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पैर फिसला...और चकनाचूर हो गया इस शख्स का ख्वाब - देशभक्ति था जज्बा

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के अरविंद को आज भी बेहतर जिंदगी जीने की चाह है, मगर दिव्यांग होने के कारण उनके कई सपने चूर हो गए. देश की सेवा करने का जज्बा कक्षा दसवीं से रखे हुए थे, मगर एक हादसे ने उनसे उनकी सारी ख्वाहिशें छीन ली.

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आर्मी ज्वॉइन करने का था सपना.
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Published : Jan 24, 2020, 2:18 PM IST

गोरखपुरः देशभक्ति का ऐसा जज्बा... जो दसवीं कक्षा से ही अरविन्द के मन में सेना में भर्ती होने की ललक पैदा कर रहा था. देश के लिए मर मिटने का ख्वाब लिए अरविंद पढ़ाई के साथ-साथ व्यायाम भी किया करते थे, लेकिन भाग्य को कुछ और ही मंजूर था...ये सपना पूरा होने से पहले ही टूट गया. गोरखपुर के करमौरा के रहने वाले अरविंद दस साल पहले जब दसवीं कक्षा में थे, तभी व्यायाम करते हुए वह सिर के बल गिर गए थे. एक्सरसाइज के दौरान उल्टा लटक कर योग कर रहे अरविंद की अचानक पांव की पकड़ छूट गई और वह सिर के बल जमीन पर गिर पड़े, जिसके बाद वह 90 प्रतिशत तक दिव्यांग हो गए.

आर्मी ज्वॉइन करने का था सपना.

व्यायाम करते समय लगी थी चोट
अरविंद दसवीं कक्षा की पढ़ाई पड़ोसी जनपद महराजगंज के पनियरा ब्लॉक के देबीपुर स्थित निजी विद्यालय में करते थे. पढ़ाई करने के साथ आर्मी ज्वॉइन करने का ख्वाब उनके जहन में बसा था. उनके जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य था कि पढ़ाई करने के बाद आर्मी में नौकरी हासिल करेंगे, लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था. एक झटके में उनके सपने चकनाचूर हो गए. दवा, इलाज एवं ऑपरेशन के बावजूद पैरों पर खड़ा होने से महरूम हैं.

पिता करते हैं पेन्ट का काम
अरविंद के पिता रामनयन पेन्ट-पॉलिश का काम करते हैं. उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. उन्होंने बताया कि गर्दन की हड्डी फ्रैक्चर होने पर उसका उपचार कराने बीआरडी मेडिकल कॉलेज ले गए. वहां के चिकित्सकों ने केजीएमसी लखनऊ रेफर कर दिया. 21 जनवरी को वहां ऑपरेशन कराया गया. शरीर के दूसरे हिस्से से हड्डी निकालकर गर्दन की हड्डी जोड़ने की कोशिश की, लेकिन ऑपरेशन सफल नहीं रहा. इलाज के लिए तबसे बेटे को लेकर दर-दर भटकते रहे, लेकिन हालात जस के तस हैं.

बेहतर जिंदगी की आज भी है चाह
27 साल के अरविंद के मन में अब भी बेहतर जिंदगी जीने की ललक है, लेकिन वह कभी ठीक हो भी पाएगा या नहीं, यह न उसके पिता बता पाते हैं और न ही डॉक्टर. इलाज कराते-कराते घर में तंगी हो गई है. पिता को उम्मीद थी कि काबिल बेटा घर का सहारा बनेगा, लेकिन अब अपने पैरों पर खड़ा होने तक को मोहताज है.

हाथ-पैर नहीं करते काम
इस संबंध में ऑर्थो सर्जन डॉ. राजन शर्मा ने बताया कि अरविंद के दोनों हाथ और पांव काम करना बंद कर दिया है. ऑपरेशन होने के बाद भी कोई पावर नहीं आया. वह हाथ-पांव से कुछ भी नहीं कर सकता है. वह 90% से अधिक विकलांग हैं. कभी-कभी सीओ थेरेपी से चमत्कार होने पर थोड़ा बहुत असर हो जाता है.

घर की आर्थिक स्थिति नहीं सही है
दिव्यांग अरविंद के पिता की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. अभी तक सरकारी योजनाओं का लाभ तक उन्हें नहीं मिला. आयुष्मान भारत योजना के अन्तर्गत गोल्डन कार्ड से भी वह वंचित हैं. इसके अलावा दिव्यांग पेंशन भी नहीं मिलता है. गरीबी की दलदल में फंसे रामनयन के परिवार पर बेटे का घाव नासूर बन गया. अब तो उम्मीद का दामन भी उनके हाथों से फिसलने लगा है.

इसे भी पढ़ें- यूपी के स्थापना दिवस पर अटल आवासीय विद्यालय समेत कई योजनाओं का शुभारंभ करेंगे सीएम योगी

गोरखपुरः देशभक्ति का ऐसा जज्बा... जो दसवीं कक्षा से ही अरविन्द के मन में सेना में भर्ती होने की ललक पैदा कर रहा था. देश के लिए मर मिटने का ख्वाब लिए अरविंद पढ़ाई के साथ-साथ व्यायाम भी किया करते थे, लेकिन भाग्य को कुछ और ही मंजूर था...ये सपना पूरा होने से पहले ही टूट गया. गोरखपुर के करमौरा के रहने वाले अरविंद दस साल पहले जब दसवीं कक्षा में थे, तभी व्यायाम करते हुए वह सिर के बल गिर गए थे. एक्सरसाइज के दौरान उल्टा लटक कर योग कर रहे अरविंद की अचानक पांव की पकड़ छूट गई और वह सिर के बल जमीन पर गिर पड़े, जिसके बाद वह 90 प्रतिशत तक दिव्यांग हो गए.

आर्मी ज्वॉइन करने का था सपना.

व्यायाम करते समय लगी थी चोट
अरविंद दसवीं कक्षा की पढ़ाई पड़ोसी जनपद महराजगंज के पनियरा ब्लॉक के देबीपुर स्थित निजी विद्यालय में करते थे. पढ़ाई करने के साथ आर्मी ज्वॉइन करने का ख्वाब उनके जहन में बसा था. उनके जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य था कि पढ़ाई करने के बाद आर्मी में नौकरी हासिल करेंगे, लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था. एक झटके में उनके सपने चकनाचूर हो गए. दवा, इलाज एवं ऑपरेशन के बावजूद पैरों पर खड़ा होने से महरूम हैं.

पिता करते हैं पेन्ट का काम
अरविंद के पिता रामनयन पेन्ट-पॉलिश का काम करते हैं. उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. उन्होंने बताया कि गर्दन की हड्डी फ्रैक्चर होने पर उसका उपचार कराने बीआरडी मेडिकल कॉलेज ले गए. वहां के चिकित्सकों ने केजीएमसी लखनऊ रेफर कर दिया. 21 जनवरी को वहां ऑपरेशन कराया गया. शरीर के दूसरे हिस्से से हड्डी निकालकर गर्दन की हड्डी जोड़ने की कोशिश की, लेकिन ऑपरेशन सफल नहीं रहा. इलाज के लिए तबसे बेटे को लेकर दर-दर भटकते रहे, लेकिन हालात जस के तस हैं.

बेहतर जिंदगी की आज भी है चाह
27 साल के अरविंद के मन में अब भी बेहतर जिंदगी जीने की ललक है, लेकिन वह कभी ठीक हो भी पाएगा या नहीं, यह न उसके पिता बता पाते हैं और न ही डॉक्टर. इलाज कराते-कराते घर में तंगी हो गई है. पिता को उम्मीद थी कि काबिल बेटा घर का सहारा बनेगा, लेकिन अब अपने पैरों पर खड़ा होने तक को मोहताज है.

हाथ-पैर नहीं करते काम
इस संबंध में ऑर्थो सर्जन डॉ. राजन शर्मा ने बताया कि अरविंद के दोनों हाथ और पांव काम करना बंद कर दिया है. ऑपरेशन होने के बाद भी कोई पावर नहीं आया. वह हाथ-पांव से कुछ भी नहीं कर सकता है. वह 90% से अधिक विकलांग हैं. कभी-कभी सीओ थेरेपी से चमत्कार होने पर थोड़ा बहुत असर हो जाता है.

घर की आर्थिक स्थिति नहीं सही है
दिव्यांग अरविंद के पिता की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. अभी तक सरकारी योजनाओं का लाभ तक उन्हें नहीं मिला. आयुष्मान भारत योजना के अन्तर्गत गोल्डन कार्ड से भी वह वंचित हैं. इसके अलावा दिव्यांग पेंशन भी नहीं मिलता है. गरीबी की दलदल में फंसे रामनयन के परिवार पर बेटे का घाव नासूर बन गया. अब तो उम्मीद का दामन भी उनके हाथों से फिसलने लगा है.

इसे भी पढ़ें- यूपी के स्थापना दिवस पर अटल आवासीय विद्यालय समेत कई योजनाओं का शुभारंभ करेंगे सीएम योगी

Intro:गोरखपुर के करमौरा का एक शेरदिल नौजवान आर्मी में भर्ती होने के लिए पढाई के साथ व्यायाम कर समय गिरने पर उसका पूरा शरीर धाराशायी हो गया. उसका हाथ पांव काम करना बन्द कर दिया. स्वास्थ्य मेले में विकलांग प्रमाण हेतु आवेदन के लिए परीजनों के साथ पहूंचा था. नौ वर्ष बाद जारी हुआ 90% विकलांगता प्रमाण पत्र.

पिपराइच गोरखपुर: देश का नाम रोशन और उसकी आन पर जान निछावर करने का जजबा रखने वाला अरविन्द का सपना महज एक हादसे में चकनाचूर हो गया. दसवीं कक्षा में पढ़ाई करने साथ सेना में जाने का सपना देखता रहता था. पढ़ाई के साथ साथ भागदौड़ एक्सरसाइज भी करता रहा. एक दिन सुबह सवेरे एक्सरसाइज के दौरान गिरने से पूरा शरीर नाकाम हो गया. दोनो हाथ पावं खो दिया. और 90% विकलांग हो गया. दवा इलाज एवं आपरेशन के बावजूद भी पैरों पर खड़ा होने से महरुम है. अरविन्द भटहट स्वास्थ्य मेले में दिव्यांग प्रमाण पत्र हेतु आवेदन के लिए अपने पिता के साथ पहूंचा था. जब चिकित्सकों से आपबीती सुनाने लगे तो चिकित्सक भी भावुक हो उठे. चिकित्सक भी उसके जजबातों के कद्रदान हो गए. जब उसने कहा आर्मी में भर्ती होने के लिए व्यायाम करने के दौरान हादसे का शिकार हो गया दोनो हाथ पांव खोने से उसके ख्वाब विखर गए.
Body:जनपद के भटहट ब्लाक क्षेत्र के ग्राम पंचायत करमौरा निवासी रामनरायन निषाद का पुत्र अरविंद करीब दस वर्ष पहले दसवीं कक्षा की पढ़ाई पड़ोसी जनपद महराजगंज के पनियरा ब्लाक के देबीपुर स्थित एक निजी विद्यालय में करता था. पढाई करने के साथ आर्मी ज्वाईन करने का ख्वाब देख रहा था. उनके जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य था कि पढ़ाई करने के बाद आर्मी में नौकरी हासिल करेंगें. लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था. एक झटके में उसके सपने चकनाचुर हो गए. 6 जनवरी 2009 की सुबह सवेरे एक्सरसाइज के दौरान उल्टा लटक कर योगा कर रहा था कि अचानक पांव की पकड़ छूट गया और सिर के बल जमीन पर गिर पड़ा जिससे उनका पूरा शरीर धाराशायी हो गया. उनके पिता रामनयन पेन्ट पालिश का काम करते है. उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नही है. उन्होंने बताया कि गर्दन की हड्डी फैक्टर होने पर उसका उपचार कराने बीआरडी मेडिकल कालेज ले गये. वहां के चिकित्सकों ने केजीएमसी लखनऊ रेफर कर दिया. 21 जनवरी को वहां आपरेशन कराया गया. शरीर के दूसरे हिस्से से हड्डी निकाल गर्दन की हड्डी जोड़ने की कोशिश किया लेकिन आपरेशन फलाप रहा. इलाज के लिए तबसे बेटे को लेकर दर दर भटकते रहे लेकिन हालात जस के तस है.

*दिव्यांग पत्र के लिए स्वास्थ्य मेले में किया आवेदन*

दिव्यांग अरविन्द के पिता बताते कि मेरी आर्थिक स्थिति ठीक नही है अभी तक सरकारी योजनाओं का लाभ नही मिला. आयुष्मान भारत योजना के अन्तर्गत गोल्डन कार्ड से भी वंचित है. इसके अलावा दिव्यांग पेन्शन भी नही मिलता है. गरीबी की दलदल में फसे रामनयन के परिवार पर बेटे का घाव नासूर बन गया. अबतो उम्मीद का दामन भी उनके हाथों से फिसलने लगा है.
Conclusion:
*अरविन्द के जख्मों से रामनयन का परिवार सदमें*

अरविन्द से संबंधित लोग बताते है कि वह पढाई लिखाई में होनहार था. हर समय देश सेवा की बाते करता रहता था. उसका बस इतना ख्वाब था कि देश की सेवा करने के लिए आर्मी ज्वाईन करे. बतन पर मर मीटे लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था. इसके बावजूद भी अरविन्द ने हार नही माना और डाक्टर को भगवान को रुप मानते है और चमत्कार होने के इन्तजार में है.

*दिव्यांग अरविन्द परिवार में सबसे बड़ा है*

रामनयन बताते है कि अरविन्द उनका सबसे बड़ा बेटा है. महराजगंज जनपद के पनियरा ब्लाक अन्तर्गत एक निजी इण्टर कालेज में कक्षा 10वी का छात्र था. उसके पिता को उससे बहुत उम्मीद थी.बेटे को जुनून को देख कर उनको ऐसा लगता था कि बहुत कम समय में उकना बेटा सेना में नौकरी हासिल कर उनका हाथ बटायेगा आर्थिक तंगी को दूर होगी. अपनी बहनों के हाथ पीला करेगा. लेकिन एक हादसे में पूरे परिवार का सपना धाराशायी हो गया. उसके दो छोटे भाई दो छोटी बहनें है. जो अभी पढ़ाई करते है. पिता पेन्ट पालिश का काम करते है. पूरे परिवार की जिम्मेदारी के साथ दिव्यांग बेटे की दवाओं का खर्च भारी पड़ता है. उन्होंने बताया कि एक भी सरकारी योजनाओं का लाभ उनतक नही पहूंचा.

इस संबंध में आर्थो सर्जन डा राजन शर्मा ने बताया कि इसका दोनो हाथ दोनो पांव काम करना बंद कर दिया है. आपरेशन होने के भाद बाद भी कोई पावर नही आया. हाथ पांव से कुछ भी नही कर सकता है. 90% से अधिक विकलांग है कभी कभी सीओ थ्रेपी से चमत्कार होने पर थोड़ा बहुत असर हो जाता है.

बाइट-अरविन्द (दिव्यांग)
बाइट-रामनयन(दिव्यांग के पिता)
बाइट- डा राजन शाही(आर्थो सर्जन)


रफिउल्लाह अन्सारी 8318103822
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