गोरखपुर: पर्यटन की दृष्टि से खास बन चुका गोरखपुर का रामगढ़ ताल अब गोरखपुर एम्स के शोध का विशेष केंद्र बनेगा. इस बात को पूरी मजबूती से एम्स की डायरेक्टर डॉ. सुरेखा किशोर ने रखा है. उन्होंने कहा है कि गोरखपुर समेत पूरा पूर्वांचल इंसेफलाइटिस और एईएस जैसी बीमारियों से काफी लंबे समय से ग्रसित है. इसके मूल में मच्छर और जल जनित लक्षण हैंं, इसलिए एम्स रामगढ़ ताल को केंद्र बनाकर ताल में मच्छरों और उनके लार्वा की पहचान करेगा जो उसके शोध का विषय होगा.
उन्होंने इसके लिए एक कमेटी बनाए जाने का साफ संकेत दिया है. अट्ठारह सौ एकड़ क्षेत्रफल में फैले रामगढ़ ताल के पानी को कैसे स्वच्छ बनाया जा सकता है. इसके गंदे पानी में बीमारियों के कारक हैं तो किस प्रकार के हैं. साथ ही इंसेफलाइटिस और डेंगू जैसी बीमारियों पर अंकुश लगाने के तहत शोध होगा. पूर्वांचल में इंसेफलाइटिस का प्रकोप ज्यादा है और इसके पीछे मच्छरों को कारण बताया गया है, जो गंदे पानी में पनपते हैं.
एंटी लार्वा का छिड़काव किया जाएगा
ऐसे में रामगढ़ ताल उनके लिए सबसे मुफीद जगह हो सकती है. इसलिए एम्स ने खुद इस चुनौती को अपने हाथ में लिया है और शोध का विषय बनाकर इसके लक्षणों को तलाशने में जुटेगा. एम्स डायरेक्टर ने कहा कि ताल में मौजूद लार्वा पर शोध किया जाएगा. खतरनाक किस्म के लार्वा को नष्ट करने के लिए एंटी लार्वा का छिड़काव भी किया जाएगा.
गठित की जा रही है कमेटी
इस शोध के लिए एम्स के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग की देखरेख में कमेटी गठित की जा रही है, जो ताल का निरीक्षण और वहां के जल का परीक्षण कर बीमारियों की रोकथाम का अभियान चलाएगी. निदेशक ने साफ कहा कि गोरखपुर में एम्स की स्थापना का उद्देश्य मरीजों को बेहतर इलाज तो देना ही है. साथ ही ऐसे बीमारियों पर शोध को भी आगे बढ़ाना है, जो इस क्षेत्र की बड़ी समस्या हैंं.
यहां से तैयार होने वाले डॉक्टर अगर कई तरह के शोध करने में सफल हुए तो एम्स की उपयोगिता सिद्ध होगी. उन्होंने कहा कि डॉक्टर इलाज तो करता ही है, लेकिन डॉक्टर बीमारियों के समूल नाश के शोध में अगर सफल हो जाये तो यह सबसे बड़ी सफलता मानी जाती है. गोरखपुर एम्स इसलिए शोध पर हरहाल में विशेष जोर देगा.