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फतेहपुर: 52 सपूतों की कुर्बानी का गवाह है ये इमली का पेड़ - शहीद

फतेहपुर में ये इमली का पेड़ आज भी अंग्रेजी हुकूमत के जुल्मो-सितम की गवाही देता है. आज के दिन यानी 28 अप्रैल, सन् 1858 को अंग्रेजों ने 52 स्वतंत्रता सेनानियों को इसी इमली की पेड़ पर फांसी चढ़ा दी थी. इस घटना की याद में इस पेड़ को 'बावनी इमली का पेड़' कहा जाता है.

अंग्रेजों ने 52 स्वतंत्रता सेनानियों को इसी इमली की पेड़ पर फांसी चढ़ा दी थी.
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Published : Apr 28, 2019, 2:57 PM IST

Updated : Apr 28, 2019, 4:47 PM IST

फतेहपुर: हमारे देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने के लिए अनगिनत क्रांतिकारियों ने कुर्बानी दी. इन शहीदों की याद में अनेकों शहीद स्मारक बने हैं. उन्हीं में से एक है खजुआ में बावनी इमली का पेड़. इस पेड़ पर 28 अप्रैल, 1858 को अंग्रेजों ने 52 क्रांतिकारियों को एक साथ फांसी दी थी. यह पेड़ गवाह है अंग्रेजों की नाक में दम करने वाले क्रांतिकारी जोधा सिंह अटैया और उनके 51 साथियों की शहादत का.

अंग्रेजों ने 52 स्वतंत्रता सेनानियों को इसी इमली की पेड़ पर फांसी चढ़ा दी थी.

1857 का गदर और फतेहपुर

  • ब्रिटिश शासन के विरुद्ध जब बैरकपुर की छावनी में मंगल पांडेय ने स्वंतत्रता संग्राम का बिगुल फूंका तो यह पूरे देश में फैल गया.
  • फतेहपुर में क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध ऐसा गुरिल्ला युद्ध छेड़ा कि अंग्रेजों के नाक में दम कर दिया.
  • इस विद्रोह को शांत कराने के लिए ब्रिटिश सेना के सेनाध्यक्ष कैम्पबेल को फतेहपुर आना पड़ा था.
  • ठाकुर जोधा सिंह अटैया, अटैया रसकपूर गांव के निवासी थे.
  • उन्होंने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से प्रभावित होकर अंग्रेजी सेना के विरुद्ध विद्रोह छेड़ दिया.
  • जोधा सिंह ने दरियाव सिंह, शिवदयाल सिंह और अन्य साथियों के साथ मिलकर गुरिल्ला युद्ध की छेड़ दिया.
  • जोधा सिंह ने 27 अक्टूबर, 1857 को महमूदपुर गांव में एक दरोगा और एक अंग्रेज सिपाही की हत्या कर दी.
  • इस दौरान उन्होंने अंग्रेज के खजाने लूटने समेत कई घटनाओं को अंजाम दिया.
  • जोधा सिंह को सरकारी कार्यालय लूटने और जलाए जाने के कारण अंग्रेजों ने डकैत घोषित कर दिया गया.

कई दिनों तक पेड़ से ही झूलते रहे क्रांतिकारियों के शव

  • जोधा सिंह 28 अप्रैल, 1858 को अपने इक्यावन साथियों के साथ खजुआ लौट रहे थे.
  • उसी समय मुखबिर की सूचना पर अंग्रेजों ने सभी को बन्दी बना लिया.
  • अंग्रेजों ने सभी को इस इमली के पेड़ पर एक साथ फांसी दे दी.
  • कई दिनों तक क्रांतिकारियों के शव पेड़ से ही झूलते रहे.
  • चार मई की रात को महाराज सिंह अपनी सेना के साथ बावनी इमली आए और शवों के कंकाल को उतारा
  • महाराज सिंह ने शिवराजपुर के गंगाघाट पर अंत्येष्टि की.
  • आज बावनी इमली का शहीद स्मारक देश के लोगों के लिए पूज्यनीय है.
  • यह याद दिलाता है कि कितने संघर्ष के बाद आजादी मिली.
  • हर साल 28 अप्रैल को यहां शहीदों के सम्मान में मेला लगता है.
  • फतेहपुर के सपूतों की दास्तान इतिहास में उचित जगह नहीं बना पाई. इसका दर्द यहां के लोगों में आज भी है.
  • समाजसेवी चन्द्रभान सिंह ने कहा, '1970 में स्मारक बना लेकिन आज भी इस स्थान को सरकार की तरफ से अपेक्षाकृत कम सम्मान मिला'.

फतेहपुर: हमारे देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने के लिए अनगिनत क्रांतिकारियों ने कुर्बानी दी. इन शहीदों की याद में अनेकों शहीद स्मारक बने हैं. उन्हीं में से एक है खजुआ में बावनी इमली का पेड़. इस पेड़ पर 28 अप्रैल, 1858 को अंग्रेजों ने 52 क्रांतिकारियों को एक साथ फांसी दी थी. यह पेड़ गवाह है अंग्रेजों की नाक में दम करने वाले क्रांतिकारी जोधा सिंह अटैया और उनके 51 साथियों की शहादत का.

अंग्रेजों ने 52 स्वतंत्रता सेनानियों को इसी इमली की पेड़ पर फांसी चढ़ा दी थी.

1857 का गदर और फतेहपुर

  • ब्रिटिश शासन के विरुद्ध जब बैरकपुर की छावनी में मंगल पांडेय ने स्वंतत्रता संग्राम का बिगुल फूंका तो यह पूरे देश में फैल गया.
  • फतेहपुर में क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध ऐसा गुरिल्ला युद्ध छेड़ा कि अंग्रेजों के नाक में दम कर दिया.
  • इस विद्रोह को शांत कराने के लिए ब्रिटिश सेना के सेनाध्यक्ष कैम्पबेल को फतेहपुर आना पड़ा था.
  • ठाकुर जोधा सिंह अटैया, अटैया रसकपूर गांव के निवासी थे.
  • उन्होंने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से प्रभावित होकर अंग्रेजी सेना के विरुद्ध विद्रोह छेड़ दिया.
  • जोधा सिंह ने दरियाव सिंह, शिवदयाल सिंह और अन्य साथियों के साथ मिलकर गुरिल्ला युद्ध की छेड़ दिया.
  • जोधा सिंह ने 27 अक्टूबर, 1857 को महमूदपुर गांव में एक दरोगा और एक अंग्रेज सिपाही की हत्या कर दी.
  • इस दौरान उन्होंने अंग्रेज के खजाने लूटने समेत कई घटनाओं को अंजाम दिया.
  • जोधा सिंह को सरकारी कार्यालय लूटने और जलाए जाने के कारण अंग्रेजों ने डकैत घोषित कर दिया गया.

कई दिनों तक पेड़ से ही झूलते रहे क्रांतिकारियों के शव

  • जोधा सिंह 28 अप्रैल, 1858 को अपने इक्यावन साथियों के साथ खजुआ लौट रहे थे.
  • उसी समय मुखबिर की सूचना पर अंग्रेजों ने सभी को बन्दी बना लिया.
  • अंग्रेजों ने सभी को इस इमली के पेड़ पर एक साथ फांसी दे दी.
  • कई दिनों तक क्रांतिकारियों के शव पेड़ से ही झूलते रहे.
  • चार मई की रात को महाराज सिंह अपनी सेना के साथ बावनी इमली आए और शवों के कंकाल को उतारा
  • महाराज सिंह ने शिवराजपुर के गंगाघाट पर अंत्येष्टि की.
  • आज बावनी इमली का शहीद स्मारक देश के लोगों के लिए पूज्यनीय है.
  • यह याद दिलाता है कि कितने संघर्ष के बाद आजादी मिली.
  • हर साल 28 अप्रैल को यहां शहीदों के सम्मान में मेला लगता है.
  • फतेहपुर के सपूतों की दास्तान इतिहास में उचित जगह नहीं बना पाई. इसका दर्द यहां के लोगों में आज भी है.
  • समाजसेवी चन्द्रभान सिंह ने कहा, '1970 में स्मारक बना लेकिन आज भी इस स्थान को सरकार की तरफ से अपेक्षाकृत कम सम्मान मिला'.
Intro:फतेहपुर: हमारे देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने के लिए अनगिनत क्रांतिकारियों ने अपनी जान की कुर्बानी दी। इन शहीदों की शहादत को नमन करने के लिए अनेको शहीद स्मारक बने हुए हैं। उन्ही में से एक है फतेहपुर जनपद के खजुआ में बावनी इमली का पेड़। भारतीय स्वतंत्रता आन्दोल में एक साथ कई कुर्बानी देने वालों वीर सपूतों के स्थली में एक बावनी इमली भी है।। इस इमली के पेड़ पर 28 अप्रैल 1858 को 52 क्रांतिकारियों को एक साथ अंग्रेजों फांसी पर लटका दिया था। यह पेड़ गवाह है अंग्रेजों की नाक में दम करने वाले क्रांतिकारी जोधा सिंह अटैया और उनके 51 साथियों की शहादत का।



भारत मे ब्रिटिश शासन के विरुद्ध जब बैरकपुर की छावनी में मंगल पांडेय ने स्वंतत्रता संग्राम के विगुल फूंका तो पूरे देश मे फैल गया। बिहार झांसी मेरठ जहां प्रमुख रहें वहीं फतेहपुर भी अग्रणी रहा। यहां पर क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध ऐसा गुरिल्ला युद्ध छेड़ा की अंग्रेजों के नाक में दम कर दिया। फतेहपुर के विद्रोह को शांत कराने के लिए ब्रिटिश सेना के सेनाध्यक्ष कैम्पबिल को फतेहपुर आना पड़ा था।


Body:ठाकुर जोधा सिंह अटैया, बिंदकी के अटैया रसकपूर गांव के निवासी थे। ये झांसी के8बनी लक्ष्मीबाई से प्रभावित होकर अंग्रेजी सेना के विरुद्ध विद्रोह छेड़ दिया। जोधा सिंह ने दरियाव सिंह और शिवदयाल सिंह के साथ मिलकर गुरिल्ला युद्ध की शुरुआत करी और अंग्रेजों के नाक में दम कर दिया।

जोधा सिंह ने 27 अक्टूबर 1857 को महमूदपुर गांव में एक दरोगा व एक अंग्रेज सिपाही की हत्या कर दी। अंगेजो के खजाने लूटने समेत कई घटनाओं के अंजाम दिया। साहसिक जोधा सिंह को सरकारी कार्यालय लूटने और जलाए जाने के कारण अंग्रेजों ने डकैत घोषित कर दिया।

जोधा सिंह 28 अप्रैल 1858 को अपने इक्यावन साथियों के साथ खजुआ लौट रहे थे तभी मुखबिर की सूचना पर अंगेजो ने बन्दी बना लिया और सभी को इस इमली के पेड़ पर एक साथ फांसी दे दी।
कई दिनों तक क्रांतिकारियों के शव पेड़ से ही झूलते रहे। चार मई की रात को महाराज सिंह अपनी सेना के साथ बावनी इमली आए और शवों के कंकाल को उतार कर शिवराजपुर के गंगाघाट अंत्येष्टि की।

आज बावनी इमली शहीद स्मारक देश के लोगो के लिए पूज्यनीय है। यह याद दिलाता है कि कितने संघर्ष के बाद आजादी मिल। हर साल 28 अप्रैल को यहां शहीदों के सम्मान में मेला लगता है।


Conclusion:स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में उचित सम्मान नही मिला


स्वतंत्रता संग्राम में फतेहपुर जनपद के सपूतों की दास्तान इतिहास में उचित स्थान पाया। जिसका दर्द यहां के लोगों में है। समाज सेवी चन्द्रभान सिंह ने बताया कि फतेहपुर के सपूतो ने अंग्रेजों के नाक में दम कर दिया था। विद्रोह की अग्नि इतनी तेज थी कि इसे दबाने के लिए ब्रिटिश सेना अध्यक्ष को आना पड़ा था। आजादी के बाद भी बावनी इमली के शहीदों पर सरकार ने ध्यान नही दिया। 1970 में स्मारक बना लेकिन आज भी इस स्थान पर अपेक्षाकृत सम्मान सरकार के तरफ से नही मिला।


बाइट चन्द्रभान सिंह समाज सेवी एंव वरिष्ठ पत्रकार

अभिषेक सिंह फतेहपुर 7860904519
Last Updated : Apr 28, 2019, 4:47 PM IST
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