गोरखपुर: देवाधिदेव महादेव की आराधना वैसे तो हर दिन की जाती है, लेकिन सावन में भगवान शिव की आराधना का खास महत्व होता है. कहते हैं कि भोलेनाथ को सावन का महीना अतिप्रिय है, ऐसे में जो भक्त सावन में शिव की विधिवत पूजा करते हैं, बाबा भोले उसकी हर मनोकामना पूरी करते हैं. सावन माह में ईटीवी भारत आपको हर दिन प्रदेश के प्राचीन शिव मंदिर के दर्शन करा रहा है. इसी कड़ी में आज हम आपको ले चल रहे हैं गोरखपुर के मानसरोवर मंदिर में. सावन के महीने में हर साल यहां भक्तों की भीड़ जुटती है.
वैश्विक महामारी कोरोना में भी इस मंदिर में लोगों की आस्था कम नहीं हुई है. इस मंदिर का गोरखपीठ से काफी गहरा और पुराना संबंध है. विजय दशमी पर गोरखनाथ मंदिर से निकलने वाला पारंपरिक जुलूस गोरक्ष पीठाधीश्वर के रुद्राभिषेक के साथ मानसरोवर मंदिर में आकर संपन्न होता है.
राजा मानसिंह से सपने में आए थे भोले बाबा
मानसरोवर मंदिर का इतिहास काफी पुराना है. इस मंदिर को राजा मान सिंह द्वारा स्थापित किया गया था. कहा जाता है कि कालांतर में राजा मानसिंह के स्वप्न में आकर भगवान भोलेनाथ ने जंगल के बीचो-बीच मंदिर निर्माण का निर्देश दिया था. जिस पर राजा मानसिंह ने इस स्थान पर पोखरे का निर्माण और मंदिर का निर्माण कराया. पोखरे के निर्माण के दौरान स्वयंभू के रूप में भगवान भोलेनाथ से प्रकट हुए थे और वही शिवलिंग आज भी नवनिर्मित मंदिर में स्थापित है.
राजा दशरथ ने भी यहां किया था विश्राम
मानसरोवर मंदिर के संबंध में बताया जाता है कि द्वापर युग में राजा दशरथ ने यहां आकर रात्रि विश्राम किया था. इसके साथ ही राजयूस यज्ञ के पहले भीम जब गुरु गोरक्षनाथ को निमंत्रण देने के लिए यहां आए तो उन्होंने यहीं पर रात्रि विश्राम करके महायोगी गुरु गोरक्षनाथ से मुलाकात की और उन्हें निमंत्रण दिया. उन्होंने गोरखनाथ मंदिर में भी अपनी धूनि जमाई थी.
इसे भी पढ़ें- sawan 2021: भगवान शिव को प्रसन्न करना है तो जरूर चढ़ाएं बेलपत्र, इन बातों का रखें ध्यान
सीएम योगी आदित्यनाथ भी यहां आते हैं
इस संबंध में बात करते हुए मानसरोवर मंदिर के मुख्य पुजारी योगी मुकेश नाथ ने बताया कि महायोगी गुरु गोरखनाथ ने इस स्थान पर भगवान भोले की विशेष पूजा-अर्चना की थी. तभी से यह नाथ संप्रदाय का मुख्य बिंदु माना जाता है. यहां पर नाथ संप्रदाय का हर पीठाधीश्वर अपने कार्यकाल में विशेष पूजा-अर्चना करता है. वर्तमान समय में गोरक्ष पीठाधीश्वर और प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी समय-समय पर यहां आते हैं और इसके रखरखाव पर विशेष ध्यान देते हैं. नाथ संप्रदाय से जुड़े संत को ही यहां पर पुजारी रखा जाता है. मानसरोवर मंदिर के जानकार और पुजारी संजय तिवारी बताते हैं कि इस मंदिर का इतिहास द्वापर युग और कालांतर से जुड़ा हुआ है. इस मंदिर परिसर में कालांतर में राजा मान सिंह द्वारा इस मंदिर का निर्माण कराया गया था. यहां पर बड़ी ही दूर दराज से लोग आकर भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग पर जलाभिषेक, दुग्ध अभिषेक आदि करा के अपनी मनोवांछित मनोकामना की पूर्ति करते हैं.
इसे भी पढ़ें- सावन 2021: मनकामेश्वर मंदिर में आसानी से करना चाहते हैं दर्शन तो इस लिंक से करें बुकिंग
रानियां यहां स्थापित पोखरे में करती थीं स्नान
जानकार गंगेश्वर पांडेय ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि राजा मानसिंह की रानियां यहां पर स्थापित पोखरे में आकर स्नान, ध्यान करती थीं और फिर गुप्त रास्ते से वापस अपने शीशमहल में चली जाती थीं. एक बार भगवान भोले राजा मानसिंह के सपने में आए और मंदिर का निर्माण कराने का निर्देश दिया. राजा मानसिंह द्वारा पोखरे के निर्माण के दौरान स्वयंभू के रूप में भगवान भोलेनाथ का शिवलिंग मिला, जहां राजा ने पूरे विधि-विधान के साथ मंदिर का निर्माण करा के उसे स्थापित कराया.
यहां आज भी स्थापित हैं सती मंदिर
पंडित राम उजागीर पांडे ने बताया कि उनकी कई पीढ़ियां यहां पर आती रही हैं और उनकी उम्र भी वर्तमान समय में 50 साल है. पिछले कई वर्षों से वह यहां पर आकर ध्यान अनुष्ठान का कार्य करते हैं. इस मंदिर का इतिहास लगभग ढाई हजार साल पुराना है. यहां पर आज भी सती मंदिर स्थापित है. बताया जाता है कि जब स्त्रियां सती होती थीं तो मंदिर का निर्माण कराया जाता था और यहां पर आज भी कई सती मंदिर स्थापित हैं. वहीं पास में राजा मान सिंह के भाई ने भी एक पोखरे का निर्माण कराया था, जिसका थोड़ा बहुत अस्तित्व अभी भी बचा हुआ है, यहां भोलेनाथ की विशेष कृपा बनी रहती है.