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गोरखपुर : 63 साल में भी नहीं मिला केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा - गोरखपुर न्यूज

1 मई को दीनदयाल उपाध्याय अपना 63वां स्थापना दिवस मना रहा है. इन 63 सालों में विश्वविद्यालय ने कई बुलंदियों को छुआ है. इसके बावजूद भी इसे आजतक केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा नहीं मिला है. इसने सभी क्षेत्रों में बुलंदियों को छुआ जो देश और दुनिया में शोध का विषय बना हुआ है.

विश्वविद्यालय ने हासिल किया है अलग मुकाम
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Published : May 1, 2019, 8:35 AM IST

गोरखपुर : जिले में स्थित दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय बुधवार को अपना 63वां स्थापना दिवस मना रहा है. यह विश्वविद्यालय आजाद भारत के बाद उत्तर प्रदेश में स्थापित होने वाला पहला विश्वविद्यालय है. तब के ग्रामीण परिवेश में खुले इस विश्वविद्यालय की कल्पना एक कृषि आधारित विश्वविद्यालय की थी, लेकिन इसने तमाम उन क्षेत्रों में भी बुलंदियों को छुआ जो देश और दुनिया में शोध का विषय बने हुए हैं. इन सबके बावजूद भी अभी तक इस विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा नहीं दिया गया है.

दीन दयाल विश्वविद्यालय ने हासिल किया है एक अलग मुकाम.

इतने सालों में भी नहीं मिला केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा-

  • यह विश्वविद्यालय यहां के तत्कालीन जिलाधिकारी की कल्पना थी, जिसे साकार किया शहर के कुछ धनाढ्य लोगों ने.
  • आज इससे अलग दो और विश्वविद्यालय स्थापित हो गए हैं, जिनमें पूर्वांचल विश्वविद्यालय और सिद्धार्थ विश्वविद्यालय का नाम प्रमुख है.
  • यह देश के चुनिंदा विश्वविद्यालयों में से एक है, जिसने हर क्षेत्र में होनहारों को पैदा किया है.
  • देश का सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक पुरस्कार 'शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार' विश्वविद्यालय के आचार्य प्रोफेसर आरपी रस्तोगी को प्राप्त हो चुका है.
  • मौजूदा दौर के गृह मंत्री राजनाथ सिंह, पूर्व की उर्जा मंत्री कल्पनाथ राय और मोदी सरकार के कई मंत्री इसी विश्वविद्यालय से पढ़ाई किए हैं.


विश्वविद्यालय ने जो मुकाम हासिल किया है उस पर गर्व महसूस होता है, लेकिन कृषि आधारित विश्वविद्यालय की कल्पना अभी भी अधूरी है. इसके साथ ही समय-समय पर शिक्षा के राजनीतिकरण का असर भी इस विश्वविद्यालय पर पड़ा है. - प्रो. चितरंजन मिश्र, पूर्व अध्यक्ष शिक्षक संघ

यह विश्वविद्यालय सिर्फ राज्य विश्वविद्यालय के रूप में अपनी पहचान नहीं रखता. तमाम विश्वविद्यालयों को कुलपति देने का गौरव भी इसे हासिल है. भारतीय राजनीति में भी यहां से निकले छात्रों ने ऊंचा मुकाम हासिल किया है. विश्वविद्यालय परिसर में कृषि संकाय की स्थापना हो जाती और इंजीनियरिंग की पढ़ाई का अवसर भी यहां प्राप्त हो जाता तो इसके नाम में नगीना जुड़ जाता.
- डॉ. कुमार हर्ष, वरिष्ठ आचार्य एवं जनसम्पर्क अधिकारी, डीडीयू

गोरखपुर : जिले में स्थित दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय बुधवार को अपना 63वां स्थापना दिवस मना रहा है. यह विश्वविद्यालय आजाद भारत के बाद उत्तर प्रदेश में स्थापित होने वाला पहला विश्वविद्यालय है. तब के ग्रामीण परिवेश में खुले इस विश्वविद्यालय की कल्पना एक कृषि आधारित विश्वविद्यालय की थी, लेकिन इसने तमाम उन क्षेत्रों में भी बुलंदियों को छुआ जो देश और दुनिया में शोध का विषय बने हुए हैं. इन सबके बावजूद भी अभी तक इस विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा नहीं दिया गया है.

दीन दयाल विश्वविद्यालय ने हासिल किया है एक अलग मुकाम.

इतने सालों में भी नहीं मिला केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा-

  • यह विश्वविद्यालय यहां के तत्कालीन जिलाधिकारी की कल्पना थी, जिसे साकार किया शहर के कुछ धनाढ्य लोगों ने.
  • आज इससे अलग दो और विश्वविद्यालय स्थापित हो गए हैं, जिनमें पूर्वांचल विश्वविद्यालय और सिद्धार्थ विश्वविद्यालय का नाम प्रमुख है.
  • यह देश के चुनिंदा विश्वविद्यालयों में से एक है, जिसने हर क्षेत्र में होनहारों को पैदा किया है.
  • देश का सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक पुरस्कार 'शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार' विश्वविद्यालय के आचार्य प्रोफेसर आरपी रस्तोगी को प्राप्त हो चुका है.
  • मौजूदा दौर के गृह मंत्री राजनाथ सिंह, पूर्व की उर्जा मंत्री कल्पनाथ राय और मोदी सरकार के कई मंत्री इसी विश्वविद्यालय से पढ़ाई किए हैं.


विश्वविद्यालय ने जो मुकाम हासिल किया है उस पर गर्व महसूस होता है, लेकिन कृषि आधारित विश्वविद्यालय की कल्पना अभी भी अधूरी है. इसके साथ ही समय-समय पर शिक्षा के राजनीतिकरण का असर भी इस विश्वविद्यालय पर पड़ा है. - प्रो. चितरंजन मिश्र, पूर्व अध्यक्ष शिक्षक संघ

यह विश्वविद्यालय सिर्फ राज्य विश्वविद्यालय के रूप में अपनी पहचान नहीं रखता. तमाम विश्वविद्यालयों को कुलपति देने का गौरव भी इसे हासिल है. भारतीय राजनीति में भी यहां से निकले छात्रों ने ऊंचा मुकाम हासिल किया है. विश्वविद्यालय परिसर में कृषि संकाय की स्थापना हो जाती और इंजीनियरिंग की पढ़ाई का अवसर भी यहां प्राप्त हो जाता तो इसके नाम में नगीना जुड़ जाता.
- डॉ. कुमार हर्ष, वरिष्ठ आचार्य एवं जनसम्पर्क अधिकारी, डीडीयू

Intro:गोरखपुर। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय आज 1 मई को अपने स्थापना का 63 वां वर्ष बड़े धूमधाम के साथ मना रहा है। यह विश्वविद्यालय आजाद भारत के बाद उत्तर प्रदेश में स्थापित होने वाला पहला विश्वविद्यालय है। तब के ग्रामीण परिवेश में खुले इस विश्वविद्यालय की कल्पना एक कृषि आधारित विश्वविद्यालय की थी लेकिन, इसने तमाम उन क्षेत्रों में भी बुलंदियों को छुआ जो देश और दुनिया में शोध का विषय बना। आज के अवसर पर विश्वविद्यालय में कई तरह के कार्यक्रम आयोजित हैं लेकिन अभी तक इसके केंद्रीय विश्वविद्यालय नहीं हो पाने का दर्द सभी को है। फिर भी इसने जो मुकाम हासिल किया उससे यहां के शिक्षकों में है हर्ष हैं।

नोट--कम्पलीट पैकेज है। वॉइस ओवर विथ म्यूजिक अटैच है। कुछ अच्छा करने का प्रयास हुआ है।


Body:गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना में यहां के तत्कालीन जिलाधिकारी रहे पंडित सुरति नारायण मणि त्रिपाठी का विशेष योगदान है। उनकी कल्पना का आधार है गोरखपुर विश्वविद्यालय। जिसे मूर्त रूप देने में महंत दिग्विजय नाथ समेत पूर्वांचल के कुछ बड़े धनाढ्य लोगों ने अपना अमूल्य सहयोग दिया। इस विश्वविद्यालय का कार्यक्षेत्र इतना लंबा था कि आज के दौर में इससे अलग दो और विश्वविद्यालय स्थापित हो गए हैं। जिनमें पूर्वांचल विश्वविद्यालय और सिद्धार्थ विश्वविद्यालय का नाम प्रमुख है। महाविद्यालय की संख्या तो सैकड़ों में है जो इसके अधीन अध्ययन और अध्यापन का कार्य संपादित कर आ रहे हैं। गोरखपुर विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर चितरंजन मिश्र का कहना है कि विश्वविद्यालय ने जो मुकाम हासिल किया उस पर गर्व महसूस होता है लेकिन, कृषि आधारित विश्वविद्यालय की कल्पना अभी भी अधूरी है। उन्होंने कहा कि इसके साथ ही समय-समय पर शिक्षा के राजनीतिकरण का असर भी इस विश्वविद्यालय पर पड़ा।

बाइट--प्रो0चितरंजन मिश्र, पूर्व अध्यक्ष शिक्षक संघ, डीडीयू


Conclusion:विश्वविद्यालय के वरिष्ठ आचार्य डॉ कुमार हर्ष की मानें तो यह विश्वविद्यालय सिर्फ राज्य विश्वविद्यालय के रूप में मौजूदा दौर में अपनी पहचान नहीं रहता यह देश के चुनिंदा विश्वविद्यालय में से एक है जिसने हर क्षेत्र में होनहार ओं को पैदा किया है उन्होंने कहा कि तमाम विश्वविद्यालयों को कुलपति देने का इस विश्वविद्यालय को गौरव हासिल है तो। उन्होंने कहा कि देश का सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक पुरस्कार शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार विश्वविद्यालय के आचार्य प्रोफेसर आरपी रस्तोगी को प्राप्त हो चुका है तो भारतीय राजनीति में भी यहां से निकले छात्रों ने ऊंचा मुकाम हासिल किया है मौजूदा दौर के गृह मंत्री राजनाथ सिंह या पूर्व की उर्जा मंत्री कल्पनाथ राय या फिर मोदी सरकार के वित्त राज्यमंत्री शिव प्रताप शुक्ला यह सब इसी विश्वविद्यालय के उपज है उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय परिसर में कृषि संकाय की स्थापना हो जाती और इंजीनियरिंग की पढ़ाई का अवसर भी यहां प्राप्त हो जाता तो इसके नाम में नगीना जुड़ जाता।

बाइट--डॉ0 कुमार हर्ष, वरिष्ठ आचार्य एवं जनसम्पर्क अधिकारी, डीडीयू

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मुकेश पाण्डेय
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