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कम हुई दिवाली पर चीनी के खिलौनों की मांग, जानिए क्यों - गोरखपुर की ताजा खबर

गोरखपुर जिले में कानुपर से आकर मुस्लिम परिवार दिवाली पर चीनी के खिलौने और मिठाइयां बनाते हैं. कारीगरों का कहना है कि पहले की अपेक्षा अब दिवाली पर चीनी के खिलौने की मांग काफी कम हो गई है.

चीनी के खिलौने बनाते कारीगर.
चीनी के खिलौने बनाते कारीगर.
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Published : Nov 14, 2020, 4:40 PM IST

गोरखपुर: जिले में दिवाली पर गंगा-जमुनी तहजीब देखने को मिल रही है. दिवाली पर मुस्लिम कारीगर पिछले कई दशकों मिठाई बना रहे हैं. इन कारीगारों के द्वारा बनाई गई मिठाइयां और चीनी के खिलौनों की दिपाली पर अधिक मांग होती है. शहर के मियां बाजार मोहल्ले में कई ऐसे परिवार हैं, जो दिवाली पर कानपुर के मुस्लिम कारीगरों को बुलाकर चीनी के खिलौने और मिठाइयां बनवाते हैं. पहले कभी यह कुटीर उद्योग हुआ करता था, लेकिन अब यह धीरे-धीरे खत्म हो रहा है.

कम हुई दिवाली पर चीनी के खिलौने की मांग.

इस कारोबार से जुड़े लोगों की मानें, तो पिछले डेढ़ दशक में चीनी के खिलौनों की मांग बहुत तेजी से गिरी है. गोरखपुर में चीनी के खिलौनों का कुटीर उद्योग मियां बाजार मोहल्ला हुआ करता था. एक दशक में यहां के एक दर्जन से अधिक परिवारों ने इस कारोबार को करना बंद कर दिया. मौजूदा समय में कुछ ही परिवार इस कारोबार से जुड़े हैं.

चीनी के खिलौनों की कम हुई मांग
जानकारी के अनुसार, दो दशक पहले चीनी के बने खिलौनों का कारोबार पूरे पूर्वांचल में किसी कुटीर उद्योग से कम नहीं था. तब दिवाली के त्योहार पर मिठाइयां कम ही बनती थी. पहले कई हिंदू परिवार चीनी के खिलौने बनाते थे. बाजार में मांग कम होने की वजह से अब केवल कानपुर के रहने वाले मुस्लिम परिवार के लोग गोरखपुर आकर दिवाली पर चीनी के खिलौने बनाते और बेचते हैं.

चीनी के खिलौनों के बिना अधूरी है दिवाली
कानपुर निवासी करीब 50 वर्षों से चीनी मिठाई के खिलौने बनाने वाले कारीगर अयूब ने बताया कि हर साल हम गोरखपुर आकर चीनी से बने हुए खिलौनों को बनाते हैं. पिछले कई दशकों से उनका परिवार इस काम से जुड़ा है. इसी से उनकी रोजी-रोटी चलती है. उन्होंने कहा कि जिस तरीके से सेवई के बिना ईद अधूरी सी मानी जाती है. ठीक वैसे ही दिवाली पर चीनी के खिलौने के बिना त्योहार अधूरा है.


कारीगर कोहिनूर ने बताया कि हम लोग पूरे एक साल दिवाली का इंतजार करते है. उन्होंने बताया कि हमें बेहद खुशी मिलती है कि हम दिवाली के पर्व पर सबसे महत्वपूर्ण मिठाई बनाते हैं. इस मिठाई के माध्यम से हम समाज में आपसी भाईचारे की मिठास घोलने का प्रयास करते हैं. पहले की अपेक्षा अब चीनी के खिलौनों की मांग काफी कम हो गई है. दिवाली पर पूजा के दौरान इस मिठाई का अलग ही महत्व होता है और इसी कारण अभी भी लोग इसे खरीदते हैं.

गोरखपुर: जिले में दिवाली पर गंगा-जमुनी तहजीब देखने को मिल रही है. दिवाली पर मुस्लिम कारीगर पिछले कई दशकों मिठाई बना रहे हैं. इन कारीगारों के द्वारा बनाई गई मिठाइयां और चीनी के खिलौनों की दिपाली पर अधिक मांग होती है. शहर के मियां बाजार मोहल्ले में कई ऐसे परिवार हैं, जो दिवाली पर कानपुर के मुस्लिम कारीगरों को बुलाकर चीनी के खिलौने और मिठाइयां बनवाते हैं. पहले कभी यह कुटीर उद्योग हुआ करता था, लेकिन अब यह धीरे-धीरे खत्म हो रहा है.

कम हुई दिवाली पर चीनी के खिलौने की मांग.

इस कारोबार से जुड़े लोगों की मानें, तो पिछले डेढ़ दशक में चीनी के खिलौनों की मांग बहुत तेजी से गिरी है. गोरखपुर में चीनी के खिलौनों का कुटीर उद्योग मियां बाजार मोहल्ला हुआ करता था. एक दशक में यहां के एक दर्जन से अधिक परिवारों ने इस कारोबार को करना बंद कर दिया. मौजूदा समय में कुछ ही परिवार इस कारोबार से जुड़े हैं.

चीनी के खिलौनों की कम हुई मांग
जानकारी के अनुसार, दो दशक पहले चीनी के बने खिलौनों का कारोबार पूरे पूर्वांचल में किसी कुटीर उद्योग से कम नहीं था. तब दिवाली के त्योहार पर मिठाइयां कम ही बनती थी. पहले कई हिंदू परिवार चीनी के खिलौने बनाते थे. बाजार में मांग कम होने की वजह से अब केवल कानपुर के रहने वाले मुस्लिम परिवार के लोग गोरखपुर आकर दिवाली पर चीनी के खिलौने बनाते और बेचते हैं.

चीनी के खिलौनों के बिना अधूरी है दिवाली
कानपुर निवासी करीब 50 वर्षों से चीनी मिठाई के खिलौने बनाने वाले कारीगर अयूब ने बताया कि हर साल हम गोरखपुर आकर चीनी से बने हुए खिलौनों को बनाते हैं. पिछले कई दशकों से उनका परिवार इस काम से जुड़ा है. इसी से उनकी रोजी-रोटी चलती है. उन्होंने कहा कि जिस तरीके से सेवई के बिना ईद अधूरी सी मानी जाती है. ठीक वैसे ही दिवाली पर चीनी के खिलौने के बिना त्योहार अधूरा है.


कारीगर कोहिनूर ने बताया कि हम लोग पूरे एक साल दिवाली का इंतजार करते है. उन्होंने बताया कि हमें बेहद खुशी मिलती है कि हम दिवाली के पर्व पर सबसे महत्वपूर्ण मिठाई बनाते हैं. इस मिठाई के माध्यम से हम समाज में आपसी भाईचारे की मिठास घोलने का प्रयास करते हैं. पहले की अपेक्षा अब चीनी के खिलौनों की मांग काफी कम हो गई है. दिवाली पर पूजा के दौरान इस मिठाई का अलग ही महत्व होता है और इसी कारण अभी भी लोग इसे खरीदते हैं.

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