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आस्था और आजादी के वीरों का अद्भुत केंद्र है मां 'तरकुलहा देवी' का मंदिर - Babu Bandhu Singh

चैत्र नवरात्रि मंगलवार 13 अप्रैल से शुरुआत हो गई है. मां दुर्गा की पूजा-अर्चना और देवी मंदिरों में दर्शन-पूजन का यह विशेष हिंदू पर्व है. इसमें मां के भक्त बड़ी संख्या में मंदिरों में पूजन-अर्चन के लिए पहुंचते हैं. कुछ ऐसा ही नजारा गोरखपुर के तरकुलहा देवी मंदिर में भी चैत्र नवरात्रि के पहले ही दिन देखने को मिला, जहां भक्तों की बड़ी संख्या मां के दर्शन के लिए उमड़ पड़ी थी.

देवीपुर की तरकुलहा देवी.
देवीपुर की तरकुलहा देवी.
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Published : Apr 14, 2021, 4:55 PM IST

गोरखपुरः चैत्र नवरात्रि के पहले दिन कोरोना की तमाम बंदिशें और गाइडलाइन को दरकिनार करते हुए भक्त तरकुलहा देवी मंदिर में दर्शन-पूजन करने आए. यह मंदिर एक ऐसा मंदिर है जो आस्था के साथ सन 1857 की क्रांति के इतिहास को भी अपने साथ जोड़ता है. इस मंदिर की उत्पत्ति और प्रतिष्ठा भी आजादी के नायकों से ही जोड़ी जाती है.

चैत्र नवरात्रि.

बाबू बंधु सिंह की शहादत से आराधना का बड़ा केंद्र बना

गोरखपुर जिला मुख्यालय से करीब 22 किलोमीटर दूर देवीपुर गांव में तरकुलहा माता का मंदिर स्थापित है. सन 1857 की क्रांति के समय यहां के डुमरी रियासत के बाबू बंधु सिंह अंग्रेजों की नीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे थे. अंग्रेजी हुकूमत का मुंह तोड़ जवाब दे रहे थे. जिसकी वजह से उनकी गिरफ्तारी के लिए अंग्रेजों ने जाल बिछाना शुरू कर दिया था. मौजूदा समय में जहां तरकुलहा देवी का मंदिर है. वह क्षेत्र प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय घना जंगल का हुआ करता था. इसी जंगल में छुपकर बाबू बंधु सिंह अंग्रेजो के खिलाफ अपना गुरिल्ला युद्ध अभियान छेड़े हुए थे.

तरकुलहा देवी मंदिर पर लगी श्रद्धालुओं की भीड़.
तरकुलहा देवी मंदिर पर लगी श्रद्धालुओं की भीड़.

बाबू बंधु सिंह की कहानी

जंगल की तरफ से गुजरने वाले हर अंग्रेजी सिपाही का वह सिर कलम कर देते थे और शक्ति की देवी मां अंबे की पूजा अर्चना के लिए उन्होंने जंगल में जो पिंडी रूप बना रखा था, उस पर सिपाहियों का शीश चढ़ा देते थे. 12 अगस्त 1857 को अंग्रेजों ने बाबू बंधु सिंह को फांसी दे दी. ऐसा कहा जाता है कि इस दौरान 7 बार फांसी का फंदा टूटा था. बंधु सिंह ने जब मां का आह्वान किया था, तब जाकर अंग्रेज उन्हें फांसी दे पाने में सफल हुए थे. आज उनकी याद और देवी मां की प्रतिष्ठा का यह अद्भुत केंद्र लोगों की आस्था का बड़ा केंद्र है. इसे प्रदेश की योगी सरकार शक्ति पीठ और पर्यटन केंद्र के रूप में करोड़ों के बजट से विकसित कर रही है.

बाबू बंधु सिंह.
बाबू बंधु सिंह.

श्रद्धालुओं ने की देवी मां की आराधना

तत्कालीन जंगल में जिस स्थान पर पिंडी रूप स्थापित कर बंधु सिंह मां भगवती की पूजा करते थे. वहां तरकुल का पेड़ हुआ करता था. ऐसा कहा जाता है कि जब बंधु सिंह को फांसी लगाई गई तो तरकुल का पेड़ टूट गया और उसमें से रक्तस्राव होने लगा. उस समय लोग अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलित थे. बंधु सिंह की आराध्य देवी पिंडी रूप के पास उनकी प्राण की रक्षा के लिए मां से प्रार्थना भी कर रहे थे. यही वजह है कि जब बंधु सिंह ने मां को देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देने के लिए याद किया तो यहां का तरकुल का पेड़ भी टूट गया और रक्तस्राव होने लगा. इसके बाद यह स्थान धीरे-धीरे पूजनीय हो गया.

तरकुलहा देवी.
तरकुलहा देवी.

छोटे से बड़े रूप में आज यह मंदिर स्थापित हो गया है. लोगों की श्रद्धा इस कदर बढ़ी की सिर्फ गोरखपुर ही नहीं दूरदराज के जिलों से भी लोग यहां दर्शन पूजन के लिए आते हैं. यहां लोग बंधु सिंह की याद में और देवी मां को बलि चढ़ाने के क्रम में बकरे की बलि भी देते हैं. प्रदेश की योगी सरकार ने भी इसे शक्तिपीठों में स्थान देते हुए पर्यटन के केंद्र में विकसित करते हुए करोड़ों की धनराशि यहां के विकास पर खर्च कर रही है. कोरोना की महामारी के बीच शुरू हुए नवरात्रि के इस पर्व पर लोगों ने देश और समाज से इस महामारी के खत्म होने की भी मां से मनोकामना की.

गोरखपुरः चैत्र नवरात्रि के पहले दिन कोरोना की तमाम बंदिशें और गाइडलाइन को दरकिनार करते हुए भक्त तरकुलहा देवी मंदिर में दर्शन-पूजन करने आए. यह मंदिर एक ऐसा मंदिर है जो आस्था के साथ सन 1857 की क्रांति के इतिहास को भी अपने साथ जोड़ता है. इस मंदिर की उत्पत्ति और प्रतिष्ठा भी आजादी के नायकों से ही जोड़ी जाती है.

चैत्र नवरात्रि.

बाबू बंधु सिंह की शहादत से आराधना का बड़ा केंद्र बना

गोरखपुर जिला मुख्यालय से करीब 22 किलोमीटर दूर देवीपुर गांव में तरकुलहा माता का मंदिर स्थापित है. सन 1857 की क्रांति के समय यहां के डुमरी रियासत के बाबू बंधु सिंह अंग्रेजों की नीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे थे. अंग्रेजी हुकूमत का मुंह तोड़ जवाब दे रहे थे. जिसकी वजह से उनकी गिरफ्तारी के लिए अंग्रेजों ने जाल बिछाना शुरू कर दिया था. मौजूदा समय में जहां तरकुलहा देवी का मंदिर है. वह क्षेत्र प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय घना जंगल का हुआ करता था. इसी जंगल में छुपकर बाबू बंधु सिंह अंग्रेजो के खिलाफ अपना गुरिल्ला युद्ध अभियान छेड़े हुए थे.

तरकुलहा देवी मंदिर पर लगी श्रद्धालुओं की भीड़.
तरकुलहा देवी मंदिर पर लगी श्रद्धालुओं की भीड़.

बाबू बंधु सिंह की कहानी

जंगल की तरफ से गुजरने वाले हर अंग्रेजी सिपाही का वह सिर कलम कर देते थे और शक्ति की देवी मां अंबे की पूजा अर्चना के लिए उन्होंने जंगल में जो पिंडी रूप बना रखा था, उस पर सिपाहियों का शीश चढ़ा देते थे. 12 अगस्त 1857 को अंग्रेजों ने बाबू बंधु सिंह को फांसी दे दी. ऐसा कहा जाता है कि इस दौरान 7 बार फांसी का फंदा टूटा था. बंधु सिंह ने जब मां का आह्वान किया था, तब जाकर अंग्रेज उन्हें फांसी दे पाने में सफल हुए थे. आज उनकी याद और देवी मां की प्रतिष्ठा का यह अद्भुत केंद्र लोगों की आस्था का बड़ा केंद्र है. इसे प्रदेश की योगी सरकार शक्ति पीठ और पर्यटन केंद्र के रूप में करोड़ों के बजट से विकसित कर रही है.

बाबू बंधु सिंह.
बाबू बंधु सिंह.

श्रद्धालुओं ने की देवी मां की आराधना

तत्कालीन जंगल में जिस स्थान पर पिंडी रूप स्थापित कर बंधु सिंह मां भगवती की पूजा करते थे. वहां तरकुल का पेड़ हुआ करता था. ऐसा कहा जाता है कि जब बंधु सिंह को फांसी लगाई गई तो तरकुल का पेड़ टूट गया और उसमें से रक्तस्राव होने लगा. उस समय लोग अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलित थे. बंधु सिंह की आराध्य देवी पिंडी रूप के पास उनकी प्राण की रक्षा के लिए मां से प्रार्थना भी कर रहे थे. यही वजह है कि जब बंधु सिंह ने मां को देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देने के लिए याद किया तो यहां का तरकुल का पेड़ भी टूट गया और रक्तस्राव होने लगा. इसके बाद यह स्थान धीरे-धीरे पूजनीय हो गया.

तरकुलहा देवी.
तरकुलहा देवी.

छोटे से बड़े रूप में आज यह मंदिर स्थापित हो गया है. लोगों की श्रद्धा इस कदर बढ़ी की सिर्फ गोरखपुर ही नहीं दूरदराज के जिलों से भी लोग यहां दर्शन पूजन के लिए आते हैं. यहां लोग बंधु सिंह की याद में और देवी मां को बलि चढ़ाने के क्रम में बकरे की बलि भी देते हैं. प्रदेश की योगी सरकार ने भी इसे शक्तिपीठों में स्थान देते हुए पर्यटन के केंद्र में विकसित करते हुए करोड़ों की धनराशि यहां के विकास पर खर्च कर रही है. कोरोना की महामारी के बीच शुरू हुए नवरात्रि के इस पर्व पर लोगों ने देश और समाज से इस महामारी के खत्म होने की भी मां से मनोकामना की.

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