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महापंचायतों का दिख रहा असर, बढ़ रही आंदोलनकारी किसानों की संख्या - गाजीपुर बॉर्डर में किसान आंदोलन

दिल्ली में गणतंत्र दिवस पर हुई हिंसा के बाद कमजोर पड़ते आंदोलन में एक बार फिर जान आ गई है. जगह-जगह किसान पंचायतें हो रही हैं और गाजीपुर बॉर्डर के आंदोलन स्थल पर किसानों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है.

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महापंचायतों का दिख रहा असर
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Published : Feb 4, 2021, 8:49 PM IST

गाजियाबाद: गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर मार्च के दौरान हुई हिंसा के बाद किसान आंदोलन कमजोर पड़ता नजर आ रहा था. ट्रैक्टर मार्च के बाद कई किसान संगठनों ने खुद को आंदोलन से अलग कर लिया, लेकिन राकेश टिकैत गाजीपुर बॉर्डर पर डटे रहे. इसके बाद से गाजीपुर बॉर्डर पर आंदोलनकारी किसानों की संख्या लगातार बढ़ रही है.

महापंचायतों का दिख रहा असर

महापंचायतों से बढ़ी किसान आंदोलन की ताकत

पश्चिमी उत्तर प्रदेश प्रदेश के विभिन्न जिलों में भारतीय किसान यूनियन की अगुवाई में हुई महापंचायतों का असर गाजीपुर बॉर्डर पर देखने को मिल रहा है. लगातार पश्चिम उत्तर प्रदेश में किसान ट्रैक्टर-ट्रॉली से आकर गाजीपुर बॉर्डर की तरफ कूच कर रहे हैं. बुज़ुर्ग भी ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर आंदोलन में डटे हुए हैं. वैशाली से यूपी गेट को जोड़ने वाली सड़क पर किसानों की ट्रैक्टर ट्रॉली की लंबी कतार नज़र आ रही है.

सरकार को नहीं दिख रहे किसानों के आंसू

किसान चाहते हैं कि केंद्र सरकार जल्द उनकी समस्या का समाधान करे, जिससे वह गांवों को वापस लौट सकें. किसानों का कहना था कि जब तक केंद्र सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस नहीं लेती है तब तक आंदोलन जारी रहेगा. गाजीपुर बॉर्डर पर लगातार किसानों की संख्या में भी बढ़ोतरी होती रहेगी. सरकार की किसी प्रकार की व्यवस्था की जरूरत नहीं है. किसान अपने साथ खाने-पीने और रहने आदि के लिए व्यवस्था लेकर आ रहा है. आंदोलन को दो महीने से अधिक हो चुके हैं, लेकिन सरकार हमारी आंखों के आंसू नहीं देख पा रही है.

आंदोलन में डटे हुए हैं बुजुर्ग

85 साल के बुजुर्ग किसान का कहना था कि जब तक मांगें पूरी नहीं होंगी, दिल्ली से गांवों को वापस नहीं लौटेंगे चाहे जितना समय लगे. हालांकि किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच कई दौर की वार्ता हुई, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल सका. अब देखना होगा कि सरकार का किसान आंदोलन पर क्या रुख रहता है और किसान दिल्ली से कब तक अपने घरों को वापस लौट पाते हैं.

गाजियाबाद: गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर मार्च के दौरान हुई हिंसा के बाद किसान आंदोलन कमजोर पड़ता नजर आ रहा था. ट्रैक्टर मार्च के बाद कई किसान संगठनों ने खुद को आंदोलन से अलग कर लिया, लेकिन राकेश टिकैत गाजीपुर बॉर्डर पर डटे रहे. इसके बाद से गाजीपुर बॉर्डर पर आंदोलनकारी किसानों की संख्या लगातार बढ़ रही है.

महापंचायतों का दिख रहा असर

महापंचायतों से बढ़ी किसान आंदोलन की ताकत

पश्चिमी उत्तर प्रदेश प्रदेश के विभिन्न जिलों में भारतीय किसान यूनियन की अगुवाई में हुई महापंचायतों का असर गाजीपुर बॉर्डर पर देखने को मिल रहा है. लगातार पश्चिम उत्तर प्रदेश में किसान ट्रैक्टर-ट्रॉली से आकर गाजीपुर बॉर्डर की तरफ कूच कर रहे हैं. बुज़ुर्ग भी ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर आंदोलन में डटे हुए हैं. वैशाली से यूपी गेट को जोड़ने वाली सड़क पर किसानों की ट्रैक्टर ट्रॉली की लंबी कतार नज़र आ रही है.

सरकार को नहीं दिख रहे किसानों के आंसू

किसान चाहते हैं कि केंद्र सरकार जल्द उनकी समस्या का समाधान करे, जिससे वह गांवों को वापस लौट सकें. किसानों का कहना था कि जब तक केंद्र सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस नहीं लेती है तब तक आंदोलन जारी रहेगा. गाजीपुर बॉर्डर पर लगातार किसानों की संख्या में भी बढ़ोतरी होती रहेगी. सरकार की किसी प्रकार की व्यवस्था की जरूरत नहीं है. किसान अपने साथ खाने-पीने और रहने आदि के लिए व्यवस्था लेकर आ रहा है. आंदोलन को दो महीने से अधिक हो चुके हैं, लेकिन सरकार हमारी आंखों के आंसू नहीं देख पा रही है.

आंदोलन में डटे हुए हैं बुजुर्ग

85 साल के बुजुर्ग किसान का कहना था कि जब तक मांगें पूरी नहीं होंगी, दिल्ली से गांवों को वापस नहीं लौटेंगे चाहे जितना समय लगे. हालांकि किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच कई दौर की वार्ता हुई, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल सका. अब देखना होगा कि सरकार का किसान आंदोलन पर क्या रुख रहता है और किसान दिल्ली से कब तक अपने घरों को वापस लौट पाते हैं.

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