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संस्कृत भाषा के उत्थान के लिए तन-मन से जुटना होगा: प्रो. मुरली मनोहर पाठक - लाल बहादुर शास्त्री केंद्रीय विश्वविद्यालय

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष प्रो. मुरली मनोहर पाठक को श्री लाल बहादुर शास्त्री केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली का कुलपति नियुक्त किया गया. इस दौरान ईटीवी भारत ने प्रो. मुरली मनोहर पाठक से एक्सक्लूसिव बातचीत की. जहां उन्होंने अपने विचार साझा किए.

प्रो. मुरली मनोहर पाठक.
प्रो. मुरली मनोहर पाठक.
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Published : Oct 29, 2021, 1:26 PM IST

गोरखपुर: दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. मुरली मनोहर पाठक, लाल बहादुर शास्त्री केंद्रीय विश्वविद्यालय के पहले कुलपति बनाए गए हैं. उनके नाम पर केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मुहर लगाई है. देश के 20 विश्वविद्यालयों में कुलपति बनाए जाने को लेकर प्रोफेसर पाठक का नाम चल रहा था, लेकिन आखिरकार उन्हें उनकी भाषा से जुड़े और देश की राष्ट्रीय राजधानी में स्थापित संस्कृत भाषा इस केंद्रीय विश्वविद्यालय के पहले कुलपति बनने का गौरव हासिल हुआ. मूलतः देवरिया जनपद के लार के रहने वाले प्रोफेसर पाठक की प्रारंभिक शिक्षा उनके लाल टाउन में हुई और वह आगे की पूरी पढ़ाई इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से पूर्ण किए. संस्कृत भाषा में पीजी और पीएचडी के साथ उन्होंने विधि में भी स्नातक की डिग्री हासिल किया है. उनकी नियुक्ति से निश्चित रूप से गोरखपुर विश्वविद्यालय का मान बढ़ा है जो उनकी योग्यता और कार्य दक्षता को भी प्रमाणित करता है.

ईटीवी भारत से खास बातचीत में प्रोफेसर मुरली मनोहर पाठक ने कहा कि निश्चित रूप से जिस तरह से भौतिकता की अंधी दौड़ में संस्कृत भाषा और देश की संस्कृति से लोगों की दूरी बढ़ती जा रही है. वह चिंतनीय है. संस्कृत भाषा को उन्होंने अपने स्तर से अभी तक आगे बढ़ाने का जो भी प्रयास किया है. उसे अब यह नई जिम्मेदारी और भी ताकत देगी. उन्होंने कहा कि पूरे विश्व को ज्ञान का प्रसाद भारत ने दिया था. विश्व की सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत है.

जानकारी देते प्रो. मुरली मनोहर पाठक.

अगर संस्कार की बात हो या फिर विकास या जीवन जीने की कला इस सब का मार्गदर्शन संस्कृत भाषा ने पूरी दुनिया को कराया और दुनिया ने भी इसकी नकल की, लेकिन जब दुनिया की संस्कृति को भारत मे अंगीकार किया जाने लगा तो उसका परिणाम अच्छा नहीं रहा. इसलिए उनकी कोशिश होगी कि नई शिक्षा नीति जो 2020 में लागू की गई है उसके मूल उद्देश्य जिसमें यह कहा गया है कि भारतीय ज्ञान प्रणाली के आधार पर ही हम भारत को फिर से विश्व गुरु बना सकते हैं. उसको लागू करने का पूरा प्रयास होगा. उन्होंने कहा कि चयनकर्ताओं ने जो उनपर भरोसा जताया है उसे साबित करने के लिए वह अगले 5 वर्ष के कार्यकाल में, लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत संस्थान के संस्थापनकर्ताओं के सपनों को पूरा करने के लिए अपनी पूरी ऊर्जा झोंक दूंगा.

प्रोफेसर पाठक ने दिल्ली स्थित इस विश्वविद्यालय में अपनी तैनाती को गोल्डन अपॉर्चुनिटी कहा उन्होंने कहा कि इसे साबित करने के लिए वह अपनी योग्यता और सभी संबंधों को पूरी तरह उपयोग करेंगे. उन्होंने कहा कि संस्कृत जिसके साथ होगी उसका विकास हर हाल में होना है यही वजह होगी कि उनकी कोशिश में संस्कृत की फिजिक्स संस्कृत की बायोलॉजी संस्कृत की केमिस्ट्री संस्कृत की पत्नी संस्कृत के टेक्नोलॉजी लोगों के सामने आए जिसमें ऋषियों ने जो दिव्यदृष्टि देखा था. उसे वह अपने प्रयोगशाला में उतारने का प्रयास करेंगे. उन्होंने कहा कि जिस लाल बहादुर शास्त्री केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के वह कुलपति बनाए गए हैं. उसकी स्थापना शास्त्री जी की परिकल्पना को पूरा करने के लिए अखिल भारतीय साहित्य संस्कृत शिक्षण मंडल ने 1962 में एक केंद्र के रूप में की थी. आगे चलकर यह डीम्ड यूनिवर्सिटी बना और 2020 में इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने का गौरव हासिल हुआ. जिसके वह पहले कुलपति बनाए गए हैं. यह अंतरराष्ट्रीय लर्निंग सेंटर के रूप में स्थापित हो सके इसका पूरा प्रयास होगा.

इसे भी पढ़ें- गोरखपुर विश्वविद्यालय में परीक्षा देने आई छात्रा का दुपट्टे से लटकता मिला शव

गोरखपुर: दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. मुरली मनोहर पाठक, लाल बहादुर शास्त्री केंद्रीय विश्वविद्यालय के पहले कुलपति बनाए गए हैं. उनके नाम पर केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मुहर लगाई है. देश के 20 विश्वविद्यालयों में कुलपति बनाए जाने को लेकर प्रोफेसर पाठक का नाम चल रहा था, लेकिन आखिरकार उन्हें उनकी भाषा से जुड़े और देश की राष्ट्रीय राजधानी में स्थापित संस्कृत भाषा इस केंद्रीय विश्वविद्यालय के पहले कुलपति बनने का गौरव हासिल हुआ. मूलतः देवरिया जनपद के लार के रहने वाले प्रोफेसर पाठक की प्रारंभिक शिक्षा उनके लाल टाउन में हुई और वह आगे की पूरी पढ़ाई इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से पूर्ण किए. संस्कृत भाषा में पीजी और पीएचडी के साथ उन्होंने विधि में भी स्नातक की डिग्री हासिल किया है. उनकी नियुक्ति से निश्चित रूप से गोरखपुर विश्वविद्यालय का मान बढ़ा है जो उनकी योग्यता और कार्य दक्षता को भी प्रमाणित करता है.

ईटीवी भारत से खास बातचीत में प्रोफेसर मुरली मनोहर पाठक ने कहा कि निश्चित रूप से जिस तरह से भौतिकता की अंधी दौड़ में संस्कृत भाषा और देश की संस्कृति से लोगों की दूरी बढ़ती जा रही है. वह चिंतनीय है. संस्कृत भाषा को उन्होंने अपने स्तर से अभी तक आगे बढ़ाने का जो भी प्रयास किया है. उसे अब यह नई जिम्मेदारी और भी ताकत देगी. उन्होंने कहा कि पूरे विश्व को ज्ञान का प्रसाद भारत ने दिया था. विश्व की सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत है.

जानकारी देते प्रो. मुरली मनोहर पाठक.

अगर संस्कार की बात हो या फिर विकास या जीवन जीने की कला इस सब का मार्गदर्शन संस्कृत भाषा ने पूरी दुनिया को कराया और दुनिया ने भी इसकी नकल की, लेकिन जब दुनिया की संस्कृति को भारत मे अंगीकार किया जाने लगा तो उसका परिणाम अच्छा नहीं रहा. इसलिए उनकी कोशिश होगी कि नई शिक्षा नीति जो 2020 में लागू की गई है उसके मूल उद्देश्य जिसमें यह कहा गया है कि भारतीय ज्ञान प्रणाली के आधार पर ही हम भारत को फिर से विश्व गुरु बना सकते हैं. उसको लागू करने का पूरा प्रयास होगा. उन्होंने कहा कि चयनकर्ताओं ने जो उनपर भरोसा जताया है उसे साबित करने के लिए वह अगले 5 वर्ष के कार्यकाल में, लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत संस्थान के संस्थापनकर्ताओं के सपनों को पूरा करने के लिए अपनी पूरी ऊर्जा झोंक दूंगा.

प्रोफेसर पाठक ने दिल्ली स्थित इस विश्वविद्यालय में अपनी तैनाती को गोल्डन अपॉर्चुनिटी कहा उन्होंने कहा कि इसे साबित करने के लिए वह अपनी योग्यता और सभी संबंधों को पूरी तरह उपयोग करेंगे. उन्होंने कहा कि संस्कृत जिसके साथ होगी उसका विकास हर हाल में होना है यही वजह होगी कि उनकी कोशिश में संस्कृत की फिजिक्स संस्कृत की बायोलॉजी संस्कृत की केमिस्ट्री संस्कृत की पत्नी संस्कृत के टेक्नोलॉजी लोगों के सामने आए जिसमें ऋषियों ने जो दिव्यदृष्टि देखा था. उसे वह अपने प्रयोगशाला में उतारने का प्रयास करेंगे. उन्होंने कहा कि जिस लाल बहादुर शास्त्री केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के वह कुलपति बनाए गए हैं. उसकी स्थापना शास्त्री जी की परिकल्पना को पूरा करने के लिए अखिल भारतीय साहित्य संस्कृत शिक्षण मंडल ने 1962 में एक केंद्र के रूप में की थी. आगे चलकर यह डीम्ड यूनिवर्सिटी बना और 2020 में इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने का गौरव हासिल हुआ. जिसके वह पहले कुलपति बनाए गए हैं. यह अंतरराष्ट्रीय लर्निंग सेंटर के रूप में स्थापित हो सके इसका पूरा प्रयास होगा.

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