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फांसी का तख्त पलटने वाले हरदोई बाबा का चौकाने वाला है इतिहास, असल मंदिर से लोग आज भी हैं अनजान - फांसी का तख्त

हरदोई जिले में यूं तो तमाम ऐतिहासिक स्थल मौजूद हैं. लेकिन यहां के ऐतिहासिक बूढ़े बाबा मंदिर के इतिहास की जानकारी अधिकांश लोगों को नहीं है. वो बाबा जिसने हरदोई जिले से फांसी के तख्त को पलटकर गैर जनपद में भेजने के लिए अंग्रेजों को मजबूर कर दिया था. हालांकि हरदोई बाबा के नाम से एक अन्य मंदिर भी है, जहां हज़ारों श्रद्धालु आते हैं. लेकिन असल में बाबा की समाधि व उनका मंदिर कोई और ही है.

ऐतिहासिक स्थल है हरदोई बूढ़े बाबा का मंदिर
ऐतिहासिक स्थल है हरदोई बूढ़े बाबा का मंदिर
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Published : Jun 10, 2020, 12:45 PM IST

Updated : Jun 11, 2020, 7:38 AM IST

हरदोई: हरदोई बाबा मंदिर, नाम से ही ज्ञात है कि इस मंदिर का इतिहास हरदोई से जुड़ा हुआ है, और ये जिस बाबा के नाम से स्थापित हुआ वो हरदोई से ही ताल्लुख रखते थे. किंवदंती है कि आज से हज़ारों वर्ष पूर्व एक बाबा जंगलों में विचरण करते हुए हरदोई आये और यहां रहने लगे. ये कौन थे इसके बारे में किसी को भी कुछ ज्ञात नहीं है.

पुजारी ने बताया कि बाबा ने एक दिन किसी गन्ने की ट्रॉली से एक गन्ना खींच लिया था. जिसके बाद उस गन्ने के स्वामी ने उन्हें बुरा भला कहा और काफी खरी खोटी भी सुनाई. जिससे दुखी होकर बाबा एक वृक्ष पर चढ़ गए और करीब चार दिनों के बाद नीचे उतरे. पेड़ के पास ही उन्होंने हाथों से खुदाई करनी शुरू कर दी. कई दिनों तक खुदाई करने के बाद वे भूमि में काफी नीचे तक पहुंच गए और एक गुफा तैयार कर दी. अंत में उन्होंने इसी गुफा नुमा गढ्ढे में समाधि ले ली. ये आज भी हरदोई के सांडी रोड पर स्थिति है.

हरदोई के बूढ़े बाबा का चौकाने वाला है इतिहास

कहते हैं कि समाधि लेने के बाद बाबा लोगों को स्वप्न में दिखने लगे और भविष्य को लेकर संदेश भी देने लगे. इतना ही नहीं उनकी समाधि के आस पास खेलने वाले बच्चों को वे साक्षात दर्शन भी देते थे. बाबा के इस प्रकार स्वप्न में आकर शुभ संदेश देने व दर्शन देने के बाद वे हरदोई के लोगों की आस्था से जुड़ गए और लोग उन्हें पूजने भी लगे.

ये है असल मंदिर:
तस्वीरों में दिख रहा बाबा का ये समाधि स्थल ही उनका असल एतिहासिक मंदिर है. जबकि कुछ लोगों द्वारा बाबा के नाम से एक अन्य मंदिर उन्हीं की क्षवि स्थापित कर खोल दिया गया. उनके नाम से खुले दूसरे मंदिर पर ही आज लोग हज़ारों की संख्या में रोजाना जाते हैं व उनकी आराधना करते हैं. लेकिन उनके असल समाधि स्थल व मंदिर से नाम मात्र लोग ही अवगत हैं. हालांकि उनके नाम से स्थापित दूसरे मंदिर पर आने वाले भक्तों को आस्था का उन्हें पूरा फल मिलता है और श्रद्धालुओं की मुरादें भी पूरी होती हैं.

पलट दिया था फांसी का तख्त:
हरदोई जिले में आज भी किसी को फांसी की सज़ा नहीं सुनाई जाती है. किंवदंती है कि अंग्रेजों द्वारा जिले में फांसी दिए जाने पर बाबा क्रोधित हो गए थे. जिसके बाद स्वप्न में आकर उन्होंने अंग्रेजों को फांसी का तख्त पलटने का आदेश दिया था. वही वो समय था जब अंग्रेजों ने डर कर फांसी के तख्त को हरदोई से हटाकर बरेली भेज दिया था. जिले में बाबा के उन आदेशों का पालन आज भी होता है, और यहां का कानून भी तभी से बदल गया. आज भी यहां किसी भी आरोपी को फांसी की सजा नहीं सुनाई जाती और न ही किसी को फांसी दी जाती है.

हरदोई: हरदोई बाबा मंदिर, नाम से ही ज्ञात है कि इस मंदिर का इतिहास हरदोई से जुड़ा हुआ है, और ये जिस बाबा के नाम से स्थापित हुआ वो हरदोई से ही ताल्लुख रखते थे. किंवदंती है कि आज से हज़ारों वर्ष पूर्व एक बाबा जंगलों में विचरण करते हुए हरदोई आये और यहां रहने लगे. ये कौन थे इसके बारे में किसी को भी कुछ ज्ञात नहीं है.

पुजारी ने बताया कि बाबा ने एक दिन किसी गन्ने की ट्रॉली से एक गन्ना खींच लिया था. जिसके बाद उस गन्ने के स्वामी ने उन्हें बुरा भला कहा और काफी खरी खोटी भी सुनाई. जिससे दुखी होकर बाबा एक वृक्ष पर चढ़ गए और करीब चार दिनों के बाद नीचे उतरे. पेड़ के पास ही उन्होंने हाथों से खुदाई करनी शुरू कर दी. कई दिनों तक खुदाई करने के बाद वे भूमि में काफी नीचे तक पहुंच गए और एक गुफा तैयार कर दी. अंत में उन्होंने इसी गुफा नुमा गढ्ढे में समाधि ले ली. ये आज भी हरदोई के सांडी रोड पर स्थिति है.

हरदोई के बूढ़े बाबा का चौकाने वाला है इतिहास

कहते हैं कि समाधि लेने के बाद बाबा लोगों को स्वप्न में दिखने लगे और भविष्य को लेकर संदेश भी देने लगे. इतना ही नहीं उनकी समाधि के आस पास खेलने वाले बच्चों को वे साक्षात दर्शन भी देते थे. बाबा के इस प्रकार स्वप्न में आकर शुभ संदेश देने व दर्शन देने के बाद वे हरदोई के लोगों की आस्था से जुड़ गए और लोग उन्हें पूजने भी लगे.

ये है असल मंदिर:
तस्वीरों में दिख रहा बाबा का ये समाधि स्थल ही उनका असल एतिहासिक मंदिर है. जबकि कुछ लोगों द्वारा बाबा के नाम से एक अन्य मंदिर उन्हीं की क्षवि स्थापित कर खोल दिया गया. उनके नाम से खुले दूसरे मंदिर पर ही आज लोग हज़ारों की संख्या में रोजाना जाते हैं व उनकी आराधना करते हैं. लेकिन उनके असल समाधि स्थल व मंदिर से नाम मात्र लोग ही अवगत हैं. हालांकि उनके नाम से स्थापित दूसरे मंदिर पर आने वाले भक्तों को आस्था का उन्हें पूरा फल मिलता है और श्रद्धालुओं की मुरादें भी पूरी होती हैं.

पलट दिया था फांसी का तख्त:
हरदोई जिले में आज भी किसी को फांसी की सज़ा नहीं सुनाई जाती है. किंवदंती है कि अंग्रेजों द्वारा जिले में फांसी दिए जाने पर बाबा क्रोधित हो गए थे. जिसके बाद स्वप्न में आकर उन्होंने अंग्रेजों को फांसी का तख्त पलटने का आदेश दिया था. वही वो समय था जब अंग्रेजों ने डर कर फांसी के तख्त को हरदोई से हटाकर बरेली भेज दिया था. जिले में बाबा के उन आदेशों का पालन आज भी होता है, और यहां का कानून भी तभी से बदल गया. आज भी यहां किसी भी आरोपी को फांसी की सजा नहीं सुनाई जाती और न ही किसी को फांसी दी जाती है.

Last Updated : Jun 11, 2020, 7:38 AM IST
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