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सीएम सिटी के बस अड्डे को संवारने वाले का इंतजार, 13 बार की निविदा में नहीं लिया कोई भाग - public private partnership

सीएम सिटी यानी गोरखपुर के वर्षों पुराने रेलवे बस स्टेशन की हालत खस्ता है. सरकार इस बस अड्डे को पीपीपी मॉडल पर विकसित करना चाह रही है लेकिन इस कार्य के लिए कोई रुचि नहीं दिखा रहा है.

Railway Bus Station Gorakhpur
Railway Bus Station Gorakhpur
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Published : Apr 1, 2023, 3:53 PM IST

गोरखपुर: सीएम सिटी में विकास के बड़े-बड़े दावे किये जा रहे हैं, लेकिन वर्षों पुराने रेलवे बस स्टेशन को पीपीपी मॉडल पर संवारने और संचालित करने के लिए पिछले छह वर्षों में कोई भी संस्था आगे नहीं आई है. परिवहन निगम ने कई बार टेंडर निकाला, लेकिन कोई कंपनी इसमें भागीदारी नहीं ली. जिसके कारण यह बस अड्डा खस्ताहाल में संचालित हो रहा है. यहां यात्री सुविधाएं भी नदारद हैं. बारिश के दिनों में इसके वर्क शॉप में पानी भर जाता है. यात्रियों को शरण लेने के लिए इधर उधर भटकना पड़ता है. गर्मी में यहां पानी और पंखे का जबर्दस्त अभाव रहता है. परिवहन निगम ने गोरखपुर बस अड्डे के लिए 92 करोड़ का बजट भी प्रस्तावित कर रखा है, लेकिन यहां रुपये लगाने को कोई तैयार नहीं.

6 साल में निकाले 13 टेंडरः रेलवे बस स्टेशन को एयपोर्ट की तर्ज पर पब्लिक प्राइवेट पार्टनशिप (पीपीपी मॉडल) पर बनाए जाने की बात मंत्री से लेकर एमडी तक कई बार कह चुके हैं. यही वजह है कि छह साल में 13 बार टेंडर निकला लेकिन अब तक एक भी इंवेस्टर नहीं मिल सका है. 14 हजार 416 वर्ग मीटर जमीन भी इसके लिए फाइनल हो चुकी है. वर्ष 2022 के खत्म होने से पहले हेडक्वार्टर से 30 दिसंबर 2023 को ऑनलाइन टेंडर भी निकाला गया. जिसकी लास्ट डेट 9 फरवरी 2023 निर्धारित की गई थी. टेंडर की डेट खत्म होने के बाद भी गोरखपुर बस स्टेशन बनाने के लिए एक भी इन्वेस्टर सामने नहीं आए हैं.

गोरखपुर बस स्टेशन से प्रतिदिन लगभग 500 से अधिक बाहर की बसों का आवागमन होता है. गोरखपुर रीजन की तो 700 बसें हैं. इन बसों से 40 से 50 हजार लोग यात्रा करते हैं. बसों से रोडवेज को 20 से 25 लाख की कमाई होती है. फिर भी इसकी सुधि सरकार खुद नहीं ले रही है. पीपीपी मॉडल पर परियोजना लटकी पड़ी है. क्षेत्रीय प्रबंधक पीके तिवारी का कहना है कि इवेस्टर्स से बातचीत चल रही है. अभी किसी ने आश्वासन तो नहीं दिया है. लेकिन बातचीत से लग रहा है कि जल्द ही महानगर का कोई इन्वेस्टर इसपर काम करने को तैयार हो जाएगा. ऐसा गोरखपुर सहित प्रदेश के प्रमुख शहरों में स्थित 23 बस स्टेशनों का विकास पब्लिक प्राइवेट पार्टनशिप (पीपीपी) के आधार पर किया जाना है.

इसे भी पढ़ें-चमत्कार को नमस्कार, जबरदस्त बारिश के बीच भी वाराणसी के गंगा घाट पर विधिवत हुई गंगा आरती

गोरखपुर: सीएम सिटी में विकास के बड़े-बड़े दावे किये जा रहे हैं, लेकिन वर्षों पुराने रेलवे बस स्टेशन को पीपीपी मॉडल पर संवारने और संचालित करने के लिए पिछले छह वर्षों में कोई भी संस्था आगे नहीं आई है. परिवहन निगम ने कई बार टेंडर निकाला, लेकिन कोई कंपनी इसमें भागीदारी नहीं ली. जिसके कारण यह बस अड्डा खस्ताहाल में संचालित हो रहा है. यहां यात्री सुविधाएं भी नदारद हैं. बारिश के दिनों में इसके वर्क शॉप में पानी भर जाता है. यात्रियों को शरण लेने के लिए इधर उधर भटकना पड़ता है. गर्मी में यहां पानी और पंखे का जबर्दस्त अभाव रहता है. परिवहन निगम ने गोरखपुर बस अड्डे के लिए 92 करोड़ का बजट भी प्रस्तावित कर रखा है, लेकिन यहां रुपये लगाने को कोई तैयार नहीं.

6 साल में निकाले 13 टेंडरः रेलवे बस स्टेशन को एयपोर्ट की तर्ज पर पब्लिक प्राइवेट पार्टनशिप (पीपीपी मॉडल) पर बनाए जाने की बात मंत्री से लेकर एमडी तक कई बार कह चुके हैं. यही वजह है कि छह साल में 13 बार टेंडर निकला लेकिन अब तक एक भी इंवेस्टर नहीं मिल सका है. 14 हजार 416 वर्ग मीटर जमीन भी इसके लिए फाइनल हो चुकी है. वर्ष 2022 के खत्म होने से पहले हेडक्वार्टर से 30 दिसंबर 2023 को ऑनलाइन टेंडर भी निकाला गया. जिसकी लास्ट डेट 9 फरवरी 2023 निर्धारित की गई थी. टेंडर की डेट खत्म होने के बाद भी गोरखपुर बस स्टेशन बनाने के लिए एक भी इन्वेस्टर सामने नहीं आए हैं.

गोरखपुर बस स्टेशन से प्रतिदिन लगभग 500 से अधिक बाहर की बसों का आवागमन होता है. गोरखपुर रीजन की तो 700 बसें हैं. इन बसों से 40 से 50 हजार लोग यात्रा करते हैं. बसों से रोडवेज को 20 से 25 लाख की कमाई होती है. फिर भी इसकी सुधि सरकार खुद नहीं ले रही है. पीपीपी मॉडल पर परियोजना लटकी पड़ी है. क्षेत्रीय प्रबंधक पीके तिवारी का कहना है कि इवेस्टर्स से बातचीत चल रही है. अभी किसी ने आश्वासन तो नहीं दिया है. लेकिन बातचीत से लग रहा है कि जल्द ही महानगर का कोई इन्वेस्टर इसपर काम करने को तैयार हो जाएगा. ऐसा गोरखपुर सहित प्रदेश के प्रमुख शहरों में स्थित 23 बस स्टेशनों का विकास पब्लिक प्राइवेट पार्टनशिप (पीपीपी) के आधार पर किया जाना है.

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