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गोरखपुर में बोले प्रदेश संस्कृत संस्थान अध्यक्ष, संस्कृत भाषा ही नहीं अपितु शिक्षा का माध्यम होना चाहिए

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Published : Oct 20, 2019, 11:23 PM IST

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में आयोजित संस्कृत भाषा कार्यक्रम में प्रदेश संस्कृत संस्थान के अध्यक्ष डॉ. वाचस्पति मिश्र पहुंचे. इस दौरान उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा ही नहीं बल्कि शिक्षा का माध्यम भी होना चाहिए.

संस्कृत भाषा कार्यक्रम में पहुंचे डॉ. वाचस्पति मिश्र

गोरखपुर: जिले में रविवार को श्री गोरखनाथ संस्कृत विद्यापीठ स्नाकोत्तर महाविद्यालय गोरखनाथ मंदिर में युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ की 125वीं जयंती वर्ष समारोह आयोजित किया गया. आयोजित समारोह में संस्कृत भाषा और महंत दिग्विजय नाथ विषय पर कार्यक्रम के मुख्य वक्ता उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान के अध्यक्ष डॉ. वाचस्पति मिश्र मौजूद रहे.

संस्कृत भाषा कार्यक्रम में पहुंचे डॉ. वाचस्पति मिश्र.

कार्यक्रम में पहुंचे संस्कृत संस्थान के अध्यक्ष
कार्यक्रम में मुख्य रूप से श्री गोरखनाथ संस्कृत विद्यापीठ गोरखनाथ मंदिर के प्राचार्य और सदस्य उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान डॉ. अरविंद कुमार चतुर्वेदी, कार्यक्रम की अध्यक्षता शिक्षा परिषद के वरिष्ठ सदस्य प्रथम नाथ मिश्र, विशिष्ट अतिथि के रूप में विनोद कुमार मिश्रा और कार्यक्रम का संचालन पंडित बृजेश मणि मिश्र ने किया.

संस्कृत भाषा ही नहीं बल्कि संस्कृति है
डॉ. वाचस्पति मिश्र का कहना था कि संस्कृत का अध्ययन एक भाषा के रूप में ही केवल न हो, संस्कृत माध्यम से शिक्षा देने की आवश्यकता है. संस्कृत केवल भाषा ही नहीं है, अपितु जीती जागती संस्कृति है. जो संपूर्ण भारत राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने का कार्य कर रही है. भारत को स्वतंत्रता दिलाने में अग्रणी भूमिका निभाने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस ने आईएएस की परीक्षा संस्कृत विषय के साथ ही दी थी.

इसे भी पढ़ें:- एकदिवसीय दौरे पर गोरखपुर पहुंचे CM योगी, करेंगे समीक्षा बैठक

संस्कृत को जानने के पश्चात ही भारत का विश्व गुरु बनने का सपना पूरा हो सकता है. संस्कृत विद्या शिक्षा अलग नहीं होनी चाहिए, अपितु विश्वविद्यालयों में संस्कृत का अलग भवन होना चाहिए. जहां संस्कृत शास्त्रों का अध्ययन और अध्यापन हो सके. संस्कृत के शब्दों में ही विज्ञान छुपा है. अंग्रेजी संस्कृत का बिगड़ा हुआ रूप है. संस्कृत का सही तरीके से उच्चारण न करने के कारण से अंग्रेजी भाषा की उत्पत्ति हुई है. हमें अपनी भाषा पर गर्व की अनुभूति होनी चाहिए.
-डॉ. वाचस्पति मिश्र, अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान

गोरखपुर: जिले में रविवार को श्री गोरखनाथ संस्कृत विद्यापीठ स्नाकोत्तर महाविद्यालय गोरखनाथ मंदिर में युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ की 125वीं जयंती वर्ष समारोह आयोजित किया गया. आयोजित समारोह में संस्कृत भाषा और महंत दिग्विजय नाथ विषय पर कार्यक्रम के मुख्य वक्ता उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान के अध्यक्ष डॉ. वाचस्पति मिश्र मौजूद रहे.

संस्कृत भाषा कार्यक्रम में पहुंचे डॉ. वाचस्पति मिश्र.

कार्यक्रम में पहुंचे संस्कृत संस्थान के अध्यक्ष
कार्यक्रम में मुख्य रूप से श्री गोरखनाथ संस्कृत विद्यापीठ गोरखनाथ मंदिर के प्राचार्य और सदस्य उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान डॉ. अरविंद कुमार चतुर्वेदी, कार्यक्रम की अध्यक्षता शिक्षा परिषद के वरिष्ठ सदस्य प्रथम नाथ मिश्र, विशिष्ट अतिथि के रूप में विनोद कुमार मिश्रा और कार्यक्रम का संचालन पंडित बृजेश मणि मिश्र ने किया.

संस्कृत भाषा ही नहीं बल्कि संस्कृति है
डॉ. वाचस्पति मिश्र का कहना था कि संस्कृत का अध्ययन एक भाषा के रूप में ही केवल न हो, संस्कृत माध्यम से शिक्षा देने की आवश्यकता है. संस्कृत केवल भाषा ही नहीं है, अपितु जीती जागती संस्कृति है. जो संपूर्ण भारत राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने का कार्य कर रही है. भारत को स्वतंत्रता दिलाने में अग्रणी भूमिका निभाने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस ने आईएएस की परीक्षा संस्कृत विषय के साथ ही दी थी.

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संस्कृत को जानने के पश्चात ही भारत का विश्व गुरु बनने का सपना पूरा हो सकता है. संस्कृत विद्या शिक्षा अलग नहीं होनी चाहिए, अपितु विश्वविद्यालयों में संस्कृत का अलग भवन होना चाहिए. जहां संस्कृत शास्त्रों का अध्ययन और अध्यापन हो सके. संस्कृत के शब्दों में ही विज्ञान छुपा है. अंग्रेजी संस्कृत का बिगड़ा हुआ रूप है. संस्कृत का सही तरीके से उच्चारण न करने के कारण से अंग्रेजी भाषा की उत्पत्ति हुई है. हमें अपनी भाषा पर गर्व की अनुभूति होनी चाहिए.
-डॉ. वाचस्पति मिश्र, अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान

Intro:गोरखपुर। संस्कृत का अध्ययन एक भाषा के रूप में ही केवल ना हो, संस्कृत माध्यम से शिक्षा देने की आवश्यकता है। संस्कृत केवल भाषा ही नहीं है, अपितु जीती जागती संस्कृति है। जो संपूर्ण भारत राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने का कार्य कर रही है, भारत को स्वतंत्रता दिलाने में अग्रणी भूमिका निभाने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस ने आईएएस की परीक्षा संस्कृत विषय के साथ ही दी थी। उक्त बातें श्री गोरखनाथ संस्कृत विद्यापीठ स्नाकोत्तर महाविद्यालय गोरखनाथ मंदिर गोरखपुर में आयोजित युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ की 125 वीं जयंती वर्ष समारोह के अवसर पर संस्कृत भाषा एवं महंत दिग्विजय नाथ विषय पर कार्यक्रम के मुख्य वक्ता उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान के अध्यक्ष डॉ वाचस्पति मिश्र ने कही।

कार्यक्रम में मुख्य रूप से श्री गोरखनाथ संस्कृत विद्यापीठ गोरखनाथ मंदिर के प्राचार्य वह सदस्य उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान डॉ अरविंद कुमार चतुर्वेदी, कार्यक्रम की अध्यक्षता शिक्षा परिषद के वरिष्ठ सदस्य प्रथम नाथ मिश्र, विशिष्ट अतिथि के रूप में विनोद कुमार मिश्रा और कार्यक्रम का संचालन पंडित बृजेश मणि मिश्र ने किया।


Body:कार्यक्रम के मुख्य वक्ता उत्तर प्रदेश संस्थान के अध्यक्ष डॉक्टर वाचस्पति मिश्र ने ईटीवी संवाददाता से खास बात करते हुए कहा कि सब संस्कृत को जानने के पश्चात ही भारत का विश्व गुरु बनने का सपना पूरा हो सकता है। संस्कृत विद्या शिक्षा अलग नहीं होनी चाहिए, अपितु विश्वविद्यालयों में संस्कृत का अलग भवन होना चाहिए। जहां संस्कृत शास्त्रों का अध्ययन एवं अध्यापन हो सके, संस्कृत के शब्दों में ही विज्ञान छुपा है। विभिन्न उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि अंग्रेजी संस्कृत का बिगड़ा हुआ रूप है। संस्कृत का सही तरीके से उच्चारण ना करने के कारण से अंग्रेजी भाषा की उत्पत्ति हुई, हमें अपनी भाषा पर गर्व की अनुभूति होनी चाहिए।

बाइट - डॉ. वाचस्पति मिश्र, अध्यक्ष उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान


निखिलेश प्रताप
गोरखपुर
9453623738


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