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गोरखपुर: क्रांतिकारियों की वीरगाथा को याद दिलाता 'घंटाघर' - gorakhpur today news

जब-जब गणतंत्र दिवस और 15 अगस्त आता है. देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले क्रांतिकारियों की याद जेहन में ताजा हो जाती है. यूपी के गोरखपुर में स्थापित घंटाघर ऐसे ही क्रांतिकारियों की वीरगाथा को याद दिलाता है.

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क्रांतिकारियों की याद दिलाता गोरखपुर का घंटाघर
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Published : Jan 25, 2020, 11:33 PM IST

गोरखपुर: जब-जब गणतंत्र दिवस और 15 अगस्त आता है, देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले रणबांकुरों की याद जेहन में ताजा हो जाती है. जिले के व्यस्ततम बाजार में स्थापित घंटाघर की मीनार ऐसे ही क्रांतिकारियों की याद दिलाता है.

क्रांतिकारियों की याद दिलाता गोरखपुर का घंटाघर

क्रांतिकारियों को दी गई फांसी
1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गोरखपुर में चलने वाली क्रांतिकारी गतिविधियों के बीच ब्रिटिश हुकूमत के निशाने पर आए अली हसन समेत दर्जनभर क्रांतिकारियों को घंटाघर के पास स्थित पाकड़ के पेड़ पर लटका कर फांसी दी गई थी. समय के साथ पेड़ तो गिर गया, लेकिन उस स्थान पर खड़ा घंटाघर उन क्रांतिवीरों की वीरगाथा को भूलने नहीं देता है.

शहीदों की याद में हुआ निर्माण
घंटाघर के निर्माण के इतिहास में जाएं तो यह पता चलता है कि 1930 में रायगंज के सेठ रामखेलावन और सेठ ठाकुर प्रसाद ने पिता सेठ चिगान साहू की याद में इस स्थान पर एक मीनार सरीखी ऊंची इमारत का निर्माण कराया था, जो शहीदों को समर्पित थी. उस इमारत की पहचान ही मौजूदा समय के घंटाघर के रूप में होती है. चिगान साहू ने अंग्रेजों की ओर से लगाए गए लगान को देने से मना कर दिया था और शहीदों की याद में इस मीनार को खड़ा करने का संकल्प लिया था. जो आज अली हसन समेत दर्जनों क्रन्तिकारियों के बलिदान की याद दिलाता है.

यह भी पढ़ें: गणतंत्र दिवस 2020 : बीटिंग रिट्रीट में अब गूंजेगा 'वंदे मातरम'

बदहाली से स्थानीय व्यापारी दुखी
देश के रणबांकुरों के सम्मान में खड़ी इस इमारत की बदहाली से स्थानीय व्यापारी दुखी हैं. वह चाहते हैं कि इसका भव्य और साफ-सुथरा स्वरूप तैयार किया जाए. आज हमें इस अमूल्य धरोहर को संवार कर रखने की जरूरत है, लेकिन इसके लिए प्रशासनिक पहल जरूरी है.

गोरखपुर: जब-जब गणतंत्र दिवस और 15 अगस्त आता है, देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले रणबांकुरों की याद जेहन में ताजा हो जाती है. जिले के व्यस्ततम बाजार में स्थापित घंटाघर की मीनार ऐसे ही क्रांतिकारियों की याद दिलाता है.

क्रांतिकारियों की याद दिलाता गोरखपुर का घंटाघर

क्रांतिकारियों को दी गई फांसी
1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गोरखपुर में चलने वाली क्रांतिकारी गतिविधियों के बीच ब्रिटिश हुकूमत के निशाने पर आए अली हसन समेत दर्जनभर क्रांतिकारियों को घंटाघर के पास स्थित पाकड़ के पेड़ पर लटका कर फांसी दी गई थी. समय के साथ पेड़ तो गिर गया, लेकिन उस स्थान पर खड़ा घंटाघर उन क्रांतिवीरों की वीरगाथा को भूलने नहीं देता है.

शहीदों की याद में हुआ निर्माण
घंटाघर के निर्माण के इतिहास में जाएं तो यह पता चलता है कि 1930 में रायगंज के सेठ रामखेलावन और सेठ ठाकुर प्रसाद ने पिता सेठ चिगान साहू की याद में इस स्थान पर एक मीनार सरीखी ऊंची इमारत का निर्माण कराया था, जो शहीदों को समर्पित थी. उस इमारत की पहचान ही मौजूदा समय के घंटाघर के रूप में होती है. चिगान साहू ने अंग्रेजों की ओर से लगाए गए लगान को देने से मना कर दिया था और शहीदों की याद में इस मीनार को खड़ा करने का संकल्प लिया था. जो आज अली हसन समेत दर्जनों क्रन्तिकारियों के बलिदान की याद दिलाता है.

यह भी पढ़ें: गणतंत्र दिवस 2020 : बीटिंग रिट्रीट में अब गूंजेगा 'वंदे मातरम'

बदहाली से स्थानीय व्यापारी दुखी
देश के रणबांकुरों के सम्मान में खड़ी इस इमारत की बदहाली से स्थानीय व्यापारी दुखी हैं. वह चाहते हैं कि इसका भव्य और साफ-सुथरा स्वरूप तैयार किया जाए. आज हमें इस अमूल्य धरोहर को संवार कर रखने की जरूरत है, लेकिन इसके लिए प्रशासनिक पहल जरूरी है.

Intro:गोरखपुर। जब-जब गणतंत्र दिवस, 15 अगस्त आता है तो देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले रणबांकुरों की याद जेहन में ताजा हो जाती है। गोरखपुर के व्यस्ततम बाजार में स्थापित घंटाघर की मीनार ऐसे ही रणबांकुरे की याद दिलाती है। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गोरखपुर में चलने वाली क्रांतिकारी गतिविधियों के बीच ब्रिटिश हुकूमत के निशाने पर आए अली हसन समेत दर्जनभर क्रांतिकारियों को घंटाघर के इस स्थान पर स्थित पाकड़ के पेड़ में लटका कर फांसी दे दी गई थी। समय के साथ पेड़ तो गिर गया लेकिन उस स्थान पर खड़ा घंटाघर का यह मीनार उन क्रांतिवीरों की याद आज भी लोगों के जेहन में ताजा कर देता है।

नोट--रेडी टू फ्लैश... voice ओवर अटैच है।...स्पेशल खबर है।


Body:घंटाघर के निर्माण के इतिहास में जाए तो यह पता चलता है कि 1930 में रायगंज के सेठ रामखेलावन और सेठ ठाकुर प्रसाद ने पिता सेठ चिगान साहू की याद में इस स्थान पर एक मीनार सरीखी ऊंची इमारत का निर्माण कराया जो शहीदों को समर्पित थी। उस इमारत की पहचान ही मौजूदा समय के घंटाघर के रूप में होती है। चिगान साहू ने अंग्रेजों द्वारा लगाए गए लगान को देने से मना कर दिया था और शहीदों की याद में इस मीनार को खड़ा करने का संकल्प किया था। जो आज अली हसन समेत दर्जनों क्रन्तिकारियों के संघर्षों बलिदान की याद दिलाता है।

बाइट--पंकज गोयल, अध्यक्ष, सर्राफा व्यापारी संघ
बाइट-अनूप अग्निहोत्री, स्थानीय व्यापारी


Conclusion:देश के रणबांकुरों के सम्मान में खड़ी इस इमारत की बदहाली से स्थानीय व्यापारी दुखी हैं। वह चाहते हैं कि इसका भव्य और साफ-सुथरा स्वरूप गोरखपुर का नगर निगम प्रशासन तैयार करता तो यह गोरखपुर की एक अनूठी पहचान कायम करने में सफल होता। यह प्रशासन की उपेक्षा से बदहाल हो रहा है जो व्यापारियों के स्नेह से आज भी संकटों से उबर जाता है। जरूरत है इसे अमूल्य धरोहर बनाने की जिसके लिए प्रशासनिक पहल जरूरी है।

मुकेश पाण्डेय
Etv भारत, गोरखपुर
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