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गेहूं बेचकर डीजल खरीद रहे किसान, प्रति बीघा बढ़ा 400 रुपये का खर्च - किसानों पर कोरोना का प्रभाव

वैश्विक महामारी कोरोना का असर हर क्षेत्र पर पड़ा है. किसान भी इससे अछूते नहीं हैं. अभी वे इस महामारी का सामना कर ही रहे थे कि सरकार की तरफ से बढ़ाए गए डीजल के दामों ने उनको और परेशानी में डाल दिया. डीजल के बढ़ते दामों की सीधी मार किसान झेल रहे हैं. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनका प्रति बीघा 400 रुपये का खर्च बढ़ गया है. देखिए हरदोई से ये स्पेशल रिपोर्ट...

impact of increased diesel price farmers in hardoi
हरदोई में गेहूं बेचकर डीजल खरीद रहे किसान.
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Published : Jul 6, 2020, 4:56 AM IST

हरदोई: जिले में डीजल के बढ़ते दामों की मार सबसे ज्यादा किसानों के ऊपर पड़ रही है. जिले में मौजूद करीब 80 फीसदी किसानों ने सरकार से डीजल के दामों में हुई वृद्धि को वापस लेने की मांग की है. किसानों का कहना है कि पिछले 20 दिनों में डीजल के बढ़ते दामों से अब प्रति बीघे फसल की बुआई व रुपाई करने में आने वाला खर्च 4 सौ रुपये तक बढ़ गया है. अगर इसी तरह डीजल के दाम बढ़ते रहे तो किसानों को तमाम तरह की समस्याओं से जूझना पड़ सकता है. उनका कहना है कि आर्थिक रूप से मजबूत लोगों के ऊपर इस सरकारी फरमान का कोई खास असर नहीं पड़ रहा है. इसकी मार सिर्फ गरीब किसान के ऊपर ही पड़ रही है.

स्पेशल रिपोर्ट...

जिले में 80 फीसदी हैं किसान
हरदोई जिले में आज भी 80 फीसदी भूमि कृषि पर आधारित है, जिसमें तीन लाख हेक्टेयर के क्षेत्र में धान व गेहूं की फसल होती है तो 80 हजार हेक्टेयर में गन्ने की खेती की जाती है. शेष एक लाख हेक्टेयर में अन्य फसलों की खेती होती है. 20 दिनों से लगातार डीजल के दामों में हुई वृद्धि का सीधा असर किसानों के ऊपर पड़ा है.

निजी संसाधनों को इस्तेमाल में लाते हैं किसान
जिले के अधिकांश क्षेत्र में सिंचाई के लिए किसान निजी संसाधनों को इस्तेमाल में लाते हैं. डीजल के दामों में वृद्धि होने से फसल उपजने के बाद सिर्फ सिंचाई में ही किसानों को 4 सौ रुपये के अधिक खर्च का बोझ उठाना पड़ रहा है. ऐसे में जिले के 80 फीसदी किसानों ने सरकार से डीजल के दामों में हुई वृद्धि को वापस लेने की मांग की है.

30 फीसदी नलकूप व नहर से होती है सिंचाई
जिले में मात्र 30 फीसदी ही ऐसा कृषि क्षेत्र है, जहां की सिंचाई नलकूप व नहर के जरिये की जाती है. शेष भूमि पर कृषक बारिश समेत अपने निजी संसाधनों को ही इस्तेमाल में लाता है और अपनी फसल की सिंचाई व बुआई करता है.अचानक डीजल के दाम बढ़कर 80 रुपये हो जाने से किसानों की समस्या भी बढ़ गयी है.

प्रति बीघे बढ़ा करीब 400 रुपये का खर्च
जब ईटीवी भारत की टीम ने जिले के ग्रामीण इलाकों का भ्रमण किया और किसानों से बातचीत की तो उन्होंने कैमरे के सामने आते ही अपना दर्द बयां करना शुरू कर दिया. किसानों के मुताबिक एक बीघा खेत की सिंचाई में औसतन एक घंटे का समय लगता है. गर्मी में बारिश के बाद भी दिन में सात से आठ बार फसल की सिंचाई करनी होती है, जिसके लिए पम्पिंग सेट आदि को इस्तेमाल में लाया जाता है. किसानों ने कहा कि पहले जब डीजल 60 या 62 रुपये में था तो खर्च 5 से 6 सौ का आता था, लेकिन अचानक डीजल के दाम 80 के पार हो जाने से प्रति बीघे सिंचाई का खर्च एक हज़ार से ग्यारह सौ तक का आने लगा है.

गेहूं बेचकर डीजल खरीदने को मजबूर हुए किसान
किसान गेहूं बेचकर डीजल खरीदने को मजबूर हैं, क्योंकि उन्हें हर हाल में धान की रोपाई करनी ही है. अगर फसल की रोपाई नहीं होगी तो वे खाएंगे क्या, लेकिन सरकार इस तरफ ध्यान देना जरूरी नहीं समझ रही है. ईटीवी भारत की टीम ने बावन व टड़ियावां ब्लॉक के किसानों से बात की, जिस पर किसी ने बढ़े खर्च का आंकड़ा बताया तो किसी ने अपनी बेबसी जाहिर की.

सरकार से लगाई मदद की गुहार
किसानों ने कहा कि खेत की जुताई करने में इस्तेमाल होने वाले ट्रैक्टर से लेकर सिंचाई में इस्तेमाल होने वाले इंजन व पम्पिंग सेट तक में डीजल का प्रयोग किया जाता है. जब डीजल के दाम बढ़ जाएंगे तो लाजमी है कि फसलों की सिंचाई व बुआई में भी अधिक खर्च आएगा. फिलहाल बेहाल किसानों ने सरकार से डीजल के दामों को कम किये जाने की मांग जरूर की है.

ग्राम प्रधान ने जताई नाराजगी
टड़ियावां ब्लॉक के सिकंदरपुर ग्राम सभा के प्रधान राजीव सिंह ने सरकार के इस फरमान पर किसानों के हितार्थ अपना आक्रोश व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि किसान इतने महंगे दामों पर डीजल खरीदकर खेती करने में सक्षम नहीं हैं, लेकिन धान की रोपाई किसानों को हर हाल में करनी ही है. इसलिए वे अपना गेहूं बेचकर डीजल खरीदने को मजबूर हैं.

ये भी पढ़ें: 5 हजार रुपये से शुरू कंपनी का टर्नओवर पहुंचा 10 करोड़ के पार, जानिए, सफलता की कहानी...

किसानों के ऊपर छाएगा आर्थिक संकट
ग्राम प्रधान ने कहा कि सरकार को किसानों के हित में सोचने की जरूरत है और डीजल के दामों को पूर्व की भांति यथावत करने की आवश्यकता है. अगर सरकार दामों में कटौती नहीं करेगी तो भविष्य में किसानों के ऊपर आर्थिक संकट आने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी. उन्होंने कहा कि इन दामों के बढ़ने से अचानक फसलों की सिंचाई में 4 सौ रुपये से अधिक का खर्च बढ़ गया है.

हरदोई: जिले में डीजल के बढ़ते दामों की मार सबसे ज्यादा किसानों के ऊपर पड़ रही है. जिले में मौजूद करीब 80 फीसदी किसानों ने सरकार से डीजल के दामों में हुई वृद्धि को वापस लेने की मांग की है. किसानों का कहना है कि पिछले 20 दिनों में डीजल के बढ़ते दामों से अब प्रति बीघे फसल की बुआई व रुपाई करने में आने वाला खर्च 4 सौ रुपये तक बढ़ गया है. अगर इसी तरह डीजल के दाम बढ़ते रहे तो किसानों को तमाम तरह की समस्याओं से जूझना पड़ सकता है. उनका कहना है कि आर्थिक रूप से मजबूत लोगों के ऊपर इस सरकारी फरमान का कोई खास असर नहीं पड़ रहा है. इसकी मार सिर्फ गरीब किसान के ऊपर ही पड़ रही है.

स्पेशल रिपोर्ट...

जिले में 80 फीसदी हैं किसान
हरदोई जिले में आज भी 80 फीसदी भूमि कृषि पर आधारित है, जिसमें तीन लाख हेक्टेयर के क्षेत्र में धान व गेहूं की फसल होती है तो 80 हजार हेक्टेयर में गन्ने की खेती की जाती है. शेष एक लाख हेक्टेयर में अन्य फसलों की खेती होती है. 20 दिनों से लगातार डीजल के दामों में हुई वृद्धि का सीधा असर किसानों के ऊपर पड़ा है.

निजी संसाधनों को इस्तेमाल में लाते हैं किसान
जिले के अधिकांश क्षेत्र में सिंचाई के लिए किसान निजी संसाधनों को इस्तेमाल में लाते हैं. डीजल के दामों में वृद्धि होने से फसल उपजने के बाद सिर्फ सिंचाई में ही किसानों को 4 सौ रुपये के अधिक खर्च का बोझ उठाना पड़ रहा है. ऐसे में जिले के 80 फीसदी किसानों ने सरकार से डीजल के दामों में हुई वृद्धि को वापस लेने की मांग की है.

30 फीसदी नलकूप व नहर से होती है सिंचाई
जिले में मात्र 30 फीसदी ही ऐसा कृषि क्षेत्र है, जहां की सिंचाई नलकूप व नहर के जरिये की जाती है. शेष भूमि पर कृषक बारिश समेत अपने निजी संसाधनों को ही इस्तेमाल में लाता है और अपनी फसल की सिंचाई व बुआई करता है.अचानक डीजल के दाम बढ़कर 80 रुपये हो जाने से किसानों की समस्या भी बढ़ गयी है.

प्रति बीघे बढ़ा करीब 400 रुपये का खर्च
जब ईटीवी भारत की टीम ने जिले के ग्रामीण इलाकों का भ्रमण किया और किसानों से बातचीत की तो उन्होंने कैमरे के सामने आते ही अपना दर्द बयां करना शुरू कर दिया. किसानों के मुताबिक एक बीघा खेत की सिंचाई में औसतन एक घंटे का समय लगता है. गर्मी में बारिश के बाद भी दिन में सात से आठ बार फसल की सिंचाई करनी होती है, जिसके लिए पम्पिंग सेट आदि को इस्तेमाल में लाया जाता है. किसानों ने कहा कि पहले जब डीजल 60 या 62 रुपये में था तो खर्च 5 से 6 सौ का आता था, लेकिन अचानक डीजल के दाम 80 के पार हो जाने से प्रति बीघे सिंचाई का खर्च एक हज़ार से ग्यारह सौ तक का आने लगा है.

गेहूं बेचकर डीजल खरीदने को मजबूर हुए किसान
किसान गेहूं बेचकर डीजल खरीदने को मजबूर हैं, क्योंकि उन्हें हर हाल में धान की रोपाई करनी ही है. अगर फसल की रोपाई नहीं होगी तो वे खाएंगे क्या, लेकिन सरकार इस तरफ ध्यान देना जरूरी नहीं समझ रही है. ईटीवी भारत की टीम ने बावन व टड़ियावां ब्लॉक के किसानों से बात की, जिस पर किसी ने बढ़े खर्च का आंकड़ा बताया तो किसी ने अपनी बेबसी जाहिर की.

सरकार से लगाई मदद की गुहार
किसानों ने कहा कि खेत की जुताई करने में इस्तेमाल होने वाले ट्रैक्टर से लेकर सिंचाई में इस्तेमाल होने वाले इंजन व पम्पिंग सेट तक में डीजल का प्रयोग किया जाता है. जब डीजल के दाम बढ़ जाएंगे तो लाजमी है कि फसलों की सिंचाई व बुआई में भी अधिक खर्च आएगा. फिलहाल बेहाल किसानों ने सरकार से डीजल के दामों को कम किये जाने की मांग जरूर की है.

ग्राम प्रधान ने जताई नाराजगी
टड़ियावां ब्लॉक के सिकंदरपुर ग्राम सभा के प्रधान राजीव सिंह ने सरकार के इस फरमान पर किसानों के हितार्थ अपना आक्रोश व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि किसान इतने महंगे दामों पर डीजल खरीदकर खेती करने में सक्षम नहीं हैं, लेकिन धान की रोपाई किसानों को हर हाल में करनी ही है. इसलिए वे अपना गेहूं बेचकर डीजल खरीदने को मजबूर हैं.

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किसानों के ऊपर छाएगा आर्थिक संकट
ग्राम प्रधान ने कहा कि सरकार को किसानों के हित में सोचने की जरूरत है और डीजल के दामों को पूर्व की भांति यथावत करने की आवश्यकता है. अगर सरकार दामों में कटौती नहीं करेगी तो भविष्य में किसानों के ऊपर आर्थिक संकट आने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी. उन्होंने कहा कि इन दामों के बढ़ने से अचानक फसलों की सिंचाई में 4 सौ रुपये से अधिक का खर्च बढ़ गया है.

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