गोरखपुरः वैश्विक पटल पर न सिर्फ भारतीय संस्कृति, बल्कि यहां का मौसम भी अपनी एक अलग पहचान रखता है, जो पश्चिमी देशों को झकझोर कर रख देता है. वसंत ऋतु प्रकृति को वसंती रंग से सराबोर कर देता है. माघ के महीने की पंचमी को वसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है. मौसम का सुहाना होना इस मौके को और रूमानी बना देता है.
दुल्हन की तरह सजी है धरती
वसंत ऋतु के मौसम में धरती दुल्हन की तरह सजी है. मौसम के अनुरूप खिलने वाले रंग-बिरंगे सुगंधित फूल, पेड़-पौधों की हरियाली, लहलहाती फसल, हर तरह वसंत बहार की रौनक बिखरी हुई है. मदमस्त हवाएं, चमन में खिले फूलों की खुशबू, बागों में चहकती कोयल की कूक, फलों के वृक्षों पर लगे बौर के सुगंध देख कर तनमन में प्राकृतिक सौंदर्य का एहसास होने लगता है.
वसंत ऋतु के आगाज का समय
हिन्दू पंचांग के मुताबिक वसंत ऋतु का आगाज माघ महीने की शुक्ल पंचमी से होता है, जो फाल्गुन और चैत्र मास में मनाया जाता है. उल्लेखनीय है कि हिन्दू पंचांग का पहला मास चैत्र और अंतिम फाल्गुन है. इसके अनुसार हिन्दू पंचांग के वर्ष का पहला और अंतिम माह वसंत ऋतु में आता है. इस मौसम के आने पर सर्दी कम और तापमान में गर्मी का मीठा आभास होने लगता है, जिससे चहुंओर मौसम सुहावना हो जाता है.
वसंत ऋतु की विशेषताएंं
वसंत ऋतु को ऋतुराज कहा जाता है. यहां की हिन्दू सभ्यता में भी ऋतुराज का खास महत्व है. इस ऋतु में वसंत पंचमी, शिवरात्री और होली तीन प्रमुख त्योहार मनाया जाता है. वृक्षों पर नए पत्ते निकलने लगते हैं. आम के वृक्ष बौरों से सजने लगते हैं. रवी फसलों में खास कर सरसों के पीले फूल और मटर के गुलाबी फूलों का जादू और गेहूं की हरियाली से धरती का नजारा जन्नत नुमा दिखाई देने लगता हैं.
पतझड़ के बाद वसंत ऋतु का होता है आगमन
पछुआ पवन के चलते ही पतझड़ के मौसम का आगाज हुआ. वहीं दरख्तों से पत्तों का टूट कर जूदा होना पतझड के मौसम की पुष्टि करता है. ठंड की मार से पेड़-पौधों का विकास मानो ठहर सा जाता है. लेकिन जाते-जाते इसके पीछे हसीन ख्वाब का संकेत छोड़ जाता है. इसी संकेत के साथ वसंत ऋतु का दस्तक होता है. इसे बहारों का मौसम भी कहते है. इस मौसम में धरती हराभरा हो जाती है. जिधर भी नजर पड़ती है, हर तरफ लहलहाती फसलें किसान के दिल को ठंडक पहुंचाती हैं
वसंत ऋतु में पड़ने वाले प्रमुख त्योहार
त्योहारों की महत्ता पर प्रकाश डाले तो इस ऋतु के आरम्भ में ही वसंत पंचमी मनाया जाता है. ठीक इसके मध्य में महाशिवरात्रि का त्योहार हिन्दू समाज को भक्ति में लीन कर देता है. वहीं इस मौसम का सबसे खास त्योहार होली है, जो संपूर्ण भारत को अपने रंग में सराबोर कर देता है. वहीं भारतीय संगीत साहित्य और कला में इस मौसम का महत्वपूर्ण स्थान है. संगीत में भी एक विशेष राग वसंत के नाम पर बनाया गया है, जिसे राग बसंत कहते हैं.
वैज्ञानिक दृष्टि से वसंत ऋतु का महत्व
महायोगी गोरखनाथ कृषि विज्ञान केंद्र गोरखपुर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आरपी सिंह के अनुसार वसंत ऋतु का मौसम आनन्दायी होता है, जिसका आगमन सर्दियों के 3 महीने बाद फरवरी माह से शुरू होता है. इस ऋतु में जलवायु सम अर्थात सर्दी व गर्मी की अधिकता नहीं होती है. इस ऋतु में गुलाब, सरसों, गेदा, चना, मटर, मसूर, अरहर, गेहूं आदि फसलों में फूल बहुतायत में खिलते हैं. फिजाओं में इन फूलों की सुगंध और मादकता का प्रवेश होने लगता है.
उल्लास का प्रतीक है वसंत ऋतु
वह कहते हैं कि रंग-बिरंगे फूलों को देख कर आंखें तृप्त हो जाती हैं. पुराने पेड़ों की पत्तियां झड़ती हैं और उनमें नई कोमल पत्तियां निकलती हैं. टेसू के फूल, आम की मंजरियां, नव किसलय दल पेड़ों की शोभा में चार चांद लगा देते हैं. मानव समुदाय रजाई-चादर और ऊनी वस्त्रों के आवरण से निकलकर स्वस्थ अंगड़ाई लेने लगता है. इसी उल्लास का प्रतीक है वसंत पंचमी, महाशिवरात्रि और होली का त्योहार. इस बसंत के मौसम में त्योहार हमारी संस्कृति, सभ्यता, सद्भाव और विश्वास परंपराओं को एकजुट कर नई ऊर्जा का संचार करते हैं.
कवि लिखते हैं गीत
वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आरपी सिंह बताते हैं कि वसंत ऋतु के मौसम की सुंदरता और चारों ओर की खुशियां मस्तिष्क को कलात्मक बनाती हैं. साथ ही आत्मविश्वास के साथ नए कार्य शुरू करने के लिए शरीर को ऊर्जा देती है. बहारों के मौसम में कोयल की कूक से प्रेरित कवि नाना प्रकार की रचनाएं रचते हैं. सुबह के पहर बागों में चिड़ियों की चहक और चांदनी रात में चांद की रोशनी में मौसम सुहावना और शांत तरोताजा हवाएं मन को एकाग्र करती हैं.
किसान होली के गीत गाते हैं. लोक गीतों की धुन पर सभी नाच उठते हैं. वसंत ऋतु की इसी खूबियों के कारण गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा था ऋतुओं में मैं वसंत हूं. यह किसानों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण मौसम होता है. क्योंकि फसलें पुष्पन के बाद पकने लगती हैं और उन्हें काटने का समय होता है और यह मौसम किसानों के लिए किसी उत्सव से कम नहीं होता है.
कामकाज के आपाधापी में लोग वसंती बहार से रहते हैं महरूम
डॉ. आरपी सिंह कहते हैं कि वर्तमान के शहरी युग में प्राकृतिक वनस्पति का अभाव है तो वहीं दूसरी तरफ प्रदूषित वातावरण. ऊपर से कामकाज की आपाधापी अधिक होने के कारण लोग वसंत का आनंद नहीं ले पाते हैं कि कब आता है, चला जाता है. कब पेड़ों के पत्ते झड़ते हैं, कब नए पत्ते उगते हैं, कब कलियों ने जादू चलाया और भौरों ने इसका रसास्वादन किया. बहुत कुछ ज्ञात ही नहीं होता है. वसंत का सीधा संबंध प्रकृति से है. पेड़ों, पहाड़ों, नदियों, बाग बगीचों, झीलों से है. अतः प्रकृति की देखभाल जरूरी है. वह कहते हैं कि धरती पर बाग बगीचों की भरमार हो लोगों की पीड़ा घटे, वसंत ऋतु की यही चाह है. वसंत सौंदर्य उन्नति और नवीन का दूसरा नाम है. हम सभी को इसका आनंद उठाना चाहिए.
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