गोरखपुर: पंचायती राज विभाग की फाइलों में स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत 7 साल के अंदर गोरखपुर में 5 लाख 32 हजार शौचालय बनाने के दावे के साथ जिला ओडीएफ (खुले में शौच मुक्त) घोषित कर दिया गया है. मगर जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट है. हकीकत यह है कि अभी भी तमाम गांव में बड़ी संख्या में पूरी तरह शौचालय नहीं बन पाया हैं, जिसके घर शौचालय नहीं है वह खुले में और जंगल में शौच जाने को मजबूर है. यही नहीं इनमें सोख्ता बनाने के लिए खोदे गए गड्ढे मानक के अनुरूप नहीं है. इसके निर्माण में ऑनलाइन भुगतान से भले ही भ्रष्टाचार को रोके जाने की बात की जा रही हो, लेकिन भ्रष्टाचार करने के नए तरीके भी इजाद हुए हैं.
खुले में शौच करने को मजबूर ग्रामीण
2012 के बेस लाइन सर्वे के आधार पर जिन घरों में शौचालय नहीं थे, उनमें शौचालय का निर्माण करवाया जाना था. इसी आधार पर जिले में 5 लाख 32 हजार शौचालय बनाए जाने का दावा किया जा रहा है. जिले के जिला पंचायत राज अधिकारी का कहना है कि 18 से 20 हजार शौचालय ऐसे होंगे, जिनमें कुछ काम किया जाना बाकी है. इससे यह साबित होता है कि जहां यह शौचालय बन रहे होंगे वहां के लोग तो खुले में ही शौच करने को मजबूर होंगे.
28 फरवरी 2020 तक शौचालय उपलब्ध कराने की बात
डीपीआरओ की माने तो 2018 में भी सर्वे हुआ और हाल फिलहाल में भी एक सर्वे हुआ है, जिसके आधार पर हजारों की संख्या में बचे लोगों को 28 फरवरी 2020 तक शौचालय उपलब्ध करा दिया जाएगा. यह सरकारी विभाग के अधिकारी का कथन है.
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अब तक बनाए गए कई शौचालय
जिला भले ही खुले में शौच मुक्त घोषित कर दिया गया हो, लेकिन लोग अभी भी खुले में शौच जाने को मजबूर हैं. जिला पंचायत राज अधिकारी कार्यालय के आंकड़ों के हिसाब से 2013 से 19 के बीच 5 लाख 32 हजार 163 शौचालय बनवाए गए. 2017- 18 में सर्वाधिक 2 लाख 65 हजार 750 शौचालय बनवाए गए. इसी प्रकार 2018-19 में 1 लाख 99 हजार 077 शौचालय बनवाए गए थे, जिनमें प्रत्येक लाभार्थी को 12 हाजर की प्रोत्साहन राशि दी गई थी.
ग्राम प्रधान खोराबार के प्रतिनिधि और पूर्व प्रधान जोखू पासवान का कहना है कि उनका गांव ओडीएफ है. उन्होंने उसे ही शौचालय स्वीकृत किया है, जिसके पास नहीं था. किसी भी पुराने को इस योजना का लाभ नहीं दिया गया है.
शौचालय बनाने में लगे ग्रामीणों के पैसे
ग्रामीणों का कहना है कि प्रधान ने उनको चेक से 12 हजार रुपया दिया, लेकिन अच्छा शौचालय बनवाने में उनके घर से भी हजारों रुपए खर्च हुए. डीपीआरओ का कहना है कि भारत सरकार के निर्देश के अनुरूप शौचालयों का निर्माण कराया गया है. शौचालय वी शेप में बने हैं. स्वच्छता का ख्याल रखते हुए टाइल्स भी लगाया गया है और एक सीट के साथ दो गड्ढों के बीच की दूरी का मानक भी सही रखा गया है.
लापरवाही करने वालों जिम्मेदारो पर कि जा रही कार्रवाई
ईटीवी भारत के पड़ताल में जिले के खोराबार ग्राम सभा में तमाम शौचालय मानक के अनुरूप बने दिखाई दिए तो वही एक परिवार के कई सदस्य एक ही शौचालय पर जाने को भी मजबूर दिखे. इन शौचालयों के बनने से महिलाओं को काफी सुविधा है, जिसको वह अपने विचारों में व्यक्त करती हैं. डीपीआरओ कहते हैं कि शौचालय निर्माण में और मॉनिटरिंग में लापरवाही बरतने की जहां भी सूचना मिली है जिम्मेदार के खिलाफ कार्रवाई की गई है. गंदा शौचालय होने और निर्माण में बरती गई कमियों की वजह से इसके उपयोग करने वाले लोग कई तरह की बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं.
वरिष्ठ चिकित्सक डॉक्टर शालिनी सिंह का कहना है कि हेपेटाइटिस बी, ई से लोग प्रभावित होंगे. साथ ही जल जनित कई तरह की और समस्याएं लोगों को परेशान करेंगी. इससे सबसे ज्यादा यूटीआई इनफेक्शन होने का खतरा होता है और इस इन्फेक्शन का सबसे ज्यादा शिकार महिलाएं होती हैं. फिलहाल स्वच्छता को लेकर काफी सावधानी बरती जा रही है. लोगों में इसकी जागरूकता भी देखी जा रही है, लेकिन ग्रामीण स्तर पर यह पूरी तरह से लागू हो चुका है कहना बेमानी होगी. भले ही सरकारी आंकड़े शत-प्रतिशत सफलता सफलता का ढोल पीट रहे हो.
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