फतेहपुर: जिले के ऐतिहासिक खजुआ कस्बे में रामलीला की तैयारियां प्रारंभ हो गई हैं. दशहरा के दिन गणेश पूजन से यहां रामलीला शरू होती है. आठवें दिन रावण वध के पश्चात रामलला की राजगद्दी और रावण पूजा की भव्य उत्सव के साथ खत्म हो जाता है.
मुस्लिम कारीगर बनाते हैं पुतले
यहां की रामलीला हमारे देश की गंगा-जमुनी तहजीब की नायाब मिसाल है. राम और रावण सहित बनने वाले सभी पुतलों को मुस्लिम समुदाय के लोग बनाते हैं. खजुआ की ऐतिहासिक रामलीला में निकलने वाली राम और रावण की झांकी की भव्यता प्रसिद्ध है. इसे देखने के लिए लोग अन्य जिलों से आते हैं. ऐसे में इसकी भव्यता में कोई कमी न हो इसके लिए हर वर्ष इसे और आकर्षक और सुंदर बनाने का प्रयास रहता है. यहां, रावण, कुंभकरण और मेघनाद का विशालकाय पुतला बनाया जाता है. इनकी लंबाई 40 से 50 फुट होती है.
मुस्लिम कारीगर नूर मोहम्मद ने दी जानकारी
नूर मोहम्मद बताते हैं कि वो यह काम 35 वर्षों से कर रहे हैं. इसमें उनका साथ उनके बेटे देते हैं. उन्होंने बताया कि यह काम करके उन्हें खुशी मिलती है. आप मुसलमान होकर यहां मंदिर में काम करते हैं, इसपर उन्होंने कहा कि खजुआ में सभी लोग चाहे वह किसी भी धर्म के हों, सभी के त्योहार में लोग आते-जाते हैं. सभी एक-दूसरे के साथ प्रेम की भावना के साथ हैं. खजुआ में हमेशा से हिंदू-मुस्लिम एकता कायम है. चाहे किसी भी धर्म का त्योहार हो, सभी धर्म के लोग इसे मिलकर मनाते हैं. नूर मोहम्मद ने कहा कि कोई भी धर्म हो वह प्रेम ही सिखाता है. कुछ लोगों के बुरे होने से पूरा समाज बुरा नहीं होता है.
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रामलीला में की जाती है रावण की पूजा
खजुआ की रामलीला का विशेष महत्व है. यहां रावण को जलाने के बजाय उसकी पूजा करने की परंपरा है. तांबे के शीश वाले रावण के पुतले को हजारों दीपों की रोशनी से सजाया जाता है. इसके बाद पुजारी द्वारा श्रीराम के पहले रावण की पूजा की जाती है. यहां रावण, मेघनाद और कुंभकरण के पुतले मुख्यमार्ग पर निकाले जाते हैं.