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गोण्डा: कुपोषित बच्चों की बढ़ रही संख्या, शासन-प्रशासन के दावे फेल

यूपी के गोण्डा में सरकार के तमाम दावों के बाद भी कुपोषण से ग्रस्त बच्चों की संख्या में खूब वृध्दि हो रही है. आंकड़ो के अनुसार जिले में 2017 में कुपोषित बच्चों की संख्या 29 जहार 500 थी.  दिसंबर 2018 में हुए सर्वेक्षण के अनुसार यह संख्या बढ़ कर 42 हजार 500 हो गई है.

कुपोषित बच्चों की बढ़ रही संख्या.
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Published : Aug 17, 2019, 6:11 AM IST

गोण्डा: कुपोषण के लिए भले ही सरकार तरह-तरह की योजनाएं चला रही है, लेकिन अगर आंकड़ो की बात करें तो महज एक साल के अंतराल में कुपोषित बच्चों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है. सरकार द्वारा चलाए जाने वाले अभियान पूरी तरह फेल नजर आ रहे हैं. आंकड़ो के अनुसार जिले में 2017 में कुपोषित बच्चों की संख्या 29 हजार 500 थी. दिसंबर 2018 में हुए सर्वेक्षण के अनुसार यह संख्या बढ़ कर 42 हजार 500 हो गई है. सरकार द्वारा पोषण पुनर्वास केंद्र भी चलाये जा रहे हैं, जहां कुपोषित बच्चों को इलाज भी मिल रहा है, लेकिन इन प्रयासों के बावजूद कुपोषण पर पूरी तरह से लगाम लगाने में शासन-प्रशासन फेल नजर आ रहा है.

एक साल में दोगुने हो गए कुपोषित बच्चे.
एक साल में दोगुने हो गए कुपोषित बच्चे-

  • महज एक साल के अंतराल में कुपोषण बच्चों की संख्या दुगनी हुई.
  • बता दें कि 2017 में हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार जिले में तीन वर्ष से कम आयु के कुपोषित बच्चों की संख्या 29 हजार 950 थी.
  • वहीं दिसंबर 2018 के आंकड़ो के मुताबिक यह संख्या बढ़ कर 42 हजार 500 हो गई.
  • अति कुपोषित बच्चों की संख्या में भी काफी इजाफा देखने को मिला.
  • 2017 के आंकड़ो में अति कुपोषित बच्चो की संख्या 16 हजार 300 थी तो वहीं 2018 में यह संख्या बढ़कर 20 हजार 782 हो गई.
  • जिला अस्पताल में इसके लिए पोषण पुनर्वास केंद्र की भी व्यवस्था है, जहां कुपोषित बच्चों के लिए पोषक दवाइयां दी जाती हैं.
  • पोषण पुनर्वास केंद्र में कुपोषित बच्चों की मां को भी पोषण युक्त खाना दिया जाता है, साथ ही साथ 50 रुपये रोजाना उनके खाते में भी भेजा जाता है.
  • शासन स्तर पर कुपोषण के लिए शबरी संकल्प योजना भी चलाई जाती है.

इसे भी पढ़ें:- गोंडा: खुशहाली केंद्र हो गए बदहाली का शिकार, मायूस होकर लौट रहे किसान

जब ईटीवी भारत ने जिला अस्पताल में इसकी पड़ताल की तो वहां पोषण पुनर्वास केन्द्र में सात कुपोषित बच्चों का इलाज चल रहा था. आंकड़ो के हिसाब से इलाज बहुत कम बच्चों का हो रहा है. कुपोषण के यह आंकड़े यह बात पुष्ट करते हैं कि स्वास्थ्य विभाग अपना कार्य बेहतर ढंग से नहीं कर रहा है.

556 एडमिशन हुए है, जिसमें 90 फीसदी डिस्चार्ज हो गए हैं. फिलहाल हमारे यहां 9 बच्चों का इलाज चल रहा है. कम से कम बच्चों को 14 दिन रखा जाता है, बाकि 21 दिन या 22वें दिन डिस्चार्ज किया जाता है.
-अभिषेक त्रिपाठी, इंचार्ज, एनआरसी

गोण्डा: कुपोषण के लिए भले ही सरकार तरह-तरह की योजनाएं चला रही है, लेकिन अगर आंकड़ो की बात करें तो महज एक साल के अंतराल में कुपोषित बच्चों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है. सरकार द्वारा चलाए जाने वाले अभियान पूरी तरह फेल नजर आ रहे हैं. आंकड़ो के अनुसार जिले में 2017 में कुपोषित बच्चों की संख्या 29 हजार 500 थी. दिसंबर 2018 में हुए सर्वेक्षण के अनुसार यह संख्या बढ़ कर 42 हजार 500 हो गई है. सरकार द्वारा पोषण पुनर्वास केंद्र भी चलाये जा रहे हैं, जहां कुपोषित बच्चों को इलाज भी मिल रहा है, लेकिन इन प्रयासों के बावजूद कुपोषण पर पूरी तरह से लगाम लगाने में शासन-प्रशासन फेल नजर आ रहा है.

एक साल में दोगुने हो गए कुपोषित बच्चे.
एक साल में दोगुने हो गए कुपोषित बच्चे-

  • महज एक साल के अंतराल में कुपोषण बच्चों की संख्या दुगनी हुई.
  • बता दें कि 2017 में हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार जिले में तीन वर्ष से कम आयु के कुपोषित बच्चों की संख्या 29 हजार 950 थी.
  • वहीं दिसंबर 2018 के आंकड़ो के मुताबिक यह संख्या बढ़ कर 42 हजार 500 हो गई.
  • अति कुपोषित बच्चों की संख्या में भी काफी इजाफा देखने को मिला.
  • 2017 के आंकड़ो में अति कुपोषित बच्चो की संख्या 16 हजार 300 थी तो वहीं 2018 में यह संख्या बढ़कर 20 हजार 782 हो गई.
  • जिला अस्पताल में इसके लिए पोषण पुनर्वास केंद्र की भी व्यवस्था है, जहां कुपोषित बच्चों के लिए पोषक दवाइयां दी जाती हैं.
  • पोषण पुनर्वास केंद्र में कुपोषित बच्चों की मां को भी पोषण युक्त खाना दिया जाता है, साथ ही साथ 50 रुपये रोजाना उनके खाते में भी भेजा जाता है.
  • शासन स्तर पर कुपोषण के लिए शबरी संकल्प योजना भी चलाई जाती है.

इसे भी पढ़ें:- गोंडा: खुशहाली केंद्र हो गए बदहाली का शिकार, मायूस होकर लौट रहे किसान

जब ईटीवी भारत ने जिला अस्पताल में इसकी पड़ताल की तो वहां पोषण पुनर्वास केन्द्र में सात कुपोषित बच्चों का इलाज चल रहा था. आंकड़ो के हिसाब से इलाज बहुत कम बच्चों का हो रहा है. कुपोषण के यह आंकड़े यह बात पुष्ट करते हैं कि स्वास्थ्य विभाग अपना कार्य बेहतर ढंग से नहीं कर रहा है.

556 एडमिशन हुए है, जिसमें 90 फीसदी डिस्चार्ज हो गए हैं. फिलहाल हमारे यहां 9 बच्चों का इलाज चल रहा है. कम से कम बच्चों को 14 दिन रखा जाता है, बाकि 21 दिन या 22वें दिन डिस्चार्ज किया जाता है.
-अभिषेक त्रिपाठी, इंचार्ज, एनआरसी

Intro:जिले में कुपोषण के लिए सरकार तरह तरह के स्किम चला रही है। लेकिन अगर आंकड़ो की बात करें तो महज एक साल के अंतराल में कुपोषित बच्चों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। सरकार द्वारा चलाये जाने वाले अभियान पूरी तरह फेल नजर आ रहे हैं। आंकड़ो के अनुसार 2017 में कुपोषित बच्चों की संख्या 29500 थी। दिसंबर 2018 में हुए सर्वेक्षण के अनुसार संख्या बढ़ कर 42500 हो गयी है। सरकार द्वारा पोषण पुनर्वास केंद्र भी चलाये जा रहे हैं। जहाँ कुपोषित बच्चों को इलाज भी मिल रहा है लेकिन इन प्रयासों के बावजूद भी कुपोषण पर पूरी तरह से लगाम लगाने में शासन प्रशासन फेल नजर आ रहे हैं।

Body:महज एक साल के अंतराल में कुपोषण की संख्या दुगनी होना यह अपने आप में चिंता का विषय है। बता दें कि 2017 में हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार जिले में तीन वर्ष से कम आयु के कुपोषित बच्चों की संख्या 29950 रही। वहीं दिसंबर 2018 के आंकड़ो के मुताबिक यह संख्या बढ़ कर 42500 हो गयी। वहीं अति कुपोषित बच्चों की संख्या में भी काफी इज़ाफ़ा देखने को मिला जहाँ 2017 के आंकड़ो में अतिकुपोषित बच्चो की संख्या 16300 थी वहीं 2018 में बढ़कर 20782 हो गयी। हालांकि जिला अस्पताल में इसके लिए पोषण पुनर्वास केंद्र की भी व्यवस्था है जहाँ कुपोषित बच्चों के लिए पोषक दवाइया दी जाती हैं। साथ ही साथ माँ को भी पोषण युक्त खाना दिया जाता है। साथ ही साथ 50 रुपये रोजाना के हिसाब से उनके खातों में भी भेजा जाता है। जब हम जिलासप्ताल इसकी पड़ताल करने पहुचे तो वहाँ पोषण पुनर्वास में सात कुपोषित बच्चों का इलाज चल रहा था। सोचनीय बात यह है कि आंकड़ो के हिसाब से इलाज बहुत कम बच्चो का हो रहा है। आंकड़ो के हिसाब से कुपोषण की संख्या बढ़ी ही है जो यह बात पुष्ट करती है कि स्वास्थ्य विभाग अपना कार्य बेहतर ढंग से नहीं कर रहा है। शासन स्तर पर कुपोषण के लिए शबरी संकल्प योजना भी चलाई जाती है फिर भी कुपोषण का इस तरह बढ़ाना यह शासन, प्रशासन के कार्यशैली पर बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है। Conclusion:एन आर सी इंचार्ज अभिषेक त्रिपाठी बताते है कि 556 एडमिशन हुए है जिसमें 90 फीसदी डिस्चार्ज हो गए है फिलहाल हमारे यहाँ 9 बच्चो का इलाज चल रहा है। कम से कम बच्चो को 14 दिन रखा जाता है बाकी 21 दिन या 22 वे दिन इन्हें डिस्चार्ज किया जाता है।

बाईट- लक्ष्मी(परीजन)
बाईट- अभिषेक त्रिपाठी(इंचार्ज एन.आर.सी)
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