गोरखपुर: अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर बने भगवान राम के मंदिर में, रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में अनुष्ठान के दौरान वैदिक मंत्रों के वाचन का अवसर, गोरखपुर के भी एक संस्कृत विद्वान को मिला है. इनका नाम डॉक्टर रंगनाथ त्रिपाठी है. काशी के संस्कृत विद्यापीठ से संस्कृत, व्याकरण समेत वैदिक पूजा- पाठ की शिक्षा ग्रहण करने वाले, डॉक्टर त्रिपाठी (Guru Gorakhnath Sanskrit Vidyapeeth Acharya Dr Ranganath Tripathi invited) को यह अवसर उनके गुरुओं की नजर में विद्वता पर खरा उतरने के बाद प्राप्त हुआ है. यही वजह है कि श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महामंत्री चंपत राय ने उन्हें पत्र भेजकर इस कार्यक्रम में शामिल होने का विधिवत न्योता दिया है.
निमंत्रण पाकर रंगनाथ त्रिपाठी बेहद उत्साहित और खुश हैं. गुरु गोरखनाथ संस्कृत विद्यापीठ के आचार्य डॉ रंगनाथ त्रिपाठी को चंपत राय की ओर से जो आमंत्रण पत्र भेजा गया है, उसमें उनसे निवेदन किया है कि प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान पौष शुक्ल षठी तिथि यानी, 16 जनवरी से शुरू हो रहा है. ऐसे में 15 जनवरी तक वह अयोध्या पहुंचना सुनिश्चित करें. 23 और 24 जनवरी को अनुष्ठान पूरा होने के बाद उनके वापसी का कार्यक्रम तय होगा. चंपत राय ने इस पत्र के माध्यम से यह भी बताया है कि, उनका नाम काशी के ख्यतिलब्ध विद्वान गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ और लक्ष्मीकांत दीक्षित ने उन्हें सुझाया है.
गणेश्वर शास्त्री ने राम की प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा की तिथि की गणना की है, तो इसका पूजा विधान लक्ष्मीकांत दीक्षित के नेतृत्व में संपन्न होगा. ऐसे में डॉ रंगनाथ का अयोध्या प्रवास समय के साथ हो जाए यह सुनिश्चित हो. वहीं निमंत्रण मिलने बाद ईटीवी भारत से डॉ रंगनाथ ने बातचीत की. उन्होंने कहा कि, वह भगवान राम के प्राण प्रतिष्ठा अवसर पर मिले इस निमंत्रण से बेहद उत्साहित और आनंदित हैं. उन्होंने इसके लिए काशी के विद्वत द्वय अपने गुरुजनों का बहुत-बहुत आभार जताया, जिन्होंने इस अवसर के लिए उन्हें उपयुक्त पाया और वैदिक मंत्र जाप के लिए शामिल होने का अवसर दिलाया है.
उन्होंने कहा कि गुरु ही शिष्य की योग्यता जानता और तय करता है. निश्चित रूप से जब भगवान राम अयोध्या में विराजमान होने जा रहे हैं तो, उसमें किसी का भी शामिल होना बेहद ही पुण्य का फल है. उन्हें तो वैदिक मंत्र करने का अवसर मिलेगा यह उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि और खुशी है. उन्होंने कहा कि न जाने कितनी पीढ़ियां चली गई और आगे कितनी आएंगी. लेकिन, मौजूदा समय में जो भगवान राम के प्राण प्रतिष्ठा का उत्सव चल रहा है, उसमें जो भी शामिल होगा वह धन्य हो जाएगा.
वह निमंत्रण पाकर खुद को बहुत ही गौरवशाली महसूस कर रहे हैं. डॉक्टर रंगनाथ ने ईटीवी भारत से कहा कि संस्कृत की शिक्षा, अपने आराध्य देवी देवताओं के प्रति समर्पित और श्रद्धा भाव, उन्हे उनके कुल संस्कार से मिला है. उनके पिताजी भी शहर के बेतियाहाता स्थित प्रतिष्ठित हनुमान मंदिर के पुजारी हैं. उनकी प्रेरणा ने ही उन्हें संस्कृत की शिक्षा लेने और समर्पित भाव से उसे सम्मान दिलाने के लिए प्रेरित किया जो ऐसा अवसर पाकर पूर्णता को प्राप्त कर रहा है.
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