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170 सालों से कालीबाड़ी में बंगाली तरीके से मनाई जा रही दुर्गा पूजा, जानिए इतिहास - कालीबाड़ी

फर्रुखाबाद जिले में स्थित कालीबाड़ी में बंगाली तरीके से होने वाली दुर्गा पूजा की शुरुआत हो चुकी है. जिले में बंगाली समुदाय नहीं रहता है फिर भी यहां बंगाली तरीके से दुर्गा पूजा होती है. आखिर इसका इतिहास क्या है जानने के लिए पढ़िए ये स्पेशल रिपोर्ट..

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Published : Oct 2, 2022, 8:45 PM IST

फर्रुखाबादः जिले में 2 अक्टूबर से फतेहगढ़ कोतवाली के पास स्थित कालीबाड़ी में बंगाली तरीके से होने वाली दुर्गा पूजा की शुरुआत हुई. कालीबाड़ी के शिलान्यास वाले पत्थर के मुताबिक इसकी स्थापना 1849 ईसवी में हुई थी और पिछले 170 सालों से चली आ रही है, जबकि जिले में बंगाली समुदाय की आबादी न के बराबर है. स्थानीय लोगों के संरक्षण और सहयोग से यह सांस्कृतिक विरासत लगातार कायम है.

कालीबाड़ी में दुर्गा पूजा

बता दें कि बांग्ला दुर्गा पूजा और उत्तर भारतीय नवरात्र में कई बुनियादी अंतर हैं. उत्तर भारत में नवरात्र 9 दिन आयोजित होते हैं और साल में दो बार मनाए जाते हैं, जबकि बंगला दुर्गा पूजा साल में एक बार षष्ठी की शाम से शुरू होकर दसवीं तक मनाई जाती है. नवरात्र में व्रत रखने पर जोर दिया जाता है, जबकि बंगला दुर्गा पूजा में तरह-तरह के पकवान बनाकर खाने की परंपरा है. कालीबाड़ी में भी भुने हुए दाल की खिचड़ी, गुड़ और टमाटर की चटनी, कच्चे केले और दूसरे कंदमूल से बनने वाली चच्चड़ी की सब्जी का भोग बनता और खिलाया जाता है. साथ ही शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम की परंपरा भी है.

कालीबाड़ी के सचिव अनिमेष मुखर्जी ने बताया कि 170 साल पहले उत्तर प्रदेश के इस छोटे से शहर में कालीबाड़ी की स्थापना किसने की इसका कोई लिखित रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है. हालांकि, उस में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन था और कंपनी का संबंध इससे पहले बंगाल से जुड़ा था. इसी सिलसिले में यहां किसी ने कालीबाड़ी की स्थापना की. मंदिर में स्थापित मां काली की मूर्ति दक्षिणेश्वर शैली की है, जो 1850 के आसपास बंगाल में बना करती थी. लंबे समय तक पूरा मंदिर परिसर कच्चा था. 1960 के दशक में भारतीय सेना में डॉक्टर स्वर्गीय केसी मजूमदार ने वर्तमान में इसका निर्माण करवाने का जिम्मा उठाया.

इसके बाद स्वर्गीय अनिल कुमार मुखर्जी, गोपाल चंद्र बोस, डॉ. डीके पाल आदि ने इस परंपरा को संभाले संभालने में अच्छा खासा योगदान दिया. एक समय पर यह यहां एक थिएटर और बाहर से आए कलाकारों के संगीत कार्यक्रम भी आयोजित हुआ करते थे, जो अब छोटे स्तर पर होते हैं. उन्होंने बताया कि स्वर्गीय सीपी अग्रवाल स्वर्गीय ब्रह्मदत्त द्विवेदी जैसे प्रभावशाली लोगों ने फर्रुखाबाद शहर के अंदर इस अलग संस्कृति परंपरा को बनाए रखने में हर प्रकार का सहयोग किया है. वर्तमान में मिथिलेश अग्रवाल, डॉ. हरीश द्विवेदी मनोज अग्रवाल, केशवी स्टैटिक्स के आकाश शुक्ला आदि के सहयोग से ही यह कार्यक्रम सफलतापूर्वक आयोजित हो रहा है. फर्रुखाबाद के लोग यहां पर आकर इस बंगला सांस्कृतिक परंपरा का आनंद ले सकते हैं.

पढ़ेंः महिलाओं की अनोखी भक्ति, तूलिका के जरिए मातृ शक्ति में भर रही रंग

फर्रुखाबादः जिले में 2 अक्टूबर से फतेहगढ़ कोतवाली के पास स्थित कालीबाड़ी में बंगाली तरीके से होने वाली दुर्गा पूजा की शुरुआत हुई. कालीबाड़ी के शिलान्यास वाले पत्थर के मुताबिक इसकी स्थापना 1849 ईसवी में हुई थी और पिछले 170 सालों से चली आ रही है, जबकि जिले में बंगाली समुदाय की आबादी न के बराबर है. स्थानीय लोगों के संरक्षण और सहयोग से यह सांस्कृतिक विरासत लगातार कायम है.

कालीबाड़ी में दुर्गा पूजा

बता दें कि बांग्ला दुर्गा पूजा और उत्तर भारतीय नवरात्र में कई बुनियादी अंतर हैं. उत्तर भारत में नवरात्र 9 दिन आयोजित होते हैं और साल में दो बार मनाए जाते हैं, जबकि बंगला दुर्गा पूजा साल में एक बार षष्ठी की शाम से शुरू होकर दसवीं तक मनाई जाती है. नवरात्र में व्रत रखने पर जोर दिया जाता है, जबकि बंगला दुर्गा पूजा में तरह-तरह के पकवान बनाकर खाने की परंपरा है. कालीबाड़ी में भी भुने हुए दाल की खिचड़ी, गुड़ और टमाटर की चटनी, कच्चे केले और दूसरे कंदमूल से बनने वाली चच्चड़ी की सब्जी का भोग बनता और खिलाया जाता है. साथ ही शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम की परंपरा भी है.

कालीबाड़ी के सचिव अनिमेष मुखर्जी ने बताया कि 170 साल पहले उत्तर प्रदेश के इस छोटे से शहर में कालीबाड़ी की स्थापना किसने की इसका कोई लिखित रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है. हालांकि, उस में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन था और कंपनी का संबंध इससे पहले बंगाल से जुड़ा था. इसी सिलसिले में यहां किसी ने कालीबाड़ी की स्थापना की. मंदिर में स्थापित मां काली की मूर्ति दक्षिणेश्वर शैली की है, जो 1850 के आसपास बंगाल में बना करती थी. लंबे समय तक पूरा मंदिर परिसर कच्चा था. 1960 के दशक में भारतीय सेना में डॉक्टर स्वर्गीय केसी मजूमदार ने वर्तमान में इसका निर्माण करवाने का जिम्मा उठाया.

इसके बाद स्वर्गीय अनिल कुमार मुखर्जी, गोपाल चंद्र बोस, डॉ. डीके पाल आदि ने इस परंपरा को संभाले संभालने में अच्छा खासा योगदान दिया. एक समय पर यह यहां एक थिएटर और बाहर से आए कलाकारों के संगीत कार्यक्रम भी आयोजित हुआ करते थे, जो अब छोटे स्तर पर होते हैं. उन्होंने बताया कि स्वर्गीय सीपी अग्रवाल स्वर्गीय ब्रह्मदत्त द्विवेदी जैसे प्रभावशाली लोगों ने फर्रुखाबाद शहर के अंदर इस अलग संस्कृति परंपरा को बनाए रखने में हर प्रकार का सहयोग किया है. वर्तमान में मिथिलेश अग्रवाल, डॉ. हरीश द्विवेदी मनोज अग्रवाल, केशवी स्टैटिक्स के आकाश शुक्ला आदि के सहयोग से ही यह कार्यक्रम सफलतापूर्वक आयोजित हो रहा है. फर्रुखाबाद के लोग यहां पर आकर इस बंगला सांस्कृतिक परंपरा का आनंद ले सकते हैं.

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