गोरखपुर : जिले में स्थित दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय बुधवार को अपना 63वां स्थापना दिवस मना रहा है. यह विश्वविद्यालय आजाद भारत के बाद उत्तर प्रदेश में स्थापित होने वाला पहला विश्वविद्यालय है. तब के ग्रामीण परिवेश में खुले इस विश्वविद्यालय की कल्पना एक कृषि आधारित विश्वविद्यालय की थी, लेकिन इसने तमाम उन क्षेत्रों में भी बुलंदियों को छुआ जो देश और दुनिया में शोध का विषय बने हुए हैं. इन सबके बावजूद भी अभी तक इस विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा नहीं दिया गया है.
इतने सालों में भी नहीं मिला केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा-
- यह विश्वविद्यालय यहां के तत्कालीन जिलाधिकारी की कल्पना थी, जिसे साकार किया शहर के कुछ धनाढ्य लोगों ने.
- आज इससे अलग दो और विश्वविद्यालय स्थापित हो गए हैं, जिनमें पूर्वांचल विश्वविद्यालय और सिद्धार्थ विश्वविद्यालय का नाम प्रमुख है.
- यह देश के चुनिंदा विश्वविद्यालयों में से एक है, जिसने हर क्षेत्र में होनहारों को पैदा किया है.
- देश का सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक पुरस्कार 'शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार' विश्वविद्यालय के आचार्य प्रोफेसर आरपी रस्तोगी को प्राप्त हो चुका है.
- मौजूदा दौर के गृह मंत्री राजनाथ सिंह, पूर्व की उर्जा मंत्री कल्पनाथ राय और मोदी सरकार के कई मंत्री इसी विश्वविद्यालय से पढ़ाई किए हैं.
विश्वविद्यालय ने जो मुकाम हासिल किया है उस पर गर्व महसूस होता है, लेकिन कृषि आधारित विश्वविद्यालय की कल्पना अभी भी अधूरी है. इसके साथ ही समय-समय पर शिक्षा के राजनीतिकरण का असर भी इस विश्वविद्यालय पर पड़ा है. - प्रो. चितरंजन मिश्र, पूर्व अध्यक्ष शिक्षक संघ
यह विश्वविद्यालय सिर्फ राज्य विश्वविद्यालय के रूप में अपनी पहचान नहीं रखता. तमाम विश्वविद्यालयों को कुलपति देने का गौरव भी इसे हासिल है. भारतीय राजनीति में भी यहां से निकले छात्रों ने ऊंचा मुकाम हासिल किया है. विश्वविद्यालय परिसर में कृषि संकाय की स्थापना हो जाती और इंजीनियरिंग की पढ़ाई का अवसर भी यहां प्राप्त हो जाता तो इसके नाम में नगीना जुड़ जाता.
- डॉ. कुमार हर्ष, वरिष्ठ आचार्य एवं जनसम्पर्क अधिकारी, डीडीयू