गोरखपुरः देश के आजादी की खातिर यहां के 19 सत्याग्रही फांसी के फंदे पर झूल गए. वहीं करीब 157 लोगों को कई सालों की सजा भी काटनी पड़ी. 4 फरवरी 1922 को हुए चौरी चौरा के जन आंदोलन का परिणाम ये रहा कि देश में असहयोग आंदोलन चला रहे महात्मा गांधी को भी 12 फरवरी 1922 को अपना असहयोग आंदोलन वापस लेना पड़ा. इस जन आंदोलन में 237 लोगों के खिलाफ अभियोग पंजीकृत किया गया था. जिसमें 228 लोगों को सेशन जज की कोर्ट में पेश किया गया था. मुकदमे के ऐतिहासिक फैसले में 172 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई थी. लेकिन अंत में मदन मोहन मालवीय जी के कुशल पैरवी की वजह से मात्र 19 लोगों को ही मौत की सजा सुनाई गई और उन्हें फांसी दी गई.
19 मां भारती के सपूतों को मिली थी फांसी की सजा
अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचार से मुक्ति के लिए चौरी चौरा के करीब सैकड़ों गांव के लोगों में काफी आक्रोश था. विदेशी वस्तुओं, कपड़ों के खिलाफ यह लोग आंदोलनरत थे. अंग्रेजी हुकूमत की दमनकारी नीतियों के खिलाफ सत्याग्रही शांतिपूर्वक जुलूस निकाल रहे थे. इस दौरान थाने के पास से जब सत्याग्रहियों का जुलूस गुजरा तो अंग्रेजी हुकूमत के सिपाहियों ने सत्याग्रहियों को रोकने का प्रयास किया. जब वह नहीं रुके तो उन पर लाठी चार्ज कर दिया गया. इसके बावजूद अहिंसा के पुजारी यह सत्याग्रही अपने आंदोलन की ओर आगे बढ़ते रहे. लेकिन बर्बर सिपाहियों ने इस दौरान सत्याग्रहियों के ऊपर गोली चला दी. जिसमें 3 सत्याग्रही शहीद हो गए. गोलीकांड के बाद उपजे आक्रोश में भीड़ ने थाने को फूंक दिया था. इस घटना में 23 सिपाही मारे गए थे. जिसके बाद अंग्रेजों का तांडव शुरू हुआ और मुकदमा चलाकर 19 सत्याग्रहियों को फांसी की सजा दी गई. लेकिन इस घटनाक्रम ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वतंत्रता आंदोलन के इस आंदोलन को यादगार बना दिया.
देशभक्ति की ऐसी मिसाल इसमें देखने को मिली, जिसमें हिंदू-मुस्लिम के बीच न कोई विवाद दिखा और न ही कोई अलगाव. सभी एकजुट होकर अंग्रेजी हुकूमत की दमनकारी नीतियों के खिलाफ ऐसे उठ खड़े हुए कि देश में आंदोलनों की बयार बह गयी.
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योगी सरकार मना रही है इस जन आंदोलन का शताब्दी वर्ष
सत्याग्रहियों को वर्ष 1923 की अलग-अलग तिथियों में अलग-अलग जेलों में फांसी पर लटकाया गया था. 4 फरवरी 1922 को हुई इस घटना के 100 साल पूरे होने पर प्रदेश की योगी सरकार मौजूदा समय में इसका शताब्दी वर्ष समारोह मना रही है. शहीदों की याद में चौरी चौरा रेलवे स्टेशन के बगल में 1973 में शहीद स्मारक बनाया गया था जो करीब 12.2 मीटर ऊंचा है. मौजूदा समय में योगी सरकार इस स्थान के सुंदरीकरण और इसे पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने को लेकर कई तरह की पहल कर रही है. स्थानीय लोग हों या फिर समाजसेवी, राजनैतिक या इतिहास से जुड़े हुए लोग सभी चौरी-चौरा की इस क्रांति को आजादी के लिए लड़े गए किसी भी जन आंदोलन में महत्वपूर्ण मानते हैं. जहां से अंग्रेजो के खिलाफ उग्र आंदोलन की पटकथा लिखी गई थी.
चौरी-चौरा जनआंदोलन में हिंदू और मुसलमान के बीच निकटता का भी बोध होता है. यही वजह है कि इस आंदोलन में सजा-ए-मौत पाने वाले सेनानियों में पहला नाम अब्दुल्ला का था. जिसमें लाल मोहम्मद और नजर अली भी नायको की श्रेणी में शुमार थे.