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गाजीपुर: हर दिन होती है रोटी कमाने की जंग, लकड़ी बेचकर जीने को मजबूर हैं बाढ़ पीड़ित - मोहम्मदाबाद

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में बाढ़ ने किसानों की फसलों को बर्बाद कर दिया, ऐसे में बाढ़ प्रभावित लोग मेहनत मजदूरी कर जीने को मजबूर हैं. जिले के मोहम्मदाबाद में प्रशासन से पर्याप्त मदद न मिलने के कारण बाढ़ प्रभावित लोग लकड़ियां बेचकर कर दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर रहे हैं.

farmers condition in ghazipur
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Published : Oct 4, 2019, 10:57 PM IST

गाजीपुरः बाढ़ की मार ने किसानों की फसलों को बर्बाद कर दिया है. खाने को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पा रहा है. सरकार और जिला प्रशासन द्वारा दिया गया पांच किलो आटा, चावल और आलू आखिर कितने दिन चलेगा. मजबूरन बाढ़ प्रभावित लोगों को पानी में डूबी लकड़ियों को काटकर बेचना पड़ रहा है.

गाजीपुर में लकड़ी बेचकर जिंदगी जीने को मजबूर किसान.

लकड़ी बेचने को मजबूर किसान
बाढ़ प्रभावित लोग कंधे पर लकड़ी के डंडे के सहारे कांवर नुमा ढांचे पर दोनों तरफ लकड़ियां लादकर बाजारों का रुख कर रहे हैं, ताकि चार पैसे मिले और शाम को घर में चूल्हा जल सके. लकड़ी बेचने जा रहे भावेश ने बताया यह लकड़ी हम बेचने के लिए ले जा रहे हैं, बेचकर खाना खाएंगे. सारी खेती डूब गई है. मिर्च और टमाटर की खेती डूबकर बर्बाद हो गई है.

सारी फसलें डूब गईं
आपको बता दें कि मोहम्मदाबाद के भावर कोल इलाके में सब्जियों की खेती ज्यादा होती हैं, जिसमें मिर्च, टमाटर, नेनुआ, भिंडी, जैसी सब्जियों को भारी मात्रा में उगाया जाता है, लेकिन बाढ़ के कहर ने किसानों की कमर ही तोड़ दी है. कंधे पर लकड़ी का बोझ लादे जा रहे रामकरण बताते हैं कि लकड़ी बेचने के लिए ले जा रहे हैं, तभी तो भोजन मिलेगा. सारी फसल अब डूब चुकी है खाएंगे क्या ?

पढ़ेंः-गाजीपुर: बारिश के तांडव ने ली 5 लोगों की जान

प्रशासन नहीं कर रहा मदद
कन्हैया बताते हैं कि हम लोग खेती बाड़ी करते हैं, लेकिन सब कुछ डूबकर बर्बाद हो गया है. फसलों के बर्बाद होने के बाद हम मजदूरी भी कर लेते हैं. रास्ते में थोड़ा आगे बढ़े ही थे की हमारी मुलाकात जुनता देवी से हुई. रोकर अपना दर्द बयां करते हुए उन्होंने कहा कि 'दाना-पानी बिना मर जाईब जा'. जिला प्रशासन से उन लोगों को सुविधा मिली इस सवाल पर उन्होंने कहा कि कुछ नहीं मिला. रात दिन लड़के खेत में फसल बचाने में लगे हुए हैं.

कितना दिन चलेगा सरकार का पांच किलो आटा
बात भी सच है बाढ़ से हुई बर्बादी का मुआवजा बड़े अधिकारी कब देंगे. यह तो पता नहीं, लेकिन भूख तो हर दिन लगती है. वहीं पांच किलो आटा चावल कितने दिन चलेगा. दिन ढलते देर नहीं लगती है. साहब बाढ़ के दुर्गम हालातों के बीच बाढ़ प्रभावित लोग चुनौतीपूर्ण जिंदगी जीने को मजबूर हैं. हर दिन रोटी कमाने की जंग होती है.

अभी गंगा का जलस्तर घट रहा है, जो लोग पानी के बीच घिरे थे, उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया गया है. एसडीएम, पशु चिकित्सा एवं पंचायती राज विभाग को हर स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहने की बात कही गई है.
-के. बालाजी, डीएम, गाजीपुर

गाजीपुरः बाढ़ की मार ने किसानों की फसलों को बर्बाद कर दिया है. खाने को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पा रहा है. सरकार और जिला प्रशासन द्वारा दिया गया पांच किलो आटा, चावल और आलू आखिर कितने दिन चलेगा. मजबूरन बाढ़ प्रभावित लोगों को पानी में डूबी लकड़ियों को काटकर बेचना पड़ रहा है.

गाजीपुर में लकड़ी बेचकर जिंदगी जीने को मजबूर किसान.

लकड़ी बेचने को मजबूर किसान
बाढ़ प्रभावित लोग कंधे पर लकड़ी के डंडे के सहारे कांवर नुमा ढांचे पर दोनों तरफ लकड़ियां लादकर बाजारों का रुख कर रहे हैं, ताकि चार पैसे मिले और शाम को घर में चूल्हा जल सके. लकड़ी बेचने जा रहे भावेश ने बताया यह लकड़ी हम बेचने के लिए ले जा रहे हैं, बेचकर खाना खाएंगे. सारी खेती डूब गई है. मिर्च और टमाटर की खेती डूबकर बर्बाद हो गई है.

सारी फसलें डूब गईं
आपको बता दें कि मोहम्मदाबाद के भावर कोल इलाके में सब्जियों की खेती ज्यादा होती हैं, जिसमें मिर्च, टमाटर, नेनुआ, भिंडी, जैसी सब्जियों को भारी मात्रा में उगाया जाता है, लेकिन बाढ़ के कहर ने किसानों की कमर ही तोड़ दी है. कंधे पर लकड़ी का बोझ लादे जा रहे रामकरण बताते हैं कि लकड़ी बेचने के लिए ले जा रहे हैं, तभी तो भोजन मिलेगा. सारी फसल अब डूब चुकी है खाएंगे क्या ?

पढ़ेंः-गाजीपुर: बारिश के तांडव ने ली 5 लोगों की जान

प्रशासन नहीं कर रहा मदद
कन्हैया बताते हैं कि हम लोग खेती बाड़ी करते हैं, लेकिन सब कुछ डूबकर बर्बाद हो गया है. फसलों के बर्बाद होने के बाद हम मजदूरी भी कर लेते हैं. रास्ते में थोड़ा आगे बढ़े ही थे की हमारी मुलाकात जुनता देवी से हुई. रोकर अपना दर्द बयां करते हुए उन्होंने कहा कि 'दाना-पानी बिना मर जाईब जा'. जिला प्रशासन से उन लोगों को सुविधा मिली इस सवाल पर उन्होंने कहा कि कुछ नहीं मिला. रात दिन लड़के खेत में फसल बचाने में लगे हुए हैं.

कितना दिन चलेगा सरकार का पांच किलो आटा
बात भी सच है बाढ़ से हुई बर्बादी का मुआवजा बड़े अधिकारी कब देंगे. यह तो पता नहीं, लेकिन भूख तो हर दिन लगती है. वहीं पांच किलो आटा चावल कितने दिन चलेगा. दिन ढलते देर नहीं लगती है. साहब बाढ़ के दुर्गम हालातों के बीच बाढ़ प्रभावित लोग चुनौतीपूर्ण जिंदगी जीने को मजबूर हैं. हर दिन रोटी कमाने की जंग होती है.

अभी गंगा का जलस्तर घट रहा है, जो लोग पानी के बीच घिरे थे, उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया गया है. एसडीएम, पशु चिकित्सा एवं पंचायती राज विभाग को हर स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहने की बात कही गई है.
-के. बालाजी, डीएम, गाजीपुर

Intro:सरकार की राहत सामग्री हो गई खत्म, बाढ़ प्रभावित लोग लकड़ी बेचकर जिंदगी जीने को मजबूर हर दिन होती है रोटी कमाने की जंग , बाढ़ प्रभावित लोग लकड़ी बेचकर जिंदगी जीने को मजबूर गाजीपुर । कहते हैं मजबूरी क्या नहीं कराती। जब घर में रोटी ना हो। पेट में खाना ना हो, तो बरबस ही पैर बाजारों की तरफ निकल जाते हैं। बाढ़ नहीं किसानों की फसल बर्बाद कर दी। ऐसे में  बाढ़ प्रभावित लोग मेहनत मजदूरी कर जीने को मजबूर हैं।  कुछ ऐसा ही मंजर गाजीपुर के मोहम्मदाबाद का हैं। जिला प्रशासन से पर्याप्त मदद ना मिलने बाढ़ प्रभावित लोग लकड़ियां बेच कर कर दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर रहे हैं।


Body:गाजीपुर में बाढ़ की मार ने किसानों की फसल बर्बाद कर दी कर दी है। खाने को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पा रहा। सरकार और जिला प्रशासन द्वारा दिया गया 5 किलो आटा, चावल और आलू आखिर कितने दिन चलेगा। मजबूरन बाढ़ प्रभावित लोगों को पानी में डूबी लकड़ियों को काटकर बेचना पड़ रहा है। बाढ़ प्रभावित लोग कंधे पर लकड़ी के डंडे के सहारे कांवर नुमा ढाँचे पर दोनों तरफ लकड़ियां लादकर बाजारों का रुख कर रहे हैं। ताकि चार पैसे मिले और शाम को घर में चूल्हा जल सकें। हमें गांव में भावेश मिले। यह लकड़ी हम बेचने हम बेचने के लिए ले जा रहे हैं। बीच पर खाना खाएंगे सारी खेती डूब गई है। मिर्च टमाटर सब डूब कर बर्बाद हो गया। आपको बता दें कि मोहम्मदाबाद के भावर कोल इलाके में सब्जियों की खेती ज्यादा होती है जिसमें मिर्च टमाटर नेनुआ भिंडी भिंडी जैसी सब्जियों को भारी मात्रा में उगाया जाता है। लेकिन बाढ़ के कहर ने किसानों की कमर ही तोड़ दी है। कंधे पर लकड़ी का बोझ लादे जा रहे हमें रामकरण मिले। बताते हैं की लकड़ी बेचने के लिए ले जा रहे हैं तभी तो भोजन मिलेगा। सारी फसल अब डूब चुकी है खाएंगे क्या? आखिर पेट भरना है तो कुछ ना कुछ करना ही है। कन्हैया बताते हैं हम लोग खेती बारी करते हैं। लेकिन सब कुछ डूबकर बर्बाद हो गया है। फसलों के बर्बाद होने के बाद हम मजदूरी भी कर लेते हैं। रास्ते में थोड़ा आगे बढ़े ही थे की हमारी मुलाकात जुनता देवी से  हुई। रो कर अपना दर्द बयां करते हुए उन्होंने कहा कि दाना पानी बिना मर जाईब जा। जिला प्रशासन से उन लोगो को सुविधा मिली इस सवाल पर उन्होंने कहा कि कुछ नहीं मिला, रात दिन लड़के खेत में फसल बचाने में लगे हुए है।


Conclusion:बात भी सच है बाढ़ से हुई बर्बादी का मुआवजा बड़े अधिकारी कब देंगे यह तो पता नहीं लेकिन भूख तो हर दिन लगती है।  वहीं 5 किलो आटा चावल कितने दिन चलेगा। दिन ढलते देर नहीं लगती है। डीएम बालाजी ने कहा कि अभी गंगा का जलस्तर घट रहा है। जो लोग पानी के बीच घिरे थे दियारे में खेती करते थे उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया गया है। एसडीएम पशु चिकित्सा एवं पंचायती राज विभाग को हर स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहने की बात कही गई है। लेकिन साहब बाढ़ के दुर्गम हालातों के बीच बाढ़ प्रभावित लोग चुनौतीपूर्ण जिंदगी जीने को मजबूर हैं। हर दिन रोटी कमाने की जंग होती है। बाइट - भावेश कुमार ( बाढ़ पीड़ित )  बाइट - रामकरण राम ( बाढ़ पीड़ित ) बाइट - जुनता देवी ( बाढ़ पीड़ित ) ग्रामीण, विजुअल, पीटीसी काउंटर बाइट - के बालाजी ( जिलाधिकारी गाजीपुर ) उज्जवल कुमार राय, 7905590960
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