गोरखपुर: इस कड़कड़ाती ठंड में बेमौसम बारिश और ठंडी हवा चलने से फसलों पर पाले का खतरा मंडराने लगा है. कुछ फसलों में पाले का असर धीरे-धीरे नजर भी आने लगा है. पूर्वांचल में ठंड का कहर जारी है. बेमौसम बारिश और बर्फीली हवा चलने से ठिठुरन में बेतहाशा इजाफा हो गया. ठंड से जनजीवन इस कदर अस्त-व्यस्त है कि आम आदमी घरों में निकल नहीं पा रहा है.
बदलते मौसम में रबी की फसलों पर पाले का खतरा मंडराने लगा है. जानकार बताते हैं कि दिसम्बर-जनवरी महीने के बीच आलू, मटर और सरसों जैसी फसलों को पाले से अधिक नुकसान होने की संभावना बनी रहती है. हालांकि किसान सही समय पर सही तकनीक अपनाकर अपनी फसलों को पाले से सुरक्षित कर सकते हैं.
शीतलहर की दशा में फसलों को ज्यादा नुकसान होने की संभावना बढ़ जाती है. टमाटर, आलू, मिर्च, बैंगन, भिन्डी मटर, चना, धनिया आदि फसलों में सबसे ज्यादा नुकसान हो सकता है.
विशेषज्ञों की सलाह
महायोगी गोरखनाथ कृषि विज्ञान केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आरपी सिंह बताते हैं कि पाले के प्रभाव से पौधों की पत्तियां और फूल झुलसे हुए दिखाई देते हैं. वह बाद में झड़ जाते हैं. खासकर अधपके फल सिकुड़ जाते हैं. उनमें झुर्रियां पड़ जाती हैं और कलिया गिर जाती हैं.
दाने सिकुड़ जाते हैं
फलियों और बालियों में दाने नहीं बनते हैं और बन रहे दाने सिकुड़ जाते हैं. दाने कम भार के और पतले हो जाते हैं. रबी की फसलों में फूल और बालियां-फलियां आने और उनके विकसित होते समय पाला पड़ने की सर्वाधिक संभावनाएं रहती हैं.
सही समय पर उपाय कर बचा सकते हैं पौधे
इस समय कृषकों को सतर्क रहकर फसलों की सुरक्षा के उपाय अपनाने चाहिए. पाला पड़ने के लक्षण सर्वप्रथम वनस्पतियों पर दिखाई देते हैं. पाले का पौधों पर प्रभाव शीतकाल में अधिक होता है.
ऐसे करें शीतलहर और पाले से फसलों की सुरक्षा
जब भी पाला पड़ने की सम्भावना हो या मौसम पूर्वानुमान विभाग से पाले की चेतावनी दी गई हो तो फसल में हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए. इससे तापमान शून्य से नीचे नहीं गिरेगा और फसलों को पाले से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकेगा. सिंचाई करने से 0.5-2℅ तक तापमान में बढ़ोतरी हो जाती है.
इस प्रक्रिया से बचा सकते हैं फसल
फसल को पाले से बचाने के लिए आप अपने खेत में धुंआ पैदा कर दें, जिससे तापमान जमाव बिंदु तक नहीं गिर पाता है और पाले से फसलों को होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है. फसलों को बचाने के लिए खेत की उत्तरी-पश्चिमी मेड़ों पर और बीच-बीच में उचित स्थानों पर वायु अवरोधक पेड़ जैसे शहतूत, शीशम, बबूल और जामुन लगा दिए जाए तो पाले और ठंडी हवा के झोकों से फसल का बचाव हो सकता है.
ऐसे करें पौधों का उपचार
अभी जिस खेत में झुलसा रोग दिखाई दे, उसमें साइमोक्सेनिल/मैंकोजेब या फेनामिडोन/मैंकोजेब तीन किग्रा 1000 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें.
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