गोरखपुर: पूरे देश में 14 अगस्त को विभाजन विभिषका स्मृति दिवस के रूप में विभिन्न सामाजिक संगठनों, भारतीय जनता पार्टी और सरकारी कार्यालयों में मनाया गया. इस दिन पर भारत और पाकिस्तान के बंटवारे कि जो दास्तां और दर्द है, उसे लोगों ने एक दूसरे के साथ साझा किया. इसी तरह बंटवारे के समय पाकिस्तान आए से 83 वर्षीय हरिराम साधवानी ने विभाजन के दर्द को पूरी तरह से बयां किया. हरिराम साधवानी बंटवारे के समय पाकिस्तान की बच्चाकोट गांव के निवासी थे. जहां उनके खेत में कार्य करने वाले मुस्लिम मजदूरों ने विभाजन की हवा उठने के साथ ही उनके साथ उनके पूरे परिवार पर क्रूरता के साथ टूट पड़े और उन्हें अपना घर बार छोड़कर भागने पर मजबूर कर दिया.
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हरिराम साधवानी ने बताया कि वह और उनका परिवार किसी तरह वहां से भागकर करांची पहुंचा और फिर ट्रेन में सवार होकर मुंबई आ गया. पानी के जहाज से आने में काफी समय लगता था. लेकिन, उस पर भी मार काट जारी थी. इसलिए हमनें ट्रेन पकड़ना मुनासिब समझा. इस दौरान उनके घर की महिलाओं के साथ लूटपाट हुई. सोने के जेवरात भी छीन लिए गए, लोगों को मारा पीटा गया और परिवार के सदस्य की हत्या भी की गई. उन्हें जब भी वह मंजर याद आता है तो वह पूरी तरह से दहल उठते हैं. विभाजन के संकट में कहीं भी खाने-पीने की कोई व्यवस्था नहीं थी. लूटपाट और हाहाकार के बीच वह भारत के हिस्से में जब प्रवेश कर गए तो गोरखपुर कैसे पहुंचे पता ही नहीं चला. शहर के महात्मा गांधी इंटर कॉलेज के पास जानकीदास जैसे समाजसेवी के द्वारा उनके जैसे शरणार्थियों को शरण दी गई.
उन्होंने कहा कि इस विभाजन में तमाम सिंधी समाज के लोग गोरखपुर पहुंचे थे, जिनकी सुधि तत्कालीन गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ ने ली. अपने मंदिर के बगल में ही उन्होंने लोगों को रहने का ठिकाना दिया, साथ ही खाने पीने की सुविधा दी. जब धीरे-धीरे माहौल शांत हुआ तो गोरक्षपीठ के ही संरक्षण और देखरेख में सिंधियों के रहने के लिए बसावट की व्यवस्था की गई. उनके समाज के लोग छोटे-मोटे रोजगार से जुड़ गए. आज वह राजी खुशी अपने परिवार के साथ जी रहे हैं. लेकिन, जो पाकिस्तान छोड़कर भारत नहीं लौट पाए, जिनका कत्लेआम हो गया, जो बहू बेटियां दरिंदगी की शिकार हुई, उनको लेकर मन बहुत ही तड़पता है. हरिराम साधवानी कहते हैं कि ईश्वर ना करें कि ऐसा विभाजन फिर किसी देश और समाज को देखना पड़े.