गोरखपुर: मोहिनी एकादशी व्रत समस्त पापों के उन्मूलन के लिए श्रेष्ठ व्रत है. मोहिनी एकादशी व्रत वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन किया आता है. इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य मोहजाल और पापों से मुक्त हो जाता है. माना जाता है कि इस व्रत की कथा को एकाग्रचित होकर सुनने से मनुष्य के पाप धुल जाते हैं. इस बार 3 मई दिन रविवार को गृहस्थों और 4 मई को वैष्णवों के लिए इस एकादशी व्रत का विधान है.
श्रीराम ने किया व्रत
गोरखपुर के जाने-माने ज्योतिषी शरद चंद्र मिश्र के अनुसार इस व्रत को विधि पूर्वक करने से व्रतियों को सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है. कथा वाचन और श्रवण करने से सहस्त्र गोदान का फल मिलता है. मोहिनी एकादशी सब पापों का नाश करती हैं. यह जानकर भगवान श्रीराम ने सीता जी की खोज करते समय इस व्रत को किया था.
माहात्म्य शास्त्रों में वर्णित
श्रीकृष्ण भगवान के कहने पर युधिष्ठिर ने और मुनि कौडिन्य के कहने पर धृष्टराष्ट्र ने भी इसे सम्पन्न किया था. इस प्रकार इस व्रत को करने से व्रती की समस्त मनोकामनाएं तो पूरी होती ही हैं. साथ ही मन को शान्ति पहुंचाने वाली और निन्दित कर्मों को छोड़कर सत्कर्म करने की शक्ति भी प्राप्त होती है. तीर्थ, दान और यज्ञ आदि से भी बढ़कर इसका महात्म्य शास्त्रों में वर्णित है.
मोहिनी स्वरूप की पूजा
एक अन्य मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु मोहिनी रूप में प्रकट हुए थे और असुरों को अमृत से वंचित कर देवताओं को अमरत्व प्रदान किये थे. इसलिए मोहिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के मोहिनी स्वरूप की उपासना की जाती है.
श्रीराम की पूजा का भी विधान
साथ ही श्रीराम की पूजा-अर्चना का भी विधान है. व्रती को स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान श्रीराम की प्रतिमा को दूध, जल से स्नान कराकर श्वेत रेशमी वस्त्र पहनाना चाहिए. फिर उच्च आसन पर स्थापित कर रोली और चन्दन से तिलक लगाकर श्वेत पुष्प की माला पहनाएं. धूप-दीप जलाकर आरती करें. इसके पश्चात पंचमेवा और मीठे फल का नैवेद्य अर्पण करें और उसे भक्तों में वितरण करें.
तदर्ध फल की प्राप्ति
ब्राह्मणों के निमित्त दान-पुण्य करें. फल और वस्त्र इत्यादि का दान सर्वोत्तम माना गया है. रात्रि में भी जागरण करके भगवत् नाम का संकीर्तन या मन्त्र का ही जप करें. इस दिन अन्न का सेवन वर्जित है. निराहार रहें और सायंकाल पूजन के अनन्तर फलाहार करें. यदि एकादशी का व्रत न रख सकें. तो भी इस दिन चावल का सेवन न करें. इससे भी तदर्ध फल की प्राप्ति होती है. ऐसा शास्त्रों में लिखा है.