गोरखपुरः देश की आजादी के बाद जिले का पंडित दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय प्रदेश में स्थापित होने वाला पहला विश्वविद्यालय था. इसकी स्थापना के 67 वर्ष पूरे हो चुके हैं. वहीं, इस विश्वविद्यालय के कुलपतियों की बात करें, तो यहां एक से बढ़कर एक विद्वान इस पद को सुशोभित कर चुके हैं. लेकिन, इनमें से किसी को भी लगातार दो बार विश्वविद्यालय का कुलपति बनने का अवसर नहीं मिला. एक बार फिर यहां नए कुलपति की तैनाती को लेकर प्रक्रिया शुरू हो गई है. 31 अगस्त को मौजूदा कुलपति का कार्यकाल समाप्त हो रहा है. ऐसे में प्रदेश ही नहीं देश के कई विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर यहां के कुलपति के लिए आवेदन कर चुके हैं. वहीं, कुलपति प्रोफेसर राजेश सिंह भी अपने दूसरे कार्यकाल के लिए आवेदन किया है. लेकिन, विश्वविद्यालय के इतिहास में किसी को दूसरा कार्यकाल नहीं मिला.
गोरखपुर विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के पूर्व अध्यक्ष और रसायन शास्त्र के प्रोफेसर उमेश नाथ त्रिपाठी ने बताया कि कुलपति पद पर योग्य और उच्च शैक्षिक क्षमता के व्यक्ति को बैठाने की व्यवस्था शुरू से बनाई गई थी. लेकिन, जब इसमें राजनीति से प्रेरित और दलीय व्यवस्था को विश्वविद्यालय परिसर में पहुंचाने की कोशिश की गई, तो ऐसे लोगों को भी कुलपति बनाया गया. जिन्होंने विश्वविद्यालय में पठन-पाठन कार्य के अलावा विवादित कार्य ज्यादा किए गए.
इन्हें मिल सकता था दूसरा मौकाः उन्होंने कहा कि बीते 20-25 वर्षों की बात करें तो प्रोफेसर राधे मोहन मिश्रा और प्रोफेसर पीसी त्रिवेदी दो ऐसे कुलपति थे, जिन्होंने प्रशासनिक और शैक्षिक वातावरण को बेहतर करने महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनके काम को देखकर लगा कि वह लगातार दूसरी बार विश्वविद्यालय के कुलपति बनाए जा सकते हैं. लेकिन, उन्हें भी अवसर नहीं मिला. उमेश नाथ ने कहा कि शिक्षा के इस मंदिर को इसके मूल सिद्धांत के साथ संचालित करने वाला कुलपति जब मिलेगा तब इसका स्वरूप अपने आप बड़ा व्यापक होगा.
उम्र पूरा होने के साथ रिटायर हो जाते थे वीसीः विश्वविद्यालय की पत्रकारिता में करीब 20 वर्षों का अनुभव रखने वाले पत्रकार विजय उपाध्याय ने बताया कि पहले के समय में अवकाश प्राप्त और करीब 65 वर्ष की आयु को छूने वाले प्रोफेसर को कुलपति बनाया जाता रहा, जो अपना कार्यकाल उम्र के साथ पूरा करते और रिटायर हो जाते थे. वह दोबारा कुलपति बन भी नहीं बन पाते. प्रो. राधे मोहन मिश्रा और प्रो. पीसी त्रिवेदी, प्रो. रमेश मिश्रा के दोबारा कुलपति बनाया जा सकते थे, जिससे विश्वविद्यालय का भला होता. लेकिन, ऐसा नहीं हुआ. मौजूदा दौर में जो शैक्षणिक माहौल विश्वविद्यालय में देखने को मिल रहा है वह बहुत संतोषजनक नहीं है.
67 साल में 38 कुलपतिः बता दें कि विश्वविद्यालय के इतिहास में 43 माह तक कुलपति लाने का रिकॉर्ड भैरव नाथ झा के नाम रहा है. यह संस्थापक कुलपति थे, जिनका कार्यकाल 11 अप्रैल 1957 से 10 मार्च 1961 तक था. स्थापना के 67 वर्षों में विश्वविद्यालय को कुल 38 कुलपति मिले हैं. इनमें कई ने कार्यवाहक कुलपति के रूप में भी अपने दायित्वों का निर्वहन किया है. विश्वविद्यालय के नए कुलपति को लेकर गोरखपुर, प्रयागराज, वाराणसी, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उड़ीसा के करीब 35 प्रोफेसरों ने आवेदन किया है.
प्रो. राधे मोहन मिश्रा 3 बार रहे कुलपतिः बता दें कि प्रोफेसर राधे मोहन मिश्रा की विश्वविद्यालय के कुल 3 बार कुलपति रहे हैं. लेकिन तीनों बार की परिस्थितियां अलग अलग रही हैं. एक बार यहां के कमिश्नर पीके महंती भी कुलपति की भूमिका निभा चुके हैं, जो कार्यवाहक थे. इसके अलावा 3 वर्ष से अधिक का कार्यकाल भी कुछ कुलपतियों ने निभाया है. इसमें प्रो. रमेश कुमार मिश्र, प्रो. विजय कृष्ण सिंह, प्रो. देवेंद्र कुमार शर्मा, प्रो. हरिशंकर चौधरी और डॉ. अविनाश चंद्र चटर्जी का नाम शामिल हैं.
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