गोण्डा: समाज, शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वावलंबन की अलख जगाने वाले नाना जी देशमुख को दिल्ली में मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया. इसको लेकर जिले के दीनदयाल शोध संस्थान में गुरुवार को मिठाई बांटकर खुशियां मनाई गईं. जिले के जयप्रभा ग्राम में उन्होंने अपना पहला दीनदयाल शोध संस्थान खोला और यहीं से अपने कार्यक्षेत्र की शुरुआत की.
नाना जी देशमुख को भारत रत्न से नवाजा गया-
नाना जी देशमुख का जन्म महाराष्ट्र प्रान्त के हिंगोली गांव में 11 अक्टूबर 1916 को हुआ था. यह शुरुआती दौर से समाजसेवा की भावना से ओतप्रोत थे. पिलानी के बिरला इंस्टीट्यूट से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद 1930 के दशक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल हुए. नाना जी देशमुख संघ के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार के बहुत करीबी माने जाते थे. इन्होंने भारतीय जनसंघ से अपने राजनैतिक पारी की शुरुआत की और 1980 में 60 वर्ष की अवस्था में राजनीति से सन्यास लेकर राजनीतिज्ञों के लिए बड़ा संदेश दिया.
राजनीति से सन्यास लेने के बाद इन्होंने उत्तर प्रदेश के गोण्डा जनपद के जयप्रभा ग्राम में सन् 1978 में दीनदयाल शोध संस्थान का शुभारंभ किया. 50 एकड़ तक फैले इस संस्थान पर प्रकृति अपनी छटा बिखेरती है. नाना जी देशमुख का पूरा जीवन शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वावलंबन के प्रति समर्पित रहा है. श्री देशमुख चित्रकूट के जनपद के 500 गांवों के उत्थान में अपनी महती भूमिका निभाई है.
बताया जाता है कि शिल्पी दंपति योजना के तहत इन 500 गांवों में इन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वावलंबन के प्रति लोगों को जागरुक किया. इन्हीं उत्कृष्ट कार्यों के चलते गुरुवार को नाना जी को देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से राष्ट्रपति कोविंद ने नवाजा है.
इन्होंने कहा था कि 'मैं अपने लिए नहीं अपनो के लिए हूं' अपने वे हैं जो पीड़ित एवं उपेक्षित हैं. आदर्श की मिसाल रहे देशमुख जी ने जनता पार्टी मंत्रीमंडल में शामिल होने से मना करते हुए कहा था कि जो लोग 60 वर्ष के हो गए हैं वह सरकार में नहीं बल्कि समाजसेवा करेंगे. स्वयं 60 वर्ष की उम्र में राजनीतिक जीवन से सन्यास लेकर लोगों के लिए मिसाल पेश की थी.