ETV Bharat / state

डेढ़ सौ साल से अकाल-महामारी में भी मददगार बन रहा गोरखपुर रेलवे

author img

By

Published : May 25, 2020, 1:08 PM IST

उत्तर प्रदेश का गोरखपुर रेलवे स्टेशन डेढ़ सौ साल पहले पड़े अकाल में भी लोगों के लिए भी मददगार बना था. आज जब देशभर में लॉकडाउन के चलते लाखों प्रवासी श्रमिक दूसरे राज्यों में फंसे हैं तो भी गोरखपुर रेलवे उन्हें उनके गंतव्य तक पहुंचाने में मददगार साबित हो रहा है.

गोरखपुर रेलवे स्टेशन
गोरखपुर रेलवे स्टेशन

गोरखपुर: सड़क और रेलवे मानव जीवन में जीवन रेखा की भूमिका निभाती है. मौजूदा समय में कोरोना के संकट से जूझ रहे प्रवासी मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने में रेलवे एक बड़ा साधन बना है. ऐसे ही कई और भी उदाहरण हैं, जब रेलवे ने अकाल और संकट के समय में जरूरतमंदों को खाद्य सामग्री से लेकर जीवन से जुड़ी वस्तुओं को पहुंचाने में मददगार और तारणहार बना है.

स्पेशल स्टोरी.

जब अकाल में बिहार पहुंचाई राहत सामाग्री

बात करें तो करीब 145 साल पहले बिहार के दरभंगा और आसपास के इलाकों में जबरदस्त अकाल पड़ा था. लोगों के लिए भोजन और पशुओं के लिए चारे का संकट खड़ा हो गया था. मौतें भी होने लगी थीं. संकटग्रस्त इस क्षेत्र में खाद्य सामग्री पहुंचाने का कोई साधन नहीं था, लेकिन उस समय के अंग्रेजी हुकूमत को भी अकाल ने हिला दिया, जिसके बाद दलसिंह सराय से समस्तीपुर होते हुए दरभंगा तक 1875 में पूर्वोत्तर रेलवे ने 6 महीने के अंदर 68 किलोमीटर रेलवे लाइन बिछाकर पशुओं और लोगों तक चारा से लेकर खाद्य सामग्री तक पहुंचाने का इतिहास बनाया, जिसका प्रमाण रेलवे के दस्तावेज खुद बयां करते हैं.

देश में पहले 'कंपनी रेलवे' हुआ करती थी. दलसिंह सराय स्टेशन उस वक्त तिरहुत रेलवे के अधीन था, जो बाद में 14 अप्रैल 1952 में जोन के गठन के वक्त पूर्वोत्तर रेलवे का हिस्सा बन गया. रेलवे के दस्तावेज में रेल लाइन बिछाने और ट्रेन चलाए जाने के साक्ष्य मौजूद हैं. रेलवे के सीपीआरओ पंकज कुमार सिंह की मानें तो जिस क्षेत्र में आनन-फानन में रेलवे ट्रैक बिछाया गया था, पहले वहां बाढ़ फिर जबरदस्त सूखा पड़ा था. रास्ते कट गए थे और नदियों ने अपना रास्ता बदल दिया था.

अकाल के चलते राशन की कमी हो गई थी और पशु भी चारे के अभाव में दम तोड़ रहे थे. दस्तावेजों में हजारों मौत का जिक्र है. ऐसे में राहत सामग्री पहुंचाने के लिए अंग्रेज अफसरों ने रेल लाइन बिछाने का निर्णय लिया, जो आगे चलकर भी माल ढुलाई और यात्री परिवहन का जरिया बना.

यह वह घटनाक्रम था, जिसके बाद उत्तरी बिहार में रेल लाइन बिछाए जाने की गति चल पड़ी. दलसिंह सराय से दरभंगा लाइन बिछाने के बाद ही उत्तरी बिहार में रेल लाइनों का जाल बिछने लगा.

दस्तावेज के मुताबिक 1877 में समस्तीपुर से मुजफ्फरपुर, 1833 में मुजफ्फरपुर से मोतिहारी और मोतिहारी से बेतिया तक लाइन बिछी, लेकिन जो रेलवे लाइन इतिहास के पन्नों में दर्ज हुई वह दलसिंह सराय से दरभंगा तक समस्तीपुर होते हुए 43 मील यानी कि 68 किलोमीटर की बिछाई गई थी. अकाल के समय में अंग्रेज अफसरों ने दूसरे राज्यों से भी मजदूर बुलाकर इस काम को तेजी के साथ पूर्ण कराया था.

गोरखपुर: सड़क और रेलवे मानव जीवन में जीवन रेखा की भूमिका निभाती है. मौजूदा समय में कोरोना के संकट से जूझ रहे प्रवासी मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने में रेलवे एक बड़ा साधन बना है. ऐसे ही कई और भी उदाहरण हैं, जब रेलवे ने अकाल और संकट के समय में जरूरतमंदों को खाद्य सामग्री से लेकर जीवन से जुड़ी वस्तुओं को पहुंचाने में मददगार और तारणहार बना है.

स्पेशल स्टोरी.

जब अकाल में बिहार पहुंचाई राहत सामाग्री

बात करें तो करीब 145 साल पहले बिहार के दरभंगा और आसपास के इलाकों में जबरदस्त अकाल पड़ा था. लोगों के लिए भोजन और पशुओं के लिए चारे का संकट खड़ा हो गया था. मौतें भी होने लगी थीं. संकटग्रस्त इस क्षेत्र में खाद्य सामग्री पहुंचाने का कोई साधन नहीं था, लेकिन उस समय के अंग्रेजी हुकूमत को भी अकाल ने हिला दिया, जिसके बाद दलसिंह सराय से समस्तीपुर होते हुए दरभंगा तक 1875 में पूर्वोत्तर रेलवे ने 6 महीने के अंदर 68 किलोमीटर रेलवे लाइन बिछाकर पशुओं और लोगों तक चारा से लेकर खाद्य सामग्री तक पहुंचाने का इतिहास बनाया, जिसका प्रमाण रेलवे के दस्तावेज खुद बयां करते हैं.

देश में पहले 'कंपनी रेलवे' हुआ करती थी. दलसिंह सराय स्टेशन उस वक्त तिरहुत रेलवे के अधीन था, जो बाद में 14 अप्रैल 1952 में जोन के गठन के वक्त पूर्वोत्तर रेलवे का हिस्सा बन गया. रेलवे के दस्तावेज में रेल लाइन बिछाने और ट्रेन चलाए जाने के साक्ष्य मौजूद हैं. रेलवे के सीपीआरओ पंकज कुमार सिंह की मानें तो जिस क्षेत्र में आनन-फानन में रेलवे ट्रैक बिछाया गया था, पहले वहां बाढ़ फिर जबरदस्त सूखा पड़ा था. रास्ते कट गए थे और नदियों ने अपना रास्ता बदल दिया था.

अकाल के चलते राशन की कमी हो गई थी और पशु भी चारे के अभाव में दम तोड़ रहे थे. दस्तावेजों में हजारों मौत का जिक्र है. ऐसे में राहत सामग्री पहुंचाने के लिए अंग्रेज अफसरों ने रेल लाइन बिछाने का निर्णय लिया, जो आगे चलकर भी माल ढुलाई और यात्री परिवहन का जरिया बना.

यह वह घटनाक्रम था, जिसके बाद उत्तरी बिहार में रेल लाइन बिछाए जाने की गति चल पड़ी. दलसिंह सराय से दरभंगा लाइन बिछाने के बाद ही उत्तरी बिहार में रेल लाइनों का जाल बिछने लगा.

दस्तावेज के मुताबिक 1877 में समस्तीपुर से मुजफ्फरपुर, 1833 में मुजफ्फरपुर से मोतिहारी और मोतिहारी से बेतिया तक लाइन बिछी, लेकिन जो रेलवे लाइन इतिहास के पन्नों में दर्ज हुई वह दलसिंह सराय से दरभंगा तक समस्तीपुर होते हुए 43 मील यानी कि 68 किलोमीटर की बिछाई गई थी. अकाल के समय में अंग्रेज अफसरों ने दूसरे राज्यों से भी मजदूर बुलाकर इस काम को तेजी के साथ पूर्ण कराया था.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.