ETV Bharat / state

जिनोम सीक्वेंसिंग से गंभीर बीमारियों का गोरखपुर एम्स में होगा इलाज, जानिए कैसे?

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) गोरखपुर में जिनोम सीक्वेंसिंग से गंभीर बीमारियों का इलाज हो सकेगा. इसके लिए बायोकमिस्ट्री विभाग ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है.

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान
author img

By

Published : Mar 29, 2023, 4:29 PM IST

गोरखपुर: पूर्वांचल समेत बिहार और नेपाल क्षेत्र से आने वाले गंभीर रोगियों के इलाज में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) अब नई पद्धति का सहारा लेने जा रहा है. पैथोलॉजी, रेडियो थेरेपी और एक्सरे, एमआरआई जैसी जांच के बाद भी बीमारियों के सटीक इलाज में सफलता नहीं मिलने पर अब 'जिनोम सीक्वेंसिंग' जैसी विधि का एम्स सहारा लेगा. इसके लिए एम्स में बहुत जल्द जिनोम सीक्वेंसिंग की मशीन स्थापित की जाएगी.

एम्स के बायो केमिस्ट्री विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर शैलेंद्र कुमार द्विवेदी के अनुसार इस मशीन के जरिए बैक्टीरिया, फंगस और वायरस की जिनोम सीक्वेंसिंग करके बीमारियों की रोकथाम का प्रयास होगा. बायोकमिस्ट्री विभाग ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है. जिनोम सीक्वेंसिंग की मशीन लग जाने के बाद शोध कार्यों को भी मदद मिलेगी. विभिन्न बीमारियों के कारक बैक्टीरिया, वायरस, फंगस की जीनोम सीक्वेंसिंग कर उसकी रोकथाम के उपाय को भी ढूंढा जा सकेगा. यह भविष्य में होने वाली बीमारियों के रोकथाम का उपाय तलाशने में भी मदद करेगी. यदि कैंसर का कोई रोगी है तो जिनोम सीक्वेंसिंग से कैंसर के कारणों का पता लगाकर उसका सटीक उपचार किया जा सकेगा. इसके अलावा यदि उसके जीन में कोई अन्य बदलाव दिखता है. जिससे भविष्य में किसी बीमारी के होने के संकेत हैं तो उसकी भी रोकथाम की जा सकेगी. एम्स के पैथोलॉजी और बायोकेमेस्ट्री विभाग में जीन सीक्वेंसर और सेंगर सीक्वेंसर मशीनें लगाने की तैयारी हो चुकी है, जो इस प्रकार की समस्याओं का समाधान करेगी.

प्रोफेसर डॉक्टर शैलेंद्र कुमार के मुताबिक पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और नेपाल के तराई क्षेत्र में मुख्य रूप से इंसेफलाइटिस, कालाजार, डेंगू, मलेरिया, स्वाइन फ्लू, स्क्रब टायफस, फाइलेरिया आदि का ज्यादा प्रकोप रहता है. जिसका स्थाई समाधान खोजने की दिशा में एम्स की टीम कार्य करेगी. इसमें जीन सीक्वेंसिंग की सेंगर मशीन की मदद ली जाएगी. 'जीन सीक्वेंसिंग' वायरस या किसी मनुष्य के बारे में जानने की विधि को कहते हैं. इसमें जिनकी जांच की जाती है जीन के जिस हिस्से में बदलाव नजर आता है, मनुष्य में उससे संबंधित बीमारी होने की आशंका रहती है/ इससे किसी वायरस के आकार, प्रकार, स्वरूप और क्षमता का ज्ञान किया जा सकता है.

जापान की यात्रा पर गए एम्स के बायो केमिस्ट्री विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर शैलेंद्र कुमार द्विवेदी से पूर्व में इस विषय पर हुई बातचीत के अनुसार कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का इस माध्यम से उचित उपचार हो सकता है. अन्य बीमारियों में भी समय से पहले उससे बचाव के उपाय ढूंढे जा सकेंगे. वहीं, एम्स की निदेशक डॉक्टर सुरेखा किशोर का कहना है कि एम्स, शोध के क्षेत्र में अनवरत प्रयास कर रहा है. पूर्वी उत्तर प्रदेश की गंभीर बीमारियों से लोगों को निजात मिल सके और शोध, स्वास्थ्य सुविधा के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हो ऐसी कोशिश की जा रही है.

इसे भी पढ़ें-Gorakhpur News : जनता दर्शन में उमड़े फरियादी, समस्याओं को सुनकर सीएम ने दिये कार्रवाई के निर्देश

गोरखपुर: पूर्वांचल समेत बिहार और नेपाल क्षेत्र से आने वाले गंभीर रोगियों के इलाज में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) अब नई पद्धति का सहारा लेने जा रहा है. पैथोलॉजी, रेडियो थेरेपी और एक्सरे, एमआरआई जैसी जांच के बाद भी बीमारियों के सटीक इलाज में सफलता नहीं मिलने पर अब 'जिनोम सीक्वेंसिंग' जैसी विधि का एम्स सहारा लेगा. इसके लिए एम्स में बहुत जल्द जिनोम सीक्वेंसिंग की मशीन स्थापित की जाएगी.

एम्स के बायो केमिस्ट्री विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर शैलेंद्र कुमार द्विवेदी के अनुसार इस मशीन के जरिए बैक्टीरिया, फंगस और वायरस की जिनोम सीक्वेंसिंग करके बीमारियों की रोकथाम का प्रयास होगा. बायोकमिस्ट्री विभाग ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है. जिनोम सीक्वेंसिंग की मशीन लग जाने के बाद शोध कार्यों को भी मदद मिलेगी. विभिन्न बीमारियों के कारक बैक्टीरिया, वायरस, फंगस की जीनोम सीक्वेंसिंग कर उसकी रोकथाम के उपाय को भी ढूंढा जा सकेगा. यह भविष्य में होने वाली बीमारियों के रोकथाम का उपाय तलाशने में भी मदद करेगी. यदि कैंसर का कोई रोगी है तो जिनोम सीक्वेंसिंग से कैंसर के कारणों का पता लगाकर उसका सटीक उपचार किया जा सकेगा. इसके अलावा यदि उसके जीन में कोई अन्य बदलाव दिखता है. जिससे भविष्य में किसी बीमारी के होने के संकेत हैं तो उसकी भी रोकथाम की जा सकेगी. एम्स के पैथोलॉजी और बायोकेमेस्ट्री विभाग में जीन सीक्वेंसर और सेंगर सीक्वेंसर मशीनें लगाने की तैयारी हो चुकी है, जो इस प्रकार की समस्याओं का समाधान करेगी.

प्रोफेसर डॉक्टर शैलेंद्र कुमार के मुताबिक पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और नेपाल के तराई क्षेत्र में मुख्य रूप से इंसेफलाइटिस, कालाजार, डेंगू, मलेरिया, स्वाइन फ्लू, स्क्रब टायफस, फाइलेरिया आदि का ज्यादा प्रकोप रहता है. जिसका स्थाई समाधान खोजने की दिशा में एम्स की टीम कार्य करेगी. इसमें जीन सीक्वेंसिंग की सेंगर मशीन की मदद ली जाएगी. 'जीन सीक्वेंसिंग' वायरस या किसी मनुष्य के बारे में जानने की विधि को कहते हैं. इसमें जिनकी जांच की जाती है जीन के जिस हिस्से में बदलाव नजर आता है, मनुष्य में उससे संबंधित बीमारी होने की आशंका रहती है/ इससे किसी वायरस के आकार, प्रकार, स्वरूप और क्षमता का ज्ञान किया जा सकता है.

जापान की यात्रा पर गए एम्स के बायो केमिस्ट्री विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर शैलेंद्र कुमार द्विवेदी से पूर्व में इस विषय पर हुई बातचीत के अनुसार कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का इस माध्यम से उचित उपचार हो सकता है. अन्य बीमारियों में भी समय से पहले उससे बचाव के उपाय ढूंढे जा सकेंगे. वहीं, एम्स की निदेशक डॉक्टर सुरेखा किशोर का कहना है कि एम्स, शोध के क्षेत्र में अनवरत प्रयास कर रहा है. पूर्वी उत्तर प्रदेश की गंभीर बीमारियों से लोगों को निजात मिल सके और शोध, स्वास्थ्य सुविधा के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हो ऐसी कोशिश की जा रही है.

इसे भी पढ़ें-Gorakhpur News : जनता दर्शन में उमड़े फरियादी, समस्याओं को सुनकर सीएम ने दिये कार्रवाई के निर्देश

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.