गाजीपुर: माटी कला से जुड़े कामगारों की बेहतरी के लिए केंद्र और राज्य सरकार लगातार प्रयास कर रही है. कोरोना काल में मिट्टी कला से जुड़े कामगारों को सरकार मुफ्त में इलेक्ट्रॉनिक चाक उपलब्ध करा रही है. सरकार की मंशा थी की कुम्हारों को हाथ से चाक न चलाना पड़े, लेकिन हकीकत बिलकुल अलग है.
गाजीपुर में तमाम सरकारी दावे कुम्हारों की भट्टी में जल चुके हैं. मिट्टी को सुंदर आकार देने वाले कुम्हारों के बूढ़े हाथ अपनी परम्परा और आजीविका के लिए पारंपरिक चाक चला रहे हैं. कोरोना काल में सरकार ने मजदूरों के खाते में 1,000 की आर्थिक सहायता भेजी, लेकिन इन कुम्हारों को वह भी नसीब नहीं हुआ.
बता दें की सरकार ने सभी कामगारों को इलेक्ट्रॉनिक चाक उपलब्ध कराने का वादा किया था. गत वर्ष गाजीपुर में 22 इलेक्ट्रिक चाक वितरित किए गए, लेकिन तमाम सरकारी दावे महज कागजों पर ही इलेक्ट्रॉनिक चाक उपलब्ध कराते नजर आ रहे हैं.
हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार ने कुम्हारों को प्रोत्साहित करने के लिए 2018 में ही माटी कला एवं माटी शिल्प कला से संबंधित उद्योगों के विकास के लिए माटी कला बोर्ड का गठन कर दिया. माटी कला के कामगारों के उत्थान के कार्य के साथ ही दस लाख रुपये तक की निशु:ल्क टूल किट उपलब्ध कराये जाने थे. पर सरकार वादा पूरा नहीं कर सकी.
मिट्टी के बर्तनों की मांग में आई भारी गिरावट
कुम्हारों की बेहतरी, मिट्टी के बर्तनों को बढ़ावा देने, साथ ही प्रदेश के सभी जनपदों को प्लास्टिक मुक्त बनाने जैसे बड़े उद्देश्यों को लेकर यह योजना शुरू की गई थी. मिट्टी के बर्तनों में प्रेशर कुकर, पानी की बोतल, भोजन थाली, गिलास, जग आदि तैयार किया जाना था, लेकिन कोरोना संक्रमण काल में आत्मनिर्भर भारत की सच्चाई यह है कि कुम्हार जैसे तैसे केवल कुल्हड़ बना रहे हैं, उसके भी बिकने का भरोसा नहीं है, क्योंकि कोरोना के हॉटस्पॉट के चलते चाय और मिठाइयों की दुकानें बंद हैं. इसलिए कुल्हड़ की मांग में भारी गिरावट आई है.
मुहम्मदाबाद कस्बा निवासी 78 वर्षीय कामता कुम्हार ने बताया कि ग्राम उद्योग विभाग की तरफ से उन्हें इलेक्ट्रिक चाक उपलब्ध नहीं कराया गया. हालांकि उन्होंने सात आठ महीने पहले फार्म भरकर जमा किया था, लेकिन अभी तक कुछ नहीं मिला. कोरोना के हॉटस्पॉट के चलते दुकानें बंद हैं. इतना ही नहीं उन्होंने बताया लॉकडाउन की अवधि में महज एक महीने ही 20 किलो चावल मिला था. उसके बाद जैसे तैसे गुजारा चल रहा है.
इस कला से जुड़े 81 वर्षीय पुरुषोत्तम बताते हैं कि उनके पास दूसरा रोजगार नहीं है. थोड़ा बहुत मूर्तियां बनाते हैं. उन्होंने कहा कि अब उनके हाथों में उतनी ताकत नहीं बची कि वह चाक चला सकें. इसलिए छोटी मोटी मूर्तियां बनाने का काम करते हैं
ग्रामोद्योग अधिकारी वीके सिंह ने बताया कि शासन से मिले निर्देश के मुताबिक हम लक्ष्यों को प्राप्त करने की लगातार कोशिश कर रहे हैं, ताकि कुम्हारों को ज्यादा से ज्यादा लाभ मिले. इस वित्तीय वर्ष में जनपद में इलेक्ट्रिक चाक वितरण के 40 लक्ष्य प्राप्त हुए हैं. बहरहाल सरकार की मंशा भले ही अच्छी हो, लेकिन अधिकारियों की हीलाहवाली के चलते जरूरतमंदों को सरकारी सुविधा से महरूम रहना पड़ रहा है.