दिया बुद्धि राम या भूल गया था कि उसे जो सम्मान मिल रहा है वह सब बूढ़ी काकी की बदौलत है वह सब बूढ़ी काकी की संपत्ति की वजह से है ऐसे में बूढ़ी काकी स्वयं को कोसती रहती है। बूढ़ी काकी से अगर किसी को सहानुभूति थी तो वह लाडली को थी।रात के 11 बज चुके थे सभी मेहमान आराम कर रहे थे थकी हारी रूपा भी सो चुकी थी लेकिन लाडली जो अभी जाग रही थी वह समय की प्रतीक्षा में थी कि अपने हिस्से का मिला हुआ खाना बूढ़ी काकी को जाकर खिलाएं रूपा को पता होने पर पिटाई होने का डर था मां को सोता देख लाडली चुपके से अपने हिस्से की पुड़िया लेकर काकी के पास पहुंची और उसे बूढ़ी काकी ने एक ही झटके में उसे खा गयी परंतु फिर भी उनकी भूख शांत नहीं उसने लाडली से पत्तलों के पास ले चलने को कहा इसी बीच रूपा की आंख खुल गई लाडली को अपने पास में न पाकर इधर उधर देखा तो रूपा की नजर बूढ़ी काकी पर पड़ गई जो भूख से व्याकुल पत्तलों को चाट रही थी आत्मग्लानि में पश्चाताप से परिपूर्ण रूपा को उसे अपने किए पर पछतावा हो रहा था उसने सोचा कि जिस बूढ़ी काकी की जायदाद से हमें इतनी आमदनी हो रही है इसके लिए मैं भरपेट भोजन भी नहीं दे सकी ईश्वर से अपने अपराध के लिए क्षमा मांगती हूं रूपा भाव से परिपूर्ण बूढ़ी काकी को कोठरी में ले गई और उसे बैठाकर खाना खिलाया और उसने कहा कि वह ईश्वर से दुआ करें कि उसी गलती के लिए उसे क्षमा कर दे रूपा पश्चाताप कर रही थी तो वही बूढ़ी काकी अपने जीवन के अमूल्य क्षण का आनंद ले रही थी।

बाइट-- अभिषेक पंडित कहानी निर्देशक
बाइट-- पुलकित खरे जिलाधिकारी हरदोई


Conclusion:voc--थिएटर ने सिनेमा को कई बड़े मशहूर कलाकार दिए हैं लेकिन आज के दौर में रंगमंच की विधा अनदेखी के चलते विलुप्त होती जा रही रंगमंच की विधा को जीवंत रखने के लिए कलाकारों का कहना है कि इस विधा को बढ़ावा देना चाहिए और जो कलाकार हैं उनके अंदर जो प्रतिभा है वह निखर के बाहर आनी चाहिए ताकि थिएटर के जरिए विलुप्त होती जा रही थिएटर की विधा को बचाया जा सके तो वही इस बारे में जिला अधिकारी पुलकित खरे का कहना है कि थिएटर की विधा को बचाने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं कोशिश की जा रही है कि रंगमंच के कलाकारों के जरिए सप्ताह में एक बार इस तरह के कार्यक्रम का आयोजन हो ताकि रंगमंच विधा है उसको भी बढ़ावा मिले और साथ ही साथ यह कलाकार जो अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं और बड़ी ही अच्छे और मनोरम ढंग से कहानी को समझाते हैं वह भी निखर कर आ सके इस मौके पर जिलाधिकारी पुलकित खरे समेत जिले के गणमान्य व्यक्ति और तमाम अधिकारी मौजूद रहे।

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