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गोरखपुर: गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल है रामपुर बुजुर्ग का ताजिया

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Published : Sep 10, 2019, 7:54 AM IST

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में भटहट ब्लॉक क्षेत्र का रामपुर बुजुर्ग गांव दो सौ वर्षों से गंगा जमुनी तहजीब का एक अनूठी मिसाल पेश कर रहा है. यहां पर हिंदू समुदाय के लोग चार पुस्तों से ताजिया बनाते हैं और परंपरागत रीति-रिवाजों के साथ फूलवरिया स्थित कर्बला तक ले जाकर दफन करते हैं.

गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल है रामपुर बुजुर्ग का ताजिया

गोरखपुरः मुहर्रम का समय आते ही हर तरफ हुसैन के नारों से फिजा गुंजयमान हो जाता है. उक्त गांव में निवास करने वाले सभी विरादरी के लोग उनके इस कार्य में दिल खोल कर सहयोग करते हैं. क्षेत्र में इस गंगा जमुनी तहजीब का एक मिसाल है जो आपसी सौहार्द को बढ़ावा देता है. रामपुर के निवासी लोग बताते है कि 200 वर्षों से उनके पूर्वज झकरी कनौजिया के घर कोई संतान पैदा नहीं हुई था.

रोजा भी रखते हैं और नियाज फातिहा भी कराते हैं
मोहर्रम जिस रीति रिवाज के साथ मुस्लिम समुदाय के लोग मनाते हैं ठीक उसी परमपरा के साथ रामपुर बुजुर्ग में कन्नौजिया परिवार के लोग रोजा भी रखते हैं. नियाज फातिमा भी कराते हैं. रोट मलीदा भी चढ़ाते हैं. इस कार्यक्रम में शामिल होने उनके रिश्तेदार दूरदराज से उनके वहां दो दिन पहले से आ जाते हैं.

गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल है रामपुर बुजुर्ग का ताजिया

गांव के अन्य विरादरी के लोगों के सहयोग से कन्नौजिया लोग ताजिया को बनाते हैं. दसवीं मुहर्रम को फूलवरिया स्थित कर्बला पर ले जाकर दफन करते हैं. इस तरह के आयोजन गंगा-जमुनी तहजीब का मिशाल है. इस परम्परा को उक्त गांव के लोग दो सौ वर्षों से निभाते चले आए हैं. वहां के लोग बताते हैं कि ईमाम साहब से मांगी गई मन्नत कभी खाली नहीं जाती. छोटी बड़ी सारी इच्छा पूर्ण होती है.

मुस्लिम बिरादरी के लोग ताजिया तो बनाते हैं लेकिन बेच देते हैं
रामपुर बुजुर्ग गांव में मनिहार (चूड़ीहार) विरादरी के लोगों भी रहते हैं जो मोहर्रम से 4 माह पहले ताजिया बनाना शुरु कर देते हैं. उससे अपना रोजगार चलाते हैं. खास बात तो यह है कि मुस्लिम लोग भी चार पुस्त पहले से ताजिया बनाने और बेचने का कारोबार बड़े पैमाने पर करते हैं. लेकिन सोचने वाली बात तो यह है कि मुस्लिम विरादरी के लोग ताजिया तो बनाते हैं, लेकिन त्योहार के बनिस्बत इमाम बाड़ा पर उसको रखते नहीं हैं. सिर्फ अपना रोजगार चलाने के लिए बनाते हैं, उसको बेच देते हैं. लेकिन उसी गांव के हिन्दु विरादरी के लोग ताजिया स्वतः बनाते भी हैं.

सबसे आगे होता है इनका ताजिया सबसे पहले पहूंचता है कर्बला
ताजियादार खजांची कनौजिया बताते हैं कि आस पड़ोस के गांव के ताजियादार फुलवरिया गांव स्थित कर्बला में दफन करने ले जाते हैं. लेकिन मुस्लिम समुदाय के लोगों का ताजिया उस वक्त तक कर्बला नहीं पहुंचता है जब तक हम लोगों का ताजिया पहले कर्बला नहीं पहुंचता जब तक हम अपना ताजिया घर से लेकर नहीं निकलते हैं. तब तक उनका ताजिया नहीं निकलता है. दसवीं मुहर्रम को हम लोग अपना ताजिया जब लेकर निकलते हैं तो उनका ताजिया जुलूस के पिछे एक के बाद एक शामिल होता जाता है और कर्बला पर साथ लेकर हम लोग पहुंचते हैं सबसे पहले हमारा ताजिया दफन होता है उसके बाद उनका ताजिया दफन होता है

इसे भी पढ़ें-बरेली: गणपति विसर्जन की धूम से झूम उठा पूरा शहर, निकाली गयी शोभा यात्रा

गोरखपुरः मुहर्रम का समय आते ही हर तरफ हुसैन के नारों से फिजा गुंजयमान हो जाता है. उक्त गांव में निवास करने वाले सभी विरादरी के लोग उनके इस कार्य में दिल खोल कर सहयोग करते हैं. क्षेत्र में इस गंगा जमुनी तहजीब का एक मिसाल है जो आपसी सौहार्द को बढ़ावा देता है. रामपुर के निवासी लोग बताते है कि 200 वर्षों से उनके पूर्वज झकरी कनौजिया के घर कोई संतान पैदा नहीं हुई था.

रोजा भी रखते हैं और नियाज फातिहा भी कराते हैं
मोहर्रम जिस रीति रिवाज के साथ मुस्लिम समुदाय के लोग मनाते हैं ठीक उसी परमपरा के साथ रामपुर बुजुर्ग में कन्नौजिया परिवार के लोग रोजा भी रखते हैं. नियाज फातिमा भी कराते हैं. रोट मलीदा भी चढ़ाते हैं. इस कार्यक्रम में शामिल होने उनके रिश्तेदार दूरदराज से उनके वहां दो दिन पहले से आ जाते हैं.

गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल है रामपुर बुजुर्ग का ताजिया

गांव के अन्य विरादरी के लोगों के सहयोग से कन्नौजिया लोग ताजिया को बनाते हैं. दसवीं मुहर्रम को फूलवरिया स्थित कर्बला पर ले जाकर दफन करते हैं. इस तरह के आयोजन गंगा-जमुनी तहजीब का मिशाल है. इस परम्परा को उक्त गांव के लोग दो सौ वर्षों से निभाते चले आए हैं. वहां के लोग बताते हैं कि ईमाम साहब से मांगी गई मन्नत कभी खाली नहीं जाती. छोटी बड़ी सारी इच्छा पूर्ण होती है.

मुस्लिम बिरादरी के लोग ताजिया तो बनाते हैं लेकिन बेच देते हैं
रामपुर बुजुर्ग गांव में मनिहार (चूड़ीहार) विरादरी के लोगों भी रहते हैं जो मोहर्रम से 4 माह पहले ताजिया बनाना शुरु कर देते हैं. उससे अपना रोजगार चलाते हैं. खास बात तो यह है कि मुस्लिम लोग भी चार पुस्त पहले से ताजिया बनाने और बेचने का कारोबार बड़े पैमाने पर करते हैं. लेकिन सोचने वाली बात तो यह है कि मुस्लिम विरादरी के लोग ताजिया तो बनाते हैं, लेकिन त्योहार के बनिस्बत इमाम बाड़ा पर उसको रखते नहीं हैं. सिर्फ अपना रोजगार चलाने के लिए बनाते हैं, उसको बेच देते हैं. लेकिन उसी गांव के हिन्दु विरादरी के लोग ताजिया स्वतः बनाते भी हैं.

सबसे आगे होता है इनका ताजिया सबसे पहले पहूंचता है कर्बला
ताजियादार खजांची कनौजिया बताते हैं कि आस पड़ोस के गांव के ताजियादार फुलवरिया गांव स्थित कर्बला में दफन करने ले जाते हैं. लेकिन मुस्लिम समुदाय के लोगों का ताजिया उस वक्त तक कर्बला नहीं पहुंचता है जब तक हम लोगों का ताजिया पहले कर्बला नहीं पहुंचता जब तक हम अपना ताजिया घर से लेकर नहीं निकलते हैं. तब तक उनका ताजिया नहीं निकलता है. दसवीं मुहर्रम को हम लोग अपना ताजिया जब लेकर निकलते हैं तो उनका ताजिया जुलूस के पिछे एक के बाद एक शामिल होता जाता है और कर्बला पर साथ लेकर हम लोग पहुंचते हैं सबसे पहले हमारा ताजिया दफन होता है उसके बाद उनका ताजिया दफन होता है

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Intro:मुहर्रम का समय आते ही हर तरफ या हुसैन या हुसैन के नारों से फिजा गुंजयमान हो जाती है वही भटहट ब्लॉक क्षेत्र का रामपुर बुजुर्ग गांव दो सौ वर्षों से गंगा जमुनी तहजीब का एक अनूठी मिसाल पेश कर रहा है. यहां पर हिंदू समुदाय के लोग चार पुस्तों से ताजिया बनाते हैं और परंपरागत रीति-रिवाजों के साथ फूलवरिया स्थित कर्बला तक ले जाकर दफन करते हैं. उक्त गांव में निवास करने वाले सभी विरादरी के लोग उनके इस कार्य में दिल खोल कर सहयोग करते हैं. क्षेत्र में इस गंगा जमुनी तहजीब का एक मिसाल है जो आपसी सौहार्द को बढ़ावा देता है.

पिराइच गोरखपुरः रामपुर बुजुर्ग निवासी हरि कन्नौजिया खजानची कनौजिया गौरी कनौजिया रामविलास कनौजिया केदार कनौजिया जीतू कनौजिया रामकिशोर कन्नौजिया विनोद कनौजिया रामटहल कनौजिया अशोक कनौजिया सज्जन कनौजिया दिलीप कनौजिया गब्बू कन्नौजिया आदि लोग बताते है कि 200 वर्षों से उनके पूर्वज झकरी कनौजिया के घर कोई संतान पैदा नहीं हुआ था. जिससे वह काफी चिंतित रहा करते थे. मोहर्रम का समय था पड़ोसी गांव में ताजिया देखने गए थे तभी उनके मन में ये इच्छा जगी कि उन्होंने ईमाम साहब से मन्नत मांगी कि अगर मेरे घर संतान पैदा हुआ तो उसका नाम हुसैनी कनौजिया रखेंगे. मन में यह इच्छा लेकर घर लौट गए. दूसरा मुहर्रम आने से पहले उनकी पत्नी को एक संतान पैदा हुआ. जिसका नाम उन्होंने हुसैनी कन्नौजिया रखा. मोहर्रम आते ही उन्होंने ताजिया रखाना शुरु कर दिया. वहीं से उन्होंने संकल्प लिया कि इस दुनिया में जबतक हमारी नस्लें जिंदा रहेंगी तब तक हमारे नस्ल के लोग ताजिया बनाने की रस्म अदा करती रहेगी. तभी से उनके विरादरी के लोग ताजिया बनाते हैं और अदबो एहतराम के साथ उसको भ्रमण कराते हुए कर्बला तक ले जाते है.
Body:यहां बता दें कि झकरी कनौजिया के जड़ से आज रामपुर बुजुर्ग गांव में 30 से 35 परिवार धोबी विरादरी के लोग रहते है पूरे परिवार के लोग मिलजुल कर एक साथ एक ही ताजिया को बनाते हैं उनके इस सौहार्द के काम में गांव के सभी विरादरी के लोग बढ़चढ़कर हिस्सा लेते है. उनके परिवार का हर सदस्य श्रद्धा के साथ मोहर्रम का त्योहार मिलजुल कर मनाते हैं जो आपसी सौहार्द को बढ़ावा देता है.

$रोजा भी रखते हैं और नियाज फातिहा भी कराते है$

मोहर्रम का त्यौहार जिस रीति रिवाज के साथ मुस्लिम समुदाय के लोग मनाते है ठीक उसी परमपरा के साथ रामपुर बुजुर्ग में कन्नौजिया परिवार के लोग रोजा भी रखते हैं नियाज फातिमा भी कराते हैं रोट मलीदा भी चढ़ाते हैं. इस कार्यक्रम में शामिल होने उनके रिस्तेदार दूरदराज से उनके वहां दो दिन पहले से आ जाते है. गांव के अन्य विरादरी के लोगों के सहयोग से कन्नौजिया लोग बड़ी श्रद्धा के साथ ताजिया को बनाते है और दसवीं मुहर्रम को फूलवरिया स्थित कर्बला पर ले जाकर दफन करते है. इस तरह के आयोजन गंगा जमुनी तहजीब का मिशाल है इस परमपरा को उक्त गांव के लोग दो सौ वर्षों से निभाते चले आए है. वहां की महिलाएं तथा पुरुष बताते है कि ईमाम साहब से मांगी गई मन्नत कभी खाली नही जाती छोटी बड़ी सारी इच्छा पूर्ण होती है.
Conclusion:
$मुस्लिम बिरादरी के लोग ताजिया तो बनाते हैं लेकिन बेच देते हैं$

रामपुर बुजुर्ग गा़व में मनिहार (चूड़ीहार) विरादरी के लोगों भी रसते है जो मोहर्रम से 4 माह पहले ताजिया बनाना शुरु कर देते हैं और उससे अपना रोजगार चलाते हैं. खास बात तो यह है कि मुस्लिम लग भी चार पुस्त पहले से ताजिया बनाने और बेचने का कारोबार बड़े पैमाने पर करते है. लेकिन सोचने वाली बात तो यह है कि मुस्लिम विरादरी के लोग ताजिया तो बनाते हैं लेकिन त्योहार के बनिस्बत इमाम बाड़ा पर उसको रखते नहीं है. सिर्फ अपना रोजगार चलाने के लिए बनाते है उसको बेच देते हैं. लेकिन उसी गांव के हिन्दु विरादरी के लोग ताजिया स्वतः बनाते भी हैं और विगत 200 सालों से त्योहार को बड़े ही श्रद्धा के मनाते भी हैं.

$सबसे आगे होता है इनका ताजिया सबसे पहले पहूंचता है कर्बला$

ताजियादार खजांची कनौजिया बताते हैं कि आस पड़ोस के गांव के ताजियादार फुलवरिया गांव स्थित कर्बला में दफन करने ले जाते हैं. लेकिन मुस्लिम समुदाय के लोगों का ताजिया उस वक्त तक कर्बला नहीं पहुंचता है जब तक हम लोगों का ताजिया पहले कर्बला नहीं पहुंचता जब तक हम अपना ताजिया घर से लेकर नहीं निकलते हैं. तब तक उनका ताजिया नहीं निकलता है. दसवीं मुहर्रम को हम लोग अपना ताजिया जब लेकर निकलते हैं तो उनका ताजिया जुलूस के पिछे एक के बाद एक शामिल होता जाता है और कर्बला पर साथ लेकर हम लोग पहुंचते हैं सबसे पहले हमारा ताजिया दफन होता है उसके बाद उनका ताजिया दफन होता है.

बाइट--मुन्नी कन्नौजिया(ताजियादार)
बाइट-- विन्द्रेश कन्नौजिया(ताजियादार)
बाइट-- खजांची कन्नौजिया (ताजियादिर)
बाइट श्रीपत मौर्या( ग्रामीण)

रफिउल्लाह अन्सारी- 8318103822
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