गाजीपुर: रंगों का त्योहार होली अपनी अंतरराष्ट्रीय पहचान रखता है, लेकिन होली की परंपरा और लोकगीत होली के हुड़दंग में तब्दील होते जा रहे हैं. होली के गीत अब ढोलक की थाप से डीजे के बेस पर आ चुका है. भोजपुरी में कितने प्रकार के गीत थे और होली में किस तरीके से बदलाव आता जा रहा है, इस बारे में भोजपुरी गीतों के संकलनकर्ता और गायक राम नारायण तिवारी उर्फ भैया भदौरिया ने जानकारी दी.
बिहार के रहने वाले भैया भदोरिया ने बताया कि होली में पहले महावीरी झंडा निकलता था, जहां चौपाल लगती थी. वहां 50 जोड़ी झाल और ढोलक रख दिए जाते थे. हर दिन लोग जुटते थे और होली गाते थे. पूजा-पाठ की तरह होली में उपासना होती थी, क्योंकि पहले होली को एक देवता के रूप में माना जाता था. तब होली को डेढ़ महीने तक लोक पर्व के रूप में मनाया जाता था. पहले हम लोग कहते थे कि होली वेद की चीज है और हम होली को सामवेद के रूप में देखते थे, लेकिन आज होली फूहड़पन का रूप धारण कर चुकी है.
21 प्रकार की होती थी होली
उन्होंने बताया कि होली 21 प्रकार की होती थी. उन्होंने 14 विधाओं के होली के गीतों का संकलन किया है. बसंत, होरी (नारदीय होली, कबीर होली, श्रृंगार होली), चौताल, लेजू , लटका, चहका, धमार, उलार जोगीरा, लाचारी, कबीरा, झूमर, झूमत मनोरा और मनोरा कुल 14 प्रकार की होली लोकगीत है.
ईटीवी से खास बात करते हुए भैया भदौरिया ने होली के लगभग विलुप्त हो चुके कई गीतों को सुनाया. उन्होंने कहा कि होली, चौताल और बसंत अब सुनने को नहीं मिलता है. केवल चहका, लटका से ही काम चल जाता है, नहीं तो केवल जोगीरा गाकर होली मन जाती है. पूरी होली हुड़दंग की झोली में चली गई है.
इसे भी पढ़ें- मथुरा: बांके बिहारी मंदिर में रंग उत्सव मना रहे श्रद्धालु