गोरखपुर : शास्त्रीय संगीतज्ञ और वनस्पति शास्त्र के प्रोफेसर डॉ. शरद मणि त्रिपाठी 78 वर्ष की उम्र में भी अपने इस साधना में पूरी तरह रचे बसे हैं. उनके कंठ से निकले सुर और तानपुरा, सितार के तारों से करतब करतीं उनकी अंगुलियों से निकलने वाले स्वर आज भी सुनने वालों पर अजब जादू कर जाते हैं.
यह इनकी साधना और समर्पण ही है जो वनस्पति शास्त्र के प्रोफेसर होने के साथ ही इन्होंने शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाने में सफलता पायी. हालांकि इनके पिता ही इनके संगीत के गुरू रहे. वह नहीं चाहते थे कि शरद संगीत की दुनिया में आएं क्योंकि उनके नजर में यह बड़े ही संघर्ष और अर्थ अभाव की जिंदगी को जन्म देने वाला क्षेत्र माना जाता था. उनकी इच्छा एक ऐसे सफल बेटे को देखने की थी जो पहचान के साथ अर्थ का भी संकट ना आने दे.
इसलिए पढ़ाई में माहिर शरद मणि ने वनस्पति शास्त्र में पीएचडी की और अध्ययन-अध्यापन करते हुए बुद्धा पीजी कॉलेज कुशीनगर में वनस्पति शास्त्र के विभागाध्यक्ष भी रहे. तमाम शोधार्थी भी अपनी देखरेख में तैयार किए. उन्होंने इस बीच अपने संगीत की साधना को नहीं छोड़ा. पिता के सपनों को भी पूरा किया और अपने संगीत की इच्छा को भी इस मुकाम तक पहुंचाया कि प्रदेश की योगी सरकार ने इन्हें वर्ष 2020 के लिए संगीत नाटक अकादमी अवार्ड से नवाजने का निर्णय लिया है.
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संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार के लिए इस वर्ष हुआ इनका चयन
शरदमणि ने कभी पुरस्कार या सम्मान की लालसा नहीं रखी. उनके पिता इस विधा के महारथी थे. यह बात शरदमणि को काफी पसंद थी. यही वजह है कि शरद मणि जब विद्यार्थी जीवन में विज्ञान की पढ़ाई के साथ संगीत की शिक्षा में भी पारंगत हुए तो वह आकाशवाणी और दूरदर्शन जैसे केंद्रों से जुड़कर भी अपनी इस पहचान को लोगों तक पहुंचाते रहे. वर्ष 1962 से शुरू हुआ उनका यह सफर आज तक जारी है. शास्त्रीय संगीत के इस पूर्वांचल रत्न ने अपनी प्रस्तुतियों से महाराष्ट्र, झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, काशी जैसे शहरों में श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया.
दुनिया के कई देशों में भी उन्होंने मंच से वाहवाही बटोरी. आज भी अपनी साधना में पूरी तरह लीन हैं. इनके तमाम संगीत के विद्यार्थी आज भी इनसे शिक्षा लेते हैं. यह ऑनलाइन अपने विद्यार्थियों को ज्ञान बांटने में जुटे हुए हैं. इन्हें संगीत नाटक अकादमी का जो पुरस्कार इस वर्ष 11 अप्रैल को मिलना था, वह कोरोना की वजह से राज्यपाल ने टाल दिया. हालांकि इसके वह बहुत पहले से हकदार थे. देर से ही सही, उनकी इस प्रतिभा को आखिरकार पहचान मिल ही गई है.
सिंगापुर, नेपाल, मॉरीशस समेत कई देशों और प्रदेशों में दी प्रस्तुति
यह आकाशवाणी के ए-ग्रेड के कलाकार रहे हैं. सिंगापुर, नेपाल जैसे देशों में अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं. इनके पिता स्वर्गीय राम नारायण मणि त्रिपाठी जिनको लोग सरसरंग के नाम से भी जानते हैं, संगीत के मूर्धन्य विद्वान थे. उनकी परिकल्पना के आधार पर ही गोरखपुर विश्वविद्यालय में संगीत और ललित कला विभाग की स्थापना हुई.
शरद मणि गोरखपुर महोत्सव से लेकर कई अन्य मंचों पर भी सम्मानित हुए हैं. वह जिस सम्मान को सबसे बड़ा महसूस करते हैं, वह यह है कि वह अपने पिता की विरासत को पहचान दिलाने और उसके वजूद को कायम रखने में सफल रहे हैं. उन्होंने कहा कि संगीत नाटक अकादमी के पुरस्कार से पूरे पूर्वांचल का मान बढ़ा है. साथ ही संगीत की कठिन विधा में प्रशिक्षण ले रहे विद्यार्थियों को भी इससे ताकत मिलेगी. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि कोरोना की महामारी में लोग तनाव से मुक्ति के लिए संगीत को अपना सहारा बनाएं.