गोरखपुर: कोरोना महामारी के दौरान जारी लॉकडाउन का असर गीता प्रेस जैसे विश्व प्रसिद्ध संस्थान पर भी पड़ा है. धार्मिक पुस्तकों की छपाई के इस सबसे बड़े केंद्र से पिछले 94 बरसों से प्रकाशित होती चली आ रही 'कल्याण' नामक पत्रिका का प्रकाशन इस बार नहीं हो पाया है. अप्रैल माह में यह पत्रिका अपने पाठकों के लिए ऑनलाइन उपलब्ध हुई है, तो आने वाले मई माह में भी स्थितियां कुछ ऐसी ही दिखाई दे रही हैं, हालांकि गीता प्रेस प्रबंधन ने पत्रिका को छापने की पूरी तैयारी कर रखी है, लेकिन अगर लॉकडाउन में कोई ढील नहीं मिलती है और प्रेस में कार्य करने वाले श्रमिक नहीं आ पाते हैं तो मई माह का अंक भी पाठकों को ऑनलाइन ही पढ़ने को मिलेगा.
'कल्याण' गीता प्रेस की एक ऐसी पत्रिका है, जिसके अब तक 16 करोड़ 50 लाख से ज्यादा अंक प्रकाशित हो चुके हैं. इस केंद्र से गीता, रामायण, हनुमान चालीसा, सुंदरकांड समेत कई तरह की धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन हिंदी, तेलुगु, बंगला समेत दर्जनों भाषा में होता है. वहीं कल्याण पत्रिका का अपना एक विशेष महत्व है. यह पत्रिका आजादी के पहले से प्रकाशित होती चली आ रही है. इस पत्रिका का स्वतंत्रता आंदोलन में भी बड़ा अहम रोल था. इसके साथ एक बात और भी प्रमुखता से जुड़ी हुई है कि इस पत्रिका में किसी भी प्रकार का कोई विज्ञापन नहीं छापा जाता. प्रेस के ट्रस्टी देवीदयाल अग्रवाल ने कहा है कि संस्थान पाठकों को ऑनलाइन पत्रिका पढ़ाने के लिए पूरी तरह तैयार है, वहीं इजाजत मिलते ही इसका प्रकाशन भी किया जाएगा.
गीता प्रेस संस्थान संकट की इस घड़ी में लोगों की मदद के लिए भी खुलकर आगे आया है. जरूरतमंदों को पके हुए भोजन से लेकर खाद्य सामग्री तक वितरित किया है. वह सेवा और समर्पण के साथ अपने धर्मार्थ कार्य को अंजाम देने में भी लगातार जुटा हुआ है. कोरोना संकट के बीच 'कल्याण' नामक पत्रिका को वह भले ही प्रिंट रूप में प्रकाशित नहीं कर पाया है लेकिन ऑनलाइन रूप से पाठकों को इसे मुहैया कराने में सफल हुआ है.