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बीजेपी के गढ़ में राहुल की खाट सभा के बाद अब प्रियंका की 'प्रतिज्ञा यात्रा', जानिए कितना फायदा उठा पाएगी कांग्रेस

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Published : Oct 30, 2021, 3:42 PM IST

बीजेपी के गढ़ यानी गोरखपुर में राहुल गांधी की खाट सभा के बाद अब 31 अक्टूबर को प्रियंका गांधी की प्रतिज्ञा यात्रा रैली आयोजित होेने जा रही है. कांग्रेस कांर्यकर्ताओं ने इसकी तैयारियां जोर-शोर से शुरू कर दी है. यह रैली कितनी सफल रहेगी इसकी असली तस्वीर आगामी विधानसभा चुनाव 2022 में ही साफ हो पाएगी.

गोरखपुर में रैली करेंगी प्रियंका गांधी.
गोरखपुर में रैली करेंगी प्रियंका गांधी.

गोरखपुरः आगामी विधानसभा चुनाव 2022 (Uttar Pradesh Assembly election 2022 ) के मद्देनजर 31 अक्टूबर को प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) गोरखपुर में प्रतिज्ञा यात्रा (Pratigya Yatra) रैली के माध्यम से कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने पहुंच रहीं हैं. इसकी तैयारी के लिए उन्होंने अपने कई नेताओं को गोरखपुर भेज रखा है. इस रैली की तैयारियां अंतिम चरण में चल रही हैं. इस बीच बस्ती के बीजेपी सांसद हरीश द्विवेदी की भाभी कांग्रेस में शामिल हो गईं हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बीजेपी के गढ़ गोरखपुर में प्रियंका गांधी की इस रैली ने बीजेपी की बेचैनी बढ़ा दी है. अब यह रैली कितनी सफल रहेगी इसकी असली तस्वीर आगामी विधानसभा चुनाव में ही निकलकर सामने आ पाएगी.

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की एक बड़ी रैली 5 सितंबर 2016 को देवरिया जिले के रुद्रपुर विधानसभा क्षेत्र में हुई थी जिसे खाट सभा का नाम दिया गया था. उसमें राहुल गांधी ने प्रतिभाग किया था. उसके माध्यम से कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने की पूरी कोशिश की गई थी लेकिन भितरघात और स्थानीय लोगों के उत्पात से यह सभा चौपट हो गई थी. मिठाई और पानी सब लूट लिया गया था और जब चुनाव हुआ तो कांग्रेस पूरी तरह से इस क्षेत्र में सिमट गई. सिर्फ कुशीनगर की तमकुहीराज विधानसभा सीट पर पार्टी जीतने में कामयाब रहा, जहां से मौजूदा समय में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू विधायक हैं. 2017 से अब तक कांग्रेस के प्रति माहौल में परिवर्तन महसूस किया जा रहा है.

इसके पीछे प्रियंका गांधी का व्यक्तित्व, परिश्रम, महिलाओं, बेटियों को लेकर उनकी घोषणाएं अहम साबित हो रहीं हैं. साथ ही किसानों और बेरोजगारों के प्रति उनकी हमदर्दी भी बदलाव के समीकरण के रूप में देखी जा रहीं हैं. अब यह कहा जा रहा है कि यह समीकरण तभी सफलता की कहानी रच पाएगा जब कांग्रेस के कार्यकर्ता घर-घर अपनी पहुंच बना पाएंगे. बीजेपी और सपा की तैयारी की तुलना में कांग्रेस की तैयारी काफी कमजोर नजर आ रहे हैं. संगठन के पास समर्पित कार्यकर्ताओं का अभाव है.

गोरखपुर जिले की कांग्रेस इकाई की कमान निर्मला पासवान के पास है. उन्हें वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और पुरुष पचा नहीं पाते हैं. इस वजह से पार्टी को इसका नुकसान उठाना पड़ता हैं. अब प्रियंका गांधी की रैली को लेकर छोटे-बड़े सभी कांग्रेसी नेता पोस्टर-बैनर के माध्यम से खुद की उपस्थिति जताने में लगे हुए हैं लेकिन जमीन पर उनका काम बेहद फिसड्डी है. बीजेपी सरकार की नीति और मुद्दों को लेकर कांग्रेस की जिला अध्यक्ष ही संघर्ष में नजर आती हैं बाकी नेताओं की हालत बहुत खराब है.



इस बारे में समाजशास्त्र के प्रोफेसर शफी जमा कहते हैं कि भौगोलिक और जातिगत परिस्थितियों को भी कांग्रेस समझ नहीं पा रही है. वह प्रदेश में पिछड़े और ब्राह्मण चेहरे को स्थापित करने में भी सफल नहीं हो पाई है. पिछड़े नेता के रूप में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को उसे यहां प्रस्तुत करना पड़ रहा है. उसके पास स्थानीय स्तर के चेहरों की कमी है जबकि बीजेपी और सपा अपने प्रदेश के नेताओं के बलबूते लड़ते नजर आ रही है. 2022 के चुनाव में प्रियंका गांधी की लड़कियों, महिलाओं, युवाओं और किसानों के लिए की गईं घोषणाओं से असर पड़ सकता है.

ये भी पढ़ेंः 6 बीएसपी और एक भाजपा विधायक सपा में शामिल, अखिलेश बोले जल्द बदलेगा भाजपा का नारा

पूर्वांचल से कांग्रेस में बड़े नेताओं की बात करें तो राष्ट्रीय प्रवक्ता की भूमिका महराजगंज की सुप्रिया श्रीनेत, देवरिया के अखिलेश सिंह निभा रहे हैं. कुशीनगर के पूर्व सांसद और पूर्व गृह राज्यमंत्री आरपीएन सिंह भी बड़ा चेहरा हैं. खुद प्रदेश अध्यक्ष कुशीनगर से आते हैं. उनकी टीम में उपाध्यक्ष की कुर्सी पर दो नेता इस क्षेत्र से ही हैं लेकिन इनका प्रयास कमजोर रहा है और कांग्रेस कमजोर हुई है. इन नेताओं के द्वारा कार्यकर्ताओं को सहेजने का कोई उपक्रम भी दिखाई नहीं देता है.

राजनीतिक विश्लेषक इंद्रदेव पांडेय कहते हैं कि वीर बहादुर सिंह जैसे नेता को इस क्षेत्र में कांग्रेस की बड़ी पहचान माना जाता है. उनके निधन के बाद से ही कांग्रेस में लगातार गिरावट आती चली गई. वर्ष 1991 आते-आते प्रदेश में राम लहर बहने से कांग्रेस साफ होती ही चली गई. सोनिया गांधी ने भी पूर्वांचल को मथने के लिए कुशीनगर से रोड शो किया था लेकिन वह भी बेकार साबित हुआ. वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्रों में कांग्रेस के कई सांसद जीते लेकिन 2014 और 2019 में कांग्रेस खत्म हो गई. ऐसे वक्त में प्रियंका गांधी का संघर्ष अब कितनी सफलता हासिल कर पाएगा इसका पता आने वाले चुनाव में ही चल सकेगा.

गोरखपुरः आगामी विधानसभा चुनाव 2022 (Uttar Pradesh Assembly election 2022 ) के मद्देनजर 31 अक्टूबर को प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) गोरखपुर में प्रतिज्ञा यात्रा (Pratigya Yatra) रैली के माध्यम से कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने पहुंच रहीं हैं. इसकी तैयारी के लिए उन्होंने अपने कई नेताओं को गोरखपुर भेज रखा है. इस रैली की तैयारियां अंतिम चरण में चल रही हैं. इस बीच बस्ती के बीजेपी सांसद हरीश द्विवेदी की भाभी कांग्रेस में शामिल हो गईं हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बीजेपी के गढ़ गोरखपुर में प्रियंका गांधी की इस रैली ने बीजेपी की बेचैनी बढ़ा दी है. अब यह रैली कितनी सफल रहेगी इसकी असली तस्वीर आगामी विधानसभा चुनाव में ही निकलकर सामने आ पाएगी.

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की एक बड़ी रैली 5 सितंबर 2016 को देवरिया जिले के रुद्रपुर विधानसभा क्षेत्र में हुई थी जिसे खाट सभा का नाम दिया गया था. उसमें राहुल गांधी ने प्रतिभाग किया था. उसके माध्यम से कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने की पूरी कोशिश की गई थी लेकिन भितरघात और स्थानीय लोगों के उत्पात से यह सभा चौपट हो गई थी. मिठाई और पानी सब लूट लिया गया था और जब चुनाव हुआ तो कांग्रेस पूरी तरह से इस क्षेत्र में सिमट गई. सिर्फ कुशीनगर की तमकुहीराज विधानसभा सीट पर पार्टी जीतने में कामयाब रहा, जहां से मौजूदा समय में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू विधायक हैं. 2017 से अब तक कांग्रेस के प्रति माहौल में परिवर्तन महसूस किया जा रहा है.

इसके पीछे प्रियंका गांधी का व्यक्तित्व, परिश्रम, महिलाओं, बेटियों को लेकर उनकी घोषणाएं अहम साबित हो रहीं हैं. साथ ही किसानों और बेरोजगारों के प्रति उनकी हमदर्दी भी बदलाव के समीकरण के रूप में देखी जा रहीं हैं. अब यह कहा जा रहा है कि यह समीकरण तभी सफलता की कहानी रच पाएगा जब कांग्रेस के कार्यकर्ता घर-घर अपनी पहुंच बना पाएंगे. बीजेपी और सपा की तैयारी की तुलना में कांग्रेस की तैयारी काफी कमजोर नजर आ रहे हैं. संगठन के पास समर्पित कार्यकर्ताओं का अभाव है.

गोरखपुर जिले की कांग्रेस इकाई की कमान निर्मला पासवान के पास है. उन्हें वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और पुरुष पचा नहीं पाते हैं. इस वजह से पार्टी को इसका नुकसान उठाना पड़ता हैं. अब प्रियंका गांधी की रैली को लेकर छोटे-बड़े सभी कांग्रेसी नेता पोस्टर-बैनर के माध्यम से खुद की उपस्थिति जताने में लगे हुए हैं लेकिन जमीन पर उनका काम बेहद फिसड्डी है. बीजेपी सरकार की नीति और मुद्दों को लेकर कांग्रेस की जिला अध्यक्ष ही संघर्ष में नजर आती हैं बाकी नेताओं की हालत बहुत खराब है.



इस बारे में समाजशास्त्र के प्रोफेसर शफी जमा कहते हैं कि भौगोलिक और जातिगत परिस्थितियों को भी कांग्रेस समझ नहीं पा रही है. वह प्रदेश में पिछड़े और ब्राह्मण चेहरे को स्थापित करने में भी सफल नहीं हो पाई है. पिछड़े नेता के रूप में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को उसे यहां प्रस्तुत करना पड़ रहा है. उसके पास स्थानीय स्तर के चेहरों की कमी है जबकि बीजेपी और सपा अपने प्रदेश के नेताओं के बलबूते लड़ते नजर आ रही है. 2022 के चुनाव में प्रियंका गांधी की लड़कियों, महिलाओं, युवाओं और किसानों के लिए की गईं घोषणाओं से असर पड़ सकता है.

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पूर्वांचल से कांग्रेस में बड़े नेताओं की बात करें तो राष्ट्रीय प्रवक्ता की भूमिका महराजगंज की सुप्रिया श्रीनेत, देवरिया के अखिलेश सिंह निभा रहे हैं. कुशीनगर के पूर्व सांसद और पूर्व गृह राज्यमंत्री आरपीएन सिंह भी बड़ा चेहरा हैं. खुद प्रदेश अध्यक्ष कुशीनगर से आते हैं. उनकी टीम में उपाध्यक्ष की कुर्सी पर दो नेता इस क्षेत्र से ही हैं लेकिन इनका प्रयास कमजोर रहा है और कांग्रेस कमजोर हुई है. इन नेताओं के द्वारा कार्यकर्ताओं को सहेजने का कोई उपक्रम भी दिखाई नहीं देता है.

राजनीतिक विश्लेषक इंद्रदेव पांडेय कहते हैं कि वीर बहादुर सिंह जैसे नेता को इस क्षेत्र में कांग्रेस की बड़ी पहचान माना जाता है. उनके निधन के बाद से ही कांग्रेस में लगातार गिरावट आती चली गई. वर्ष 1991 आते-आते प्रदेश में राम लहर बहने से कांग्रेस साफ होती ही चली गई. सोनिया गांधी ने भी पूर्वांचल को मथने के लिए कुशीनगर से रोड शो किया था लेकिन वह भी बेकार साबित हुआ. वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्रों में कांग्रेस के कई सांसद जीते लेकिन 2014 और 2019 में कांग्रेस खत्म हो गई. ऐसे वक्त में प्रियंका गांधी का संघर्ष अब कितनी सफलता हासिल कर पाएगा इसका पता आने वाले चुनाव में ही चल सकेगा.

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