गोंडा: महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में जन्मे नानाजी देशमुख ने गोंडा जिले को अपनी कर्मस्थली बनाकर यहां के एक छोटे से गांव जयप्रभा को विकसित कर मॉडल गांव बना दिया. जिले से 28 किलोमीटर दूर स्थित जयप्रभा ग्राम मॉडल गांव के रूप में विकसित किया गया. यह गांव जनपद में ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में आत्मनिर्भर गांव के नाम से जाना जाता है. इस गांव को नानाजी देशमुख ने गोंडा और बलरामपुर की सरहद पर बसाया था, जिसके बाद जयप्रभा ग्राम की अर्थव्यवस्था और निर्भरता की मिसाल मानी जाती है. इस गांव के लोगों को दैनिक उपयोग की सामग्री बाजार से नहीं खरीदनी पड़ती है. इस गांव में विद्यालय, अस्पताल, डाकघर, प्रशिक्षण संस्थान, जल संरक्षण के लिए तालाब और तरह-तरह की जड़ी बूटियों की खेती होती है. इन जड़ी बूटियों से दीनदयाल शोध संस्थान में दवाइयां बनाई जाती हैं.
नाना जी को भारत रत्न से किया गया सम्मानित
शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण स्वावलंबन के क्षेत्र में योगदान के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने नाना जी को 9 अगस्त 2019 को मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया. एकात्म मानव दर्शन के शिल्पकार नानाजी देशमुख की कर्मस्थली के रूप में ग्रामोदय प्रकल्प जयप्रभा ग्राम अब सिर्फ गोंडा और देवीपाटन मंडल में ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में अपनी खुशबू बिखेर रहा है.
मैं अपने लिए नहीं अपनों के लिए हूं
जयप्रभा ग्राम के मुख्य द्वार पर नाना जी का जीवन सूत्र वाक्य 'मैं अपने लिए नहीं अपनों के लिए हूं, अपने वह हैं जो पीड़ित और उपेक्षित हैं' लिखा हुआ है. ग्राम स्वराज को जमीन पर उतारने वाले नानाजी की कर्मस्थली में प्रेरणा और अद्भुत संगम देखने को मिलता है. यहां गौशाला, रासशाला, भक्ति धाम मंदिर के साथ-साथ थारू जाति जनजाति के बच्चों को रहने और उनकी नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था है. यहां झील के दर्शन के साथ नौका विहार भी होता है. लोकनायक जयप्रकाश नारायण और उनकी पत्नी प्रभावती की स्मारिका मंदिर के अलावा सामाजिक समरसता का प्रतीक भक्ति धाम चारों धाम के दर्शन कराता है.
जयप्रभा ग्राम में हैं प्रेरक चीजें
दीनदयाल शोध संस्थान जयप्रभा ग्राम के नाम से स्थापित प्रकल्प में नाना जी की कुटिया, अरविंद कुटी, चिन्मय कुटी, पोषक वाटिका और मानस झील के दर्शन के साथ नौका विहार भी होता है. यहां कृषि विज्ञान केंद्र, थारू जनजाति सहित संस्थान के 10 प्रकल्प स्थापित हैं. पद्म भूषण सहित कई सम्मान पा चुके नाना जी का जीवन काफी सादगी भरा रहा. कठोर परिश्रम ने ही नाना जी को इस मुकाम तक पहुंचाया. 25 वर्षों की राजनीतिक सेवा के बाद 60 वर्ष की आयु में 8 अप्रैल 1978 को उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया था.
500 गांव में किया बदलाव
नानाजी देशमुख ने संस्थान में शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वालंबन के आधार पर गोंडा बलरामपुर के 500 गांव में बदलाव ला दिया. उन्होंने तमाम रोजगार परक अवसर भी मुहैया कराए. अब तक करीब 60 हजार से अधिक युवक-युवतियों को संस्थान से विभिन्न ट्रेडों में प्रशिक्षण देकर स्वावलंबी बनाया गया. इसके साथ ही थारू जनजाति के 10 हजार से अधिक बच्चों को शिक्षित किया गया. 300 से अधिक महिलाओं को समूह का गठन करा कर उन्हें स्वावलंबी बनाया गया है. पाटन मंडल में ही नहीं बल्कि नानाजी की शाखाएं कई प्रदेशों में अपनी अलग जगह रही हैं. उनके कार्यकर्ता मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र के बीड, नागपुर, दिल्ली और चित्रकूट तक फैले हैं.
बांस की कुटी में रहते थे नानाजी देशमुख
जयप्रभा ग्राम में मानस झील के समीप नानाजी देशमुख की कुटी बनाकर रहते थे. सादगी भरे इस जीवन में नानाजी केवल लोगों के लिए आर्थिक निर्भरता और सामाजिक पुनर्रचना में ही लगे रहे. उन्होंने मृत्यु से पहले अपने शरीर को एम्स में दान करने की बात कही थी. नानाजी देशमुख ने 27 फरवरी 2010 को अंतिम सांसे ली.
राजमाता बलरामपुर को हराकर चुने गए सांसद
25 नवंबर 1978 को जयप्रभा ग्राम प्रकल्प की स्थापना हुई. बलरामपुर संसदीय सीट से 1977 में राजमाता बलरामपुर को चुनाव हराकर नानाजी देशमुख लोकसभा के लिए चुने गए. ऐसा बताया जाता है कि चुनाव हारने के बाद जयप्रभा ग्राम पंचायत की करीब 50 एकड़ जमीन को राजमाता ने नाना जी को दान में दिया था. पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद के दर्शन को व्यवहारिक धरातल पर उतारने के लिए नानाजी देशमुख ने सामाजिक, आर्थिक, पुनर्रचना की प्रयोगशाला के तौर पर दीनदयाल शोध संस्थान ग्राम जयप्रभा ग्राम की स्थापना की. वहां पर हर हाथ को काम हर खेत को पानी देने का बीड़ा उठाकर नानाजी देशमुख ने 25 नवंबर 1978 में ग्राम उत्थान के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी से कई परियोजनाओं को संचालित कराया. उन्होंने लगभग 30 हजार से अधिक ट्यूबवेल की बोरिंग कराकर किसानों के खेतों की सिंचाई की व्यवस्था की.
स्वरोजगार से बन रहे आत्मनिर्भर
जयप्रभा ग्राम प्रकल्प में महिलाओं और पुरूषों को ट्रेनिंग देकर आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है. किसानों को आधुनिक खेती और जड़ी-बूटियों की खेती, मधुमक्खी पालन, मछली पालन सहित कई चीजों की ट्रेनिंग लेकर लोग आत्मनिर्भर बन रहे हैं. यहां से ट्रेनिंग प्राप्त कर वह अपने गांव और आसपास में रोजगार के लिए दुकान खोलकर अपने परिवार के लिए पैसे कमाकर जीवन यापन कर रहे हैं. इस गांव के लोग पलायन नहीं करते हैं, बल्कि यहां से रोजगार प्राप्त कर अपने परिवार के बीच रहते हुए पैसे कमाकर जीवन यापन करते हैं.
जयप्रभा ग्राम प्रकल्प सचिव ने दी जानकारी
दीनदयाल शोध संस्थान के सचिव राम कृष्ण तिवारी से बात की गई तो उन्होंने बताया कि नानाजी देशमुख महाराष्ट्र में पैदा हुए और प्रदेश के पिछड़े जिले गोण्डा को अपनी कर्मभूमि बनाया. इसके बाद उन्होंने गांव के विकास का काम शुरू किया और जयप्रभा ग्राम बसाया. उसके बाद नानाजी देशमुख ने इस गांव का विकास किया और गांव के लोगों के ट्रेनिंग देकर स्वरोजगार उपलब्ध कराया. जिसके बाद यहां के लोगों ने धीरे-धीरे गांव से पलायन बंद कर दिया. अब यहां के लोग अपने गांव में ही रहकर आत्मनिर्भर बन रहे हैं.