गोरखपुरः जिले के गीता प्रेस का 'लीला चित्र मंदिर' की दीवारों पर श्रीमद भगवत गीता के 18 अध्याय 700 श्लोक संगमरमर पर अंकित है. यहां रखे गए चित्र भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण की लीलाओं से भरे हुए हैं. इन चित्रों में भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण की जीवनी की लीलाओं को चित्र के माध्यम से बड़ी ही सजीवता के साथ दर्शाया गया है. सजीव से दिखने वाले यह चित्र खुद-ब-खुद लोगों को आकर्षित करते हैं. गीता प्रेस के लीला चित्र मंदिर में बीके मिश्रा, जगन्नाथ और भगवान दास के बनाए गए सैकड़ों चित्र सुरक्षित और संरक्षित हैं.
दीवार पर लगे हैं 700 चित्र
लीला चित्र मंदिर का उद्घाटन 29 अप्रैल 1955 में देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने किया था. इस मंदिर में लगभग 700 दुर्लभ चित्र हैं. इनमें भगवान राम, भगवान कृष्ण की लीलाओं के अलावा 10 महाविद्या के भी चित्र शामिल हैं. बताया जाता है कि दीवार पर लगे सभी चित्र हाथ से बनाए गए हैं. साथ ही संगमरमर की दीवारों पर पूरी श्रीमद्भगवद्गीता गढ़ी गई है.
प्रथम राष्ट्रपति ने किया था मंदिर का उद्घाटन
गोरखपुर गीता प्रेस प्रबंधक लालमणि तिवारी बताते हैं कि यहां के चित्रों में ऐसी संयुक्ता दिखाई देती है जो कहीं और देखने को नहीं मिलती. इनमें से कई दुर्लभ चित्रों को संस्थापक जय दयाल गोयनका और हनुमान प्रसाद पोद्दार ने सामने बैठकर बनवाया है. गीता प्रेस से प्रकाशित पुस्तकों में भी प्रमाणिक सचित्र ही मिलते हैं. इसके अलावा पूरे हाल में संगमरमर के पत्थरों पर संपूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता दर्शायी गई है. उन्होंने बताया कि यहां देश-विदेश से लोग आते रहते हैं. हनुमान प्रसाद पोद्दार के आग्रह पर देश के प्रथम राष्ट्रपति ने यहां आकर लीला चित्र मंदिर का उद्घाटन किया था.
चित्रकार गोपाल गुप्ता 'साधक' बताते हैं कि यहां पर 700 चित्र हैं. लीला चित्र मंदिर में पूर्व की तरफ भगवान श्रीकृष्ण के चित्र हैं. पश्चिम की तरफ श्रीराम के हस्त निर्मित लीला चित्र हैं. चित्र में आकृति को खोजने वाले 4 चित्र भी खास हैं. दक्षिण की तरफ दशावतार तथा इससे जुड़े चित्र हैं. उन्होंने बताया कि उत्तर की ओर नवदुर्गा समेत अनेक देवियों के चित्र हैं. इन चित्रों में से अधिकतर बीके मित्रा, जगन्नाथ और भगवानदास के बनाए हुए हैं.
मेवाड़ शैली में भी बने हैं चित्र
गोपाल गुप्ता ने बताया कि मंदिर में 600 से अधिक पेंटिंग हैं. इनमें मेवाड़ी चित्रकला शैली में भगवान कृष्ण की लीला दिखाई गई है. यह मेवाड़ से लाकर किसी ने हनुमान प्रसाद पोद्दार को भेंट की थी. इसी तरह जयपुर, मुगल, ओरिएंटल आर्ट की भी पेंटिंग है. यहां कई चित्र ऐसे हैं जो 300 से 400 सालों से भी ज्यादा पुराना है. वहीं 17 वीं शताब्दी की गोविंद गद्दी का चित्र यहां का विशेष आकर्षण है.
रामानंद सागर ने यहीं से किया था आभूषण का चुनाव
रामायण बनाने से पहले रामानंद सागर 4 दिनों के लिए गीताप्रेस आए थे. गीता प्रेस में देवी, देवताओं के सैकड़ों चित्र रखे हुए हैं. रामानंद सागर ने बारीकी से उन चित्रों को देखा. चित्रों में देवी-देवताओं के वस्त्र उनके रंग और आभूषण के आधार पर ही उन्होंने अपने धारावाहिक के पात्रों राम, लक्ष्मण, सीता, कौशल्या, हनुमान, सुग्रीव आदि के वस्त्र उनके रंग और आभूषण का चुनाव किया था. लीला चित्र मंदिर में तमाम ऐसी चीजें हैं, जिन्हें संरक्षित करके रखा गया है.