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देश में लागू हुई इमरजेंसी तो न्यायपालिका की स्वतंत्रता भी खतरे में पड़ गई थी: शिव प्रताप शुक्ला

आज ही के दिन 25 जून 1975 को देश में इमरजेंसी लागू हुई थी. देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के दौर में यह लागू हुई थी. इसका विरोध करने वालों को तरह-तरह की यातनाएं दी गई थीं. पढ़िए इमरजेंसी की कहानी...

विधायक शिव प्रताप शुक्ला
विधायक शिव प्रताप शुक्ला
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Published : Jun 25, 2022, 10:20 AM IST

गोरखपुर: आज 25 जून है. देश में यह तारीख आपातकाल या इमरजेंसी डे के रूप में जानी जाती है. देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के दौर में यह लागू हुई थी. इसका विरोध करने वाले लोग तरह-तरह की यातनाओं का शिकार हुए. लंबी जेल यात्रा काटी और जेल से बाहर निकलने के बाद इंदिरा गांधी और उनकी सरकार के खिलाफ मुखर भी हुए. ऐसे ही लोगों में से एक हैं गोरखपुर शहर विधानसभा क्षेत्र से 5 बार के विधायक शिव प्रताप शुक्ला जो कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह की सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे.

शिव प्रताप शुक्ला महज 22 वर्ष की उम्र में ही आंदोलन को धार देने के दौरान गिरफ्तार हुए थे. गोरखपुर से हुई उनकी गिरफ्तारी इमरजेंसी काल के दौरान होने वाली गिरफ्तारी प्रदेश की पहली गिरफ्तारी थी. इसमें उनके ऊपर इंदिरा गांधी की हत्या करने की साजिश का आरोप लगा था. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान शिव प्रताप शुक्ला ने अपने इमरजेंसी काल के संघर्ष को साझा किया और कहा कि इस दौरान न्यायपालिका भी स्वतंत्र नहीं रह गई थी, क्योंकि जो लोग गिरफ्तार हुए थे उन्हें न्यायालय से जल्द रिहाई नहीं मिल रही थी. यही वजह थी कि लोगों को जेल में लंबा समय बिताना पड़ा.

उन्होंने कहा कि कई लोगों को बिजली के तार काटने के झूठे जुर्म में गिरफ्तार किया गया था. इमरजेंसी एक धोखा थी, जिसे लगाने की सोच बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे ने पूरी की थी. उन्हीं का तैयार किया हुआ ड्राफ्ट इंदिरा गांधी ने पूरे देश में लागू किया था. उन्होंने कहा कि उस समय 14 वर्ष की उम्र के बालक रहे शहर के चिरंजीवी चौरसिया को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया और चौरसिया को कड़ी यातनाएं भी दी गईं, जिसे देखकर उनका मन दुखी हो उठा था. शिव प्रताप शुक्ला ने कहा कि इमरजेंसी के दौरान उनके बड़े भाई शहर के प्रतिष्ठित अधिवक्ता थे, जिन्होंने उनकी जमानत कराने का प्रयास किया. लेकिन, शिव प्रताप शुक्ला ने अपनी जमानत कराने से इनकार कर दिया. उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर जेल के अंदर ही अपनी आवाज उठाई. इसके कारण साथियों सहित उन्हें भी पुलिस की लाठियां खानी पड़ीं.

शिव प्रताप शुक्ला ने कहा कि उन पर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या करने की साजिश करने का आरोप लगा था, जो महज गिरफ्तारी का एक कारण था. उन्होंने कहा कि इमरजेंसी के दौरान जिन लोगों ने भी इंदिरा गांधी के दमन को सहा वह जेल से छूटने के बाद इंदिरा के खिलाफ मुखर हुए. शिव प्रताप शुक्ला ने कहा कि वह तो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और संघ के कार्यकर्ता थे, इसलिए राष्ट्र हित के लिए वह अपने संघर्षों को भारतीय जनता पार्टी के साथ आगे बढ़ाते रहे और पार्टी ने भी उन्हें उनके संघर्षों पर अपनी मोहर लगाते हुए कई पदों से नवाजा.

यह भी पढ़ें: अब एक्सपोर्ट हब व जोन बन गया है यूपी : मुख्यमंत्री

गोरखपुर शहर से पांच बार विधायक हुए. इसके बाद प्रदेश सरकार में कानून, न्याय, ग्राम विकास, शिक्षा और कारागार जैसे विभागों के वह मंत्री रहे. नरेंद्र मोदी की पहली सरकार में राज्य सभा सांसद के साथ बतौर वित्त राज्य मंत्री भी अपनी सेवा दे चुके हैं. पार्टी में लंबे अनुभव के बल पर बीजेपी ने इन्हें राजसभा के अंदर चीफ व्हिप और मुख्य सचेतक की भी जिम्मेदारी दे रखी है. फिलहाल बहुत जल्द शिव प्रताप शुक्ला का राज्यसभा का कार्यकाल समाप्त होने वाला है. चर्चा यह भी है कि पार्टी इन्हें किसी राज्य का गवर्नर भी बना सकती है.

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गोरखपुर: आज 25 जून है. देश में यह तारीख आपातकाल या इमरजेंसी डे के रूप में जानी जाती है. देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के दौर में यह लागू हुई थी. इसका विरोध करने वाले लोग तरह-तरह की यातनाओं का शिकार हुए. लंबी जेल यात्रा काटी और जेल से बाहर निकलने के बाद इंदिरा गांधी और उनकी सरकार के खिलाफ मुखर भी हुए. ऐसे ही लोगों में से एक हैं गोरखपुर शहर विधानसभा क्षेत्र से 5 बार के विधायक शिव प्रताप शुक्ला जो कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह की सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे.

शिव प्रताप शुक्ला महज 22 वर्ष की उम्र में ही आंदोलन को धार देने के दौरान गिरफ्तार हुए थे. गोरखपुर से हुई उनकी गिरफ्तारी इमरजेंसी काल के दौरान होने वाली गिरफ्तारी प्रदेश की पहली गिरफ्तारी थी. इसमें उनके ऊपर इंदिरा गांधी की हत्या करने की साजिश का आरोप लगा था. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान शिव प्रताप शुक्ला ने अपने इमरजेंसी काल के संघर्ष को साझा किया और कहा कि इस दौरान न्यायपालिका भी स्वतंत्र नहीं रह गई थी, क्योंकि जो लोग गिरफ्तार हुए थे उन्हें न्यायालय से जल्द रिहाई नहीं मिल रही थी. यही वजह थी कि लोगों को जेल में लंबा समय बिताना पड़ा.

उन्होंने कहा कि कई लोगों को बिजली के तार काटने के झूठे जुर्म में गिरफ्तार किया गया था. इमरजेंसी एक धोखा थी, जिसे लगाने की सोच बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे ने पूरी की थी. उन्हीं का तैयार किया हुआ ड्राफ्ट इंदिरा गांधी ने पूरे देश में लागू किया था. उन्होंने कहा कि उस समय 14 वर्ष की उम्र के बालक रहे शहर के चिरंजीवी चौरसिया को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया और चौरसिया को कड़ी यातनाएं भी दी गईं, जिसे देखकर उनका मन दुखी हो उठा था. शिव प्रताप शुक्ला ने कहा कि इमरजेंसी के दौरान उनके बड़े भाई शहर के प्रतिष्ठित अधिवक्ता थे, जिन्होंने उनकी जमानत कराने का प्रयास किया. लेकिन, शिव प्रताप शुक्ला ने अपनी जमानत कराने से इनकार कर दिया. उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर जेल के अंदर ही अपनी आवाज उठाई. इसके कारण साथियों सहित उन्हें भी पुलिस की लाठियां खानी पड़ीं.

शिव प्रताप शुक्ला ने कहा कि उन पर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या करने की साजिश करने का आरोप लगा था, जो महज गिरफ्तारी का एक कारण था. उन्होंने कहा कि इमरजेंसी के दौरान जिन लोगों ने भी इंदिरा गांधी के दमन को सहा वह जेल से छूटने के बाद इंदिरा के खिलाफ मुखर हुए. शिव प्रताप शुक्ला ने कहा कि वह तो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और संघ के कार्यकर्ता थे, इसलिए राष्ट्र हित के लिए वह अपने संघर्षों को भारतीय जनता पार्टी के साथ आगे बढ़ाते रहे और पार्टी ने भी उन्हें उनके संघर्षों पर अपनी मोहर लगाते हुए कई पदों से नवाजा.

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गोरखपुर शहर से पांच बार विधायक हुए. इसके बाद प्रदेश सरकार में कानून, न्याय, ग्राम विकास, शिक्षा और कारागार जैसे विभागों के वह मंत्री रहे. नरेंद्र मोदी की पहली सरकार में राज्य सभा सांसद के साथ बतौर वित्त राज्य मंत्री भी अपनी सेवा दे चुके हैं. पार्टी में लंबे अनुभव के बल पर बीजेपी ने इन्हें राजसभा के अंदर चीफ व्हिप और मुख्य सचेतक की भी जिम्मेदारी दे रखी है. फिलहाल बहुत जल्द शिव प्रताप शुक्ला का राज्यसभा का कार्यकाल समाप्त होने वाला है. चर्चा यह भी है कि पार्टी इन्हें किसी राज्य का गवर्नर भी बना सकती है.

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