गोरखपुर: यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly election 2022) को लेकर सियासी गलियारों में सरगर्मी बढ़ती जा रही है. धर्म, अध्यात्म और क्रांतिकारी धरती के रूप में पहचान रखने वाला गोरखपुर राजनीति में भी अहम पहचान रखता है. यहां महिला राजनीति को लेकर भी क्रांति देखी जा सकती है. देश और प्रदेश में जब पहली बार 1952 में चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई, तो पहले ही इस क्षेत्र से महिला प्रत्याशी विधायक चुनकर सदन में पहुंची. यह सिलसिला वर्तमान समय में भी नहीं रुका. हर विधानसभा चुनाव में किसी न किसी सीट से महिला उम्मीदवार विजयी या दमदार प्रत्याशी के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती आ रही हैं.
यह महिलाएं उन राजनीतिक दलों के लिए बड़ी सबक भी हैं जो महिलाओं को आगे बढ़ाने, उन्हें 33% आरक्षण देने की बात करती हैं. जिस समय में महिलाएं चुनावी राजनीति में कदम रखा था, उस समय पुरुष प्रधान राजनीति का हुआ करता था. फिर भी यह चुनाव जीतने में कामयाब रहीं. यही नहीं कोई 2 तो कोई 5 बार तक अपने क्षेत्र से विधायक चुनी गईं. मौजूदा समय में भी जिले की 9 विधानसभा सीटों पर महिला उम्मीदवारी को लेकर जोर आजमाइश जारी है. फिलहाल चौरी चौरा विधानसभा सीट पर भाजपा की संगीता यादव विधायक (BJP MLA Sangeeta Yadav) के रूप में काबिज हैं.
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1952 में पहली विधायक यशोदा देवी बनीं थी
गौरतलब है कि जिले की बांसगांव विधानसभा सीट पर 1952 में सबसे पहले यशोदा देवी ने दावेदारी पेश कर विधायक बनी थीं. 1957 में भी यशोदा देवी पीछे नहीं रही और महिलाओं की भागीदारी को उन्होंने चुनावी प्रक्रिया में सुनिश्चित किया. इसके बाद हर चुनाव में किसी न किसी सीट पर महिला उम्मीदवारी होती रही. 1957 में ही धुरियापार विधानसभा सीट से यशोदा देवी विधायक बनी. 1962 में भी वह इस सीट पर चुनाव जीतने में कामयाब रहीं. मौजूदा समय में जो सीट चौरी चौरा विधानसभा के नाम से जानी जाती है, वह 1977 के दौरान झंगहा और बाद में मुंडेरा विधानसभा सीट के रूप में जानी जाती थी.
मुलायम सिंह को चूड़ियां पहनाने पहुंची थी शारदा देवी
इस सीट पर शारदा देवी ने 1977 में धमाकेदार एंट्री की और 2002 तक कुल 5 बार विधायक रहीं. उन्हें 1977, 1985, 1989, 1991 और 2002 में जीत मिली. वहीं शारदा देवी 1980, 1993 और 1996 का चुनाव हार भी गई थीं. उनके जीत का अंतर काफी बड़ा होता था और हार का आंकड़ा हजार 500 के वोटों में ही सिमट जाता था. यह एक ऐसी जुझारू महिला थीं, जो विधानसभा के अंदर मुलायम सिंह को चूड़ियां पहनाने पहुंच गई थीं. 1980 की तो जनता दल के प्रत्याशी के रूप में कौड़ीराम विधानसभा सीट से गोरखपुर और लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष शहीद रविंद्र सिंह की पत्नी गौरी देवी चुनाव मैदान में जीत का झंडा बुलंद की थीं. वह कांग्रेस के कद्दावर नेता लालचंद निषाद को हराकर विधानसभा पहुंचने में कामयाब हुई थीं.
किशोरी 1985 में कांग्रेस से विधायक चुनी गई थीं
इसी प्रकार सहजनवा विधानसभा सीट से किशोरी शुक्ला 1985 में कांग्रेस से विधायक चुनी गई थीं. उन्होंने प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे वीर बहादुर सिंह से अपने क्षेत्र में औद्योगिक विकास प्राधिकरण (Industrial Development Authority) के गठन को भी मंजूरी दिलाई थी. जिले की मालीराम विधानसभा सीट जिसके नाम प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री टीएन सिंह को हराने का रिकॉर्ड है. बाहुबली नेता ओम प्रकाश पासवान की मौत के बाद उनकी पत्नी सुभावती पासवान को वर्ष 1996 में विधायक बनाने का कार्य किया था. सुभावती पासवान बांसगांव लोकसभा सीट से सांसद भी चुनी गई थीं. वह जिला पंचायत अध्यक्ष भी रही हैं. वर्तमान में उनके बेटे बांसगांव लोकसभा सीट से सांसद तो एक बेटा इस विधानसभा सीट से विधायक भी है.
इसी प्रकार 2010 में पिपराइच विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में राजमती निषाद जो अपने पति पूर्व मंत्री जमुना निषाद की दुर्घटना में हुई मृत्यु के बाद प्रत्याशी बनी थीं. वह चुनाव जीतने में कामयाब रहीं. 2012 में जब सामान्य विधानसभा चुनाव हो रहा था तो इस क्षेत्र की जनता ने फिर से राजमती निषाद को अपना विधायक चुनकर सदन में भेजने का कार्य किया था. इस प्रकार देखा जा सकता है कि गोरखपुर की विभिन्न सीटों पर महिलाओं ने न सिर्फ अपनी उम्मीदवारी जताई बल्कि उसे कई बार जीतने में भी सफल रहीं. कैंपियरगंज सीट पर चिंता यादव की भी उम्मीदवारी रही. वह पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के पुत्र फतेह बहादुर सिंह से चुनाव हार गईं पर मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई.
फिल्म अभिनेत्री काजल निषाद मैदान में
फिल्म अभिनेत्री काजल निषाद गोरखपुर ग्रामीण विधानसभा सीट से 2012 का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ीं और जोरदार उपस्थिति दर्ज कराई. इस बार वह कैम्पियरगंज से ताल ठोक रहीं हैं. इस बार 2022 के चुनाव में इस क्षेत्र की 9 सीटों पर महिला उम्मीदवारों को लेकर चर्चा तेज है. कांग्रेस ने खजनी विधानसभा से रजनी देवी को उम्मीदवार बनाया है. अब देखना यह है कि इन सीटों पर कौन-कौन सा दल महिलाओं को उम्मीदवार बनाता है, या महिलाओं को राजनीति में भागीदारी देने, उन्हें 33% आरक्षण देने की बात को सच करता नजर आता है.
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