गोरखपुर: जल पुरुष के नाम से विख्यात रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता डॉ. राजेंद्र सिंह ने कहा है कि भारत पूरी दुनिया का विश्व गुरु था और आगे भी विश्व गुरु रहेगा. बशर्ते इसके लिए उसे अपनी पुरानी परंपरा और सनातन धर्म को आगे बढ़ाना होगा. यही नहीं उन्होंने कहा कि 'साइंस विद सेंस' का गठजोड़ भारत को विकास के मामले में नई ऊंचाइयों पर पहुंचा सकता है. राजेंद्र सिंह मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के पांचवें दीक्षांत समारोह को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे.
इस दौरान मंच पर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल बतौर अध्यक्ष मौजूद थीं. जल पुरुष को सुनने के लिए सभागार में तकनीकी के विद्वान प्रोफेसर और गोल्ड मेडलिस्ट प्रतिभावान छात्र छात्राएं भी मौजूद थे. उन्होंने कहा कि तकनीक और इंजीनियरिंग आज की समस्याओं के समाधान के लिए टेंपरेरी तौर पर कुछ रास्ते बता सकती है. लेकिन उन तरीकों को अगर सनातन और स्थाई बनाना है तो फिर भी विज्ञान और अध्यात्म को इंटीग्रेटेड किए बिना भारत का विकास एक क्षण मात्र होगा.
मालवीय जी ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ उठाई थी आवाज
डॉ. राजेंद्र सिंह ने कहा भारत की नीर, नदी और नारी के प्रति सम्मान की परंपरा का जिक्र किया. पंडित मदन मोहन मालवीय जिनके नाम पर गोरखपुर का प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय स्थापित है, उन्होंने सन 1916 में गंगा की धारा अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा मोड़े जाने का जमकर विरोध किया था. उन्होंने कहा कि मालवीय जी ने उस समय कहा था सिंचाई परियोजनाओं को चालू रखने के लिए स्वच्छंद विचरण करने वाली भारत की मोक्षदायिनी और सनातन परंपरा को स्थापित करने वाली मां गंगा की धारा नहीं मोड़ी जा सकती. राजेंद्र सिंह ने कहा कि प्रौद्योगिकी और इंजीनियरिंग का सबसे बड़ा नमूना 'अपर गंगा' का बनना है जो हरिद्वार से ऊपर है. यही वजह है कि देश के विकास और सनातन परंपरा के साथ पर्यावरण महत्व को समझने के लिए, महामना के सनातन विकास की प्रक्रिया को भी भारतीयों को समझना होगा.
पर्यावरण,जल संरक्षण जैसे विषयों को पाठ्यक्रम में शामिल करने की गुजारिश
राजेंद्र सिंह ने इस दौरान राज्यपाल आनंदीबेन पटेल से आग्रह किया कि भारत ग्लोबल टीचर की हैसियत रखता है, लेकिन इसे हम तभी लंबे समय तक पूरी दुनिया में स्थापित रख सकते हैं जब पर्यावरण,जल संरक्षण जैसे विषयों पर विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रम लागू किए जाएं.