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फर्रुखाबाद : जिले में सरकारी अस्पतालों की संख्या के बराबर भी नहीं हैं डॉक्टर - फर्रूखाबाद न्यूज

यूपी के फर्रुखाबाद जनपद में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत बहुत खराब है. यहां जितनी संख्या सरकारी अस्पतालों की है, उतने डॉक्टर उपलब्ध नहीं हैं. अस्पताल में वेंटिलेटर की सुविधा न होने से मरीजों को निजी अस्पतालों, कानपुर या इटावा जाना पड़ता है.

डॉक्टरों की कमी से जूझते अस्पताल और मरीज
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Published : Mar 12, 2019, 7:40 AM IST

फर्रुखाबाद : सरकार गरीबों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं देने के तमाम दावे करती है, इसके बावजूद जनपद में स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल नजर आती हैं. जिले में तैनात कुल डॉक्टरों की संख्या यहां मौजूद सरकारी अस्पतालों के बराबर भी नहीं हैं. वहीं अस्पताल में वेंटिलेटर और अन्य सुविधाएं न होने से मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ता है.

डॉक्टरों की कमी से जूझते अस्पताल और मरीज.

जिले में कुल 40 सरकारी अस्पताल हैं, लेकिन डॉक्टर केवल 33 ही तैनात हैं. इनमें से लोहिया पुरुष अस्पताल में 13 और महिला अस्पताल में 4 डॉक्टर ही हैं. यदि एक डॉक्टर छुट्टी पर चला जाए, तो उसके स्थान पर काम करने के लिए दूसरा डॉक्टर भी नहीं है. इससे ओपीडी में डॉक्टर के पास मरीजों की भीड़ लगी रहती है. जनपद में 10 सीएचसी, 28 पीएचसी, राम मनोहर लोहिया अस्पताल और सिविल अस्पताल लिंजीगंज में है. इसमें लोहिया पुरुष और महिला अस्पताल में 17 डॉक्टर हैं. बाकी बचे हुए सीएचसी, पीएचसी और सिविल अस्पताल में मरीजों को बेहतर इलाज देने का प्रयास कर रहे हैं.

लोहिया अस्पताल में प्रतिदिन औसतन एक हजार से अधिक मरीज ओपीडी में पहुंचते हैं. किसी-किसी दिन तो ओपीडी में दो ही डॉक्टर बैठे नजर आते हैं. वहीं जिला अस्पताल में वेंटिलेटर की सुविधाएं न होने के चलते मरीजों को कानपुर, इटावा समेत अन्य जनपदों में इलाज के लिए भटकना पड़ता है. इसके अलावा यहां सहायक स्टाफ, नर्सों और टेक्नीशियन की भी भारी कमी है. इस समय जिले में 108 डॉक्टरों के पद खाली हैं.

लोहिया अस्पताल को 32 डॉक्टरों की जरूरत है, जबकि तैनात सिर्फ 13 हैं. लोहिया महिला अस्पताल में भी सीएमएस डॉ. कैलाश समेत चार डॉक्टर हैं. इस तरह कुल 17 डॉक्टर लोहिया अस्पताल में तैनात हैं. लोहिया महिला अस्पताल में दो सर्जन हैं. कभी डॉक्टरों की ड्यूटी इधर-उधर लग जाने से भी मरीजों को परेशानी उठानी पड़ती है. सीएमओ अरुण कुमार ने बताया कि लगातार शासन से डॉक्टरों की तैनाती की मांग की जा रही है. जैसे ही डॉक्टरों की जनपद में तैनाती होगी, उन्हें अस्पतालों में भेजा जाएगा.

फर्रुखाबाद : सरकार गरीबों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं देने के तमाम दावे करती है, इसके बावजूद जनपद में स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल नजर आती हैं. जिले में तैनात कुल डॉक्टरों की संख्या यहां मौजूद सरकारी अस्पतालों के बराबर भी नहीं हैं. वहीं अस्पताल में वेंटिलेटर और अन्य सुविधाएं न होने से मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ता है.

डॉक्टरों की कमी से जूझते अस्पताल और मरीज.

जिले में कुल 40 सरकारी अस्पताल हैं, लेकिन डॉक्टर केवल 33 ही तैनात हैं. इनमें से लोहिया पुरुष अस्पताल में 13 और महिला अस्पताल में 4 डॉक्टर ही हैं. यदि एक डॉक्टर छुट्टी पर चला जाए, तो उसके स्थान पर काम करने के लिए दूसरा डॉक्टर भी नहीं है. इससे ओपीडी में डॉक्टर के पास मरीजों की भीड़ लगी रहती है. जनपद में 10 सीएचसी, 28 पीएचसी, राम मनोहर लोहिया अस्पताल और सिविल अस्पताल लिंजीगंज में है. इसमें लोहिया पुरुष और महिला अस्पताल में 17 डॉक्टर हैं. बाकी बचे हुए सीएचसी, पीएचसी और सिविल अस्पताल में मरीजों को बेहतर इलाज देने का प्रयास कर रहे हैं.

लोहिया अस्पताल में प्रतिदिन औसतन एक हजार से अधिक मरीज ओपीडी में पहुंचते हैं. किसी-किसी दिन तो ओपीडी में दो ही डॉक्टर बैठे नजर आते हैं. वहीं जिला अस्पताल में वेंटिलेटर की सुविधाएं न होने के चलते मरीजों को कानपुर, इटावा समेत अन्य जनपदों में इलाज के लिए भटकना पड़ता है. इसके अलावा यहां सहायक स्टाफ, नर्सों और टेक्नीशियन की भी भारी कमी है. इस समय जिले में 108 डॉक्टरों के पद खाली हैं.

लोहिया अस्पताल को 32 डॉक्टरों की जरूरत है, जबकि तैनात सिर्फ 13 हैं. लोहिया महिला अस्पताल में भी सीएमएस डॉ. कैलाश समेत चार डॉक्टर हैं. इस तरह कुल 17 डॉक्टर लोहिया अस्पताल में तैनात हैं. लोहिया महिला अस्पताल में दो सर्जन हैं. कभी डॉक्टरों की ड्यूटी इधर-उधर लग जाने से भी मरीजों को परेशानी उठानी पड़ती है. सीएमओ अरुण कुमार ने बताया कि लगातार शासन से डॉक्टरों की तैनाती की मांग की जा रही है. जैसे ही डॉक्टरों की जनपद में तैनाती होगी, उन्हें अस्पतालों में भेजा जाएगा.

Intro:एंकर- यूपी के फर्रुखाबाद जनपद में स्वास्थ सेवाओं की हालत बेहद नाजुक है, यहां जितनी संख्या सरकारी अस्पतालों की है, उतनी तो डॉक्टर तक नहीं है. अस्पताल में वेंटिलेटर की सुविधा न होने से मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों या कानपुरऔर इटावा की ओर रुख करना पड़ता है.



Body:वीओ- जिले में कुल 40 सरकारी अस्पताल हैं, लेकिन डॉक्टर 33 ही तैनात हैं. इसमें से लोहिया पुरुष अस्पताल में 13 और महिला अस्पताल मी 4 डॉक्टर है यदि एक डॉक्टर छुट्टी पर चला जाए तो उसके स्थान पर काम करने के लिए दूसरा डॉक्टर नहीं है. इससे ओपीडी में डॉक्टर के पास मरीजों की भीड़ लगी रहती है. जनपद में 10 सीएचसी, 28 पीएचसी, राम मनोहर लोहिया अस्पताल व सिविल अस्पताल लिंजीगंज में है. इसमें लोहिया पुरुष और महिला अस्पताल में 17 डॉक्टर हैं. बाकी बचे हुए सीएचसी पीएचसी सिविल अस्पताल में मरीजों को बेहतर इलाज देने का प्रयास कर रहे हैं. जबकि जनपद में 137 डॉक्टरों के पद है. लोहिया अस्पताल में प्रतिदिन औसतन 1000 से अधिक मरीज ओपीडी में पहुंचते हैं. किसी- किसी दिन तो ओपीडी में दो ही डॉक्टर बैठे नजर आते हैं. वही जिला अस्पताल में वेंटिलेटर की सुविधाएं ना होने के चलते मरीजों को कानपुर, इटावा समेत अन्य जनपदों में इलाज के लिए भटकना पड़ता है.इसके अलावा यहां सहायक स्टाफ, नर्सों और टेक्नीशियन की भी भारी कमी है. डॉक्टर भी भीड़ को देखते हुए मरीज की पूरी बात ही नहीं सुनते और पर्चे पर दवा लिखना शुरू कर देते हैं. यहां आस-पास के जिलों के भी मरीज आते हैं. हालात यह है कि जनपद में 108 डॉक्टरों की कमी है. लोहिया अस्पताल को 32 डॉक्टरों की जरूरत है,जबकि तैनात सिर्फ 13 है.लोहिया महिला अस्पताल में भी सीएमएस डॉ कैलाश समेत चार डॉक्टर हैं. इस तरह कुल 17 डॉक्टर लोहिया अस्पताल में तैनात हैं. ऐसे में स्वास्थ्य योजनाओं का अंदाजा लगाना आसान है. किसी भी मरीज का ऑपरेशन करने के लिए एनेस्थीसिया चिकित्सक सबसे अहम कड़ी होता है. जिले में महज एक एनेस्थीसिया चिकित्सक लोहिया अस्पताल में तैनात है. जबकि महज लोहिया अस्पताल में एनेस्थीसिया चिकित्सक के दो पद हैं. इसके अलावा जनपद में सर्जन के नाम पर सिर्फ एक ही डॉक्टर गौरव मिश्रा की तैनाती राम मनोहर लोहिया अस्पताल में है. अन्य किसी अस्पताल में सर्जन नहीं है.



Conclusion:विओ- हालांकि लोहिया महिला अस्पताल में 2 महिला सर्जन जरूर मौजूद है.इसका भगवान ही मालिक है. डॉक्टरों की ड्यूटी इधर-उधर लगने से भी मरीजों को समस्या का सामना करना पड़ता है. प्रत्येक सोमवार को लोहिया अस्पताल के 3 डॉक्टरों की ड्यूटी दिव्यांग प्रमाण पत्र बनाने के लिए लगाई जाती है.इससे मरीजों को भटकना पड़ता है. इसके अलावा पोस्टमार्टम ड्यूटी के समय भी लोगों को समस्या होती है.सीएमओ अरुण कुमार के अनुसार, डॉक्टरों की लगातार शासन से मांग की जा रही है. जैसे ही डॉक्टरों की जनपद में तैनाती होगी. उन्हें अस्पतालों में भेजा जाएगा.
बाइट- अभय, मरीज
बाइट- अरुण कुमार,सीएमओ
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