गोरखपुर : 4 फरवरी 1921 को चौरी चौरा की क्रांति को 99 वर्ष पूरे हो जाएंगे. यह घटना इस तिथि से ही अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश करेगी. कहा जाता है कि इस घटना ने देश की आजादी के लिए होने वाले संघर्षों को एक नया आयाम दिया था, जिससे अंग्रेजी हुकूमत बुरी तरह हिल गई थी. अंग्रेजी हुकूमत में थाने को फूंकने और 23 पुलिसकर्मियों को जलाकर मार डालने के आरोपी 172 जन आंदोलनकारियों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ था. इस दौरान महामना मदन मोहन मालवीय ने चौरी-चौरा क्रांति को अंजाम देने वाले 153 क्रांतिकारियों को फांसी के फंदे से बचाया था.
153 आंदोलनकारी फांसी से हुए मुक्त
दरअसल पूर्वांचल के गांधी कहे जाने वाले महान समाजसेवी बाबा राघव दास की पहल पर पंडित मदन मोहन मालवीय ने इस घटना से जुड़े का क्रांतिकारियों के मुकदमे की पैरवी कोर्ट में किया था. इसकी वजह से 153 आंदोलनकारी फांसी से मुक्त हुए थे, वहीं 19 लोगों को फांसी सजा हुई. महामना ने यह मुकदमा अपने वकालत पेशा को छोड़ने के करीब 10 वर्षों बाद लड़ा था, जिसका ऐतिहासिक निर्णय इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया.
600 पेज के मिले कोर्ट के दस्तावेज
प्रदेश की योगी सरकार इस घटना के शताब्दी वर्ष पूरे होने पर आगामी 4 फरवरी को, क्रांतिकारियों के शहीद स्थल पर बने स्मारक पर, एक भव्य कार्यक्रम आयोजित करके उन्हें नमन करने जा रही है. साथ ही इस घटना से जुड़े विभिन्न पहलुओं को याद करने और सच्चाई को उजागर करने के लिए पूरे वर्ष भर कार्यक्रम का रूपरेखा भी तैयार कर लिया है.
दस्तावेजों को कर रहे एकत्रित
गोरखपुर के जिलाधिकारी के विजेंद्र पांडियन ने बताया कि इस घटना की सही जानकारी अभी तक लोगों के पास नहीं है. यही वजह है कि सरकार के प्रयास पर लोअर कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट तक जो पैरवी हुई थी और जो दस्तावेज मौजूद हैं, उनको एकत्रित किया जा रहा है. जिससे इस घटना का सही रूप लोगों के सामने आ सके. उन्होंने कहा कि किसी को यह नहीं पता यह घटना क्यों हुई थी. अंग्रेजों ने 288 लोगों को फांसी क्यों सुनाई थी और मालवीय जी के प्रयास से कैसे अधिकतम जन आंदोलनकारियों को बचाते हुए 19 लोगों को फांसी की सजा हुई थी.
मालवीय जी ने सात बार किया था बहस
उन्होंने कहा कि मालवीय जी ने इस मामले में लोअर कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक करीब सात बार बहस किया था. डीएम ने बताया कि करीब 600 पन्ने का जजमेंट प्रशासन के हाथ लगा है. जिसके आधार पर इस घटना को और रेखांकित करने का प्रयास किया जाएगा. वहीं शहीदों के परिजन और उन्हें सम्मान देने के लिए बनाए गयी समिति के अध्यक्ष राम नारायण त्रिपाठी भी इस घटना में मालवीय जी के योगदान और उनके बहस का जिक्र करने से नहीं चूकते. वह कहते हैं कि मालवीय जी के साथ बाद में मोतीलाल नेहरू भी कोर्ट की पैरवी में शामिल हो गए थे.
क्यों हुई थी चौरी-चौरा की क्रांति
महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से जुड़े स्वयंसेवक एकत्रित होकर विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के लिए एक जुलूस लेकर जा रहे थे. तत्कालीन चौरी-चौरा थाने के इंस्पेक्टर गुप्तेश्वर सिंह ने इन्हें रोका और लाठियां भी बरसाईं. जिससे निहत्थे लोगों ने पुलिस पर पत्थरबाजी शुरू कर दिया. इस घटना में तीन क्रांतिकारी तत्काल शहीद हो गए. इससे उत्तेजित भीड़ ने थाने में आग लगा दिया. इस घटना में इंस्पेक्टर गुप्तेश्वर सिंह सहित 23 पुलिसकर्मी मारे गए. वर्तमान में चौरी-चौरा थाने में इन पुलिसकर्मियों की कब्रगाह बनी हुई है. यहां कब्रगाह इसलिए लिखना उचित हो जाता है क्योंकि इतिहास से जुड़े लोग और क्रांतिकारियों के परिजन किसी भी सूरत में इस घटना में मारे गए पुलिसकर्मियों को शहीद नहीं मानते.
4 फरवरी 1922 को ही हुई थी चौरी-चौरा की घटना
वर्तमान में कई दस्तावेजों में चौरी-चौरा की घटना को अलग-अलग तिथियों में दिखाया जाता है. कहीं इसके होने का जिक्र 4 फरवरी किया गया है तो विकिपीडिया और गूगल 5 फरवरी होना बताता है. लेकिन जब दस्तावेज खंगाले गए तो लोअर कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट में जिन तिथियों में मामला आगे बढ़ा है वह पूरी तरह से 4 फरवरी को ही स्थापित करता है. इस बाबत इतिहासविद और पुरातात्विक विश्लेषक डॉ. मनोज कुमार गौतम ने बताया कि चौरी-चौरा एक ऐतिहासिक घटना थी, यह कांड नहीं थी. उन्होंने कहा कि यह 4 फरवरी को ही घटित हुई थी.
अब इस महत्वपूर्ण तिथि को देश और दुनिया के कैनवस पर एक नए ढंग से योगी सरकार स्थापित करने जा रही है. इसमें प्रदेश की राज्यपाल भी शामिल होंगी, और पीएम मोदी वर्चुअल माध्यम से शामिल होते हुए शहीदों के सम्मान में डाक टिकट जारी करेंगे. वहीं सरकार की इस पहल का स्वागत समिति से जुड़े लोगों ने किया है.