गोरखपुर: जिले में आंधी, बारिश और ओले गिरने की वजह से बर्बाद हो रही आम की फसल ने बागवानों की चिंता बढ़ा दी है. वहीं कोरोना की महामारी के दौरान जारी लॉकडाउन में इन्हें अपना कच्चा आम बेचने के लिए स्थानीय बाजार भी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है, लिहाजा आम के किसान बेहद परेशान हो उठे हैं.
वह इस उम्मीद के साथ अपने आम के बागों की रखवाली और बर्बाद होती फसल को बचाने में जुटे हुए हैं कि शायद जून के महीने में स्थानीय बाजार उनके लिए खुल जाएं. वहीं किसान इंद्र देव की कृपा के भी भरोसे हैं, जिससे उनके पके हुए आम उनकी बिगड़ी माली हालत को शायद सुधार दें.
इन प्रजातियों की होती है पैदावार
जिले के आम के बागों में अभी भी पेड़ों पर अच्छे खासे आम दिखाई दे रहे हैं. अगर यह आंधी तूफान से बच गए तो भी किसानों को अच्छा फायदा हो जाएगा. यहां दशहरी, लंगड़ा, कपुरी, गौरजीत और आम्रपाली, मल्लिका प्रजाति के भी आम की पैदावार ढंग से की जाती है.
आम की फसलों को नष्ट कर रहे कीट
आम में लगने वाले 'भुनगा कीट' आम की पत्तियों समेत फलों को काटकर और उनका रस चूस कर हानि पहुंचाते हैं. इससे पत्तियों पर काले रंग की फफूंद भी आ जाती है, जिससे प्रभावित भाग सूख कर गिर जाता है. 'कीट' मंजरियों और तुरंत बने फलों के साथ मुलायम कोंपलों में अंडे देती हैं, जिससे आम की फसल बर्बाद होने लगती है.
दवाओं के छिड़काव में खर्च
स्थानीय किसानों का कहना है कि आंधी और ओले ने जो नुकसान पहुंचाया था, उससे कहीं ज्यादा इन कीटों से फसल को बचाने के लिए दवाओं पर खर्च करना पड़ रहा है. इन कीटों को मारने के लिए किसान इमिडाक्लोप्रिड और मोनोक्रोटोफॉस नामक दो दवाओं का पानी में घोल मिलाकर छिड़काव कर रहे हैं, जिनसे वह अपनी फसलों को बचा सकें.
आम की फसल को खर्रा रोग कर रहा प्रभावित
आम की फसल को खर्रा रोग भी प्रभावित करता है, जिससे फल और डंठल पर सफेद चूर्ण के समान फफूंद दिखाई देने लगते हैं. इनसे प्रभावित होकर फल पीले पड़कर गिरने लगते हैं. रोग से बचाव के लिए ट्राइकोडरमा या फिर डायनोकेप का एक मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव किया जाता है.
जिले के उद्यान अधिकारी बलजीत सिंह की मानें तो आम की बेहतर फसल लेने के लिए किसानों को निश्चित रूप से बागों की नियमित देखभाल करनी होगी. उन्होंने कहा कि किसी भी समस्या के निवारण के लिए किसान जिला उद्यान अधिकारी कार्यालय से कभी भी संपर्क कर सकते हैं.