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फर्रुखाबादः खत्म होने की कगार पर 300 वर्ष पुरानी ब्लॉक प्रिंटिंग की कला

यूपी के फर्रुखाबाद में ब्लॉक प्रिंटिंग की कला जितनी पुरानी है, उतनी ही विविधताओं से भरी हुई है. आज के आधुनिकीकरण के युग में जनपद की 300 वर्ष पुरानी ब्लॉक प्रिंटिंग की पारंपरिक कला खत्म होने की कगार पर है.

ब्लॉक प्रिंटिंग करते कारीगर.
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Published : Sep 29, 2019, 5:36 PM IST

Updated : Sep 30, 2019, 3:33 PM IST

फर्रुखाबादः ब्लॉक प्रिंटिंग कला के इस स्वरूप में कारीगर लकड़ी के बने खांचे का उपयोग कर कपड़े पर सुंदर डिजाइन बनाते हैं, लेकिन हाथ से तैयार होने वाली यह कला अब दम तोड़ती नजर आती है. इस कला के समाप्त होने के कगार पर पहुंचने के कई कारण हैं. उद्यमी संजय सिंह कहते हैं कि एक तरफ जहां शहर में बढ़ते प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने शहर में काम कर रही टेक्सटाइल इकाइयों को शहर से बाहर ले जाने के निर्देश दिए थे तो वहीं टेक्सटाइल उद्योग को प्रदूषण नियंत्रण करने के संबंध में बार-बार नोटिस मिले. इससे उद्यमी परेशान हैं.

देखें वीडियो.

आलू पर डिजाइन गोद कर होती थी छपाई
फर्रुखाबाद टेक्सटाइल्स पार्क प्रा. लिमिटेड के प्रबंध निदेशक रोहित गोयल कहते हैं कि प्रारम्भ में पहले आलू पर डिजाइन गोद कर प्राकृतिक रंगों में चादरों की छपाई होती थी, जो कि बाद में ब्लॉक प्रिंट में परिवर्तित हो गई. इसके बाद 70 के दशक से स्क्रिन प्रिंटिंग का काम भी शुरू हो गया, जो अब तक चल रहा है. पर्दों व बेड शीट की छपाई होती थी. रजाई की लिहाफ, कॉटन व सिल्क की साड़ियां यहां प्रिंट होती थीं, जिसकी सप्लाई पूरे भारत में की जाती थी.

विदेशों में होती है सप्लाई
उद्यमी विजय सिंह कहते हैं कि कई कारणों से धीरे-धीरे यहां के उद्यमी अन्य जगहों पर चले गए. वर्तमान में स्क्रिन प्रिंटिग से काम किया जा रहा है. कुछ 10 से 15 प्रतिशत उद्यमी ब्लॉक प्रिंटिग को अभी भी जिंदा रखते हुए काम कर रहे हैं. टेक्सटाइल की छोटी और बड़ी 200 इकाइयां हैं, जिनमें सरकार द्वारा पंजीकृत 108 इकाइयां हैं. हालांकि मंदी के कारण 40 प्रतिशत इकाइयां बंद हो चुकी हैं, जिनसे 20 हजार लोग जुड़े हुए हैं. यूरोपियन देशों में मुख्य रूप से इसकी सप्लाई है. श्रीलंका, दुबई, अफगानिस्तान, इरान, ईराक समेत पूरे भारत में सप्लाई है.

टेक्सटाइल पार्क की स्थापना
जिलाधिकारी मोनिका रानी ने बताया कि मिनिस्ट्री ऑफ टेक्सटाइल के द्वारा टेक्सटाइल पार्क की स्थापना कराई जा रही है. भूमि इत्यादि प्रदान की जा चुकी है. इससे एक तरफ टेक्सटाइल उद्योग को लाभ मिलेगा, तो दूसरी ओर टेक्सटाइल उद्योग को प्रदूषण नियंत्रण करने के संबंध में जो बार-बार नोटिस प्राप्त होती थी, उससे राहत मिलेगी.

फर्रुखाबादः ब्लॉक प्रिंटिंग कला के इस स्वरूप में कारीगर लकड़ी के बने खांचे का उपयोग कर कपड़े पर सुंदर डिजाइन बनाते हैं, लेकिन हाथ से तैयार होने वाली यह कला अब दम तोड़ती नजर आती है. इस कला के समाप्त होने के कगार पर पहुंचने के कई कारण हैं. उद्यमी संजय सिंह कहते हैं कि एक तरफ जहां शहर में बढ़ते प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने शहर में काम कर रही टेक्सटाइल इकाइयों को शहर से बाहर ले जाने के निर्देश दिए थे तो वहीं टेक्सटाइल उद्योग को प्रदूषण नियंत्रण करने के संबंध में बार-बार नोटिस मिले. इससे उद्यमी परेशान हैं.

देखें वीडियो.

आलू पर डिजाइन गोद कर होती थी छपाई
फर्रुखाबाद टेक्सटाइल्स पार्क प्रा. लिमिटेड के प्रबंध निदेशक रोहित गोयल कहते हैं कि प्रारम्भ में पहले आलू पर डिजाइन गोद कर प्राकृतिक रंगों में चादरों की छपाई होती थी, जो कि बाद में ब्लॉक प्रिंट में परिवर्तित हो गई. इसके बाद 70 के दशक से स्क्रिन प्रिंटिंग का काम भी शुरू हो गया, जो अब तक चल रहा है. पर्दों व बेड शीट की छपाई होती थी. रजाई की लिहाफ, कॉटन व सिल्क की साड़ियां यहां प्रिंट होती थीं, जिसकी सप्लाई पूरे भारत में की जाती थी.

विदेशों में होती है सप्लाई
उद्यमी विजय सिंह कहते हैं कि कई कारणों से धीरे-धीरे यहां के उद्यमी अन्य जगहों पर चले गए. वर्तमान में स्क्रिन प्रिंटिग से काम किया जा रहा है. कुछ 10 से 15 प्रतिशत उद्यमी ब्लॉक प्रिंटिग को अभी भी जिंदा रखते हुए काम कर रहे हैं. टेक्सटाइल की छोटी और बड़ी 200 इकाइयां हैं, जिनमें सरकार द्वारा पंजीकृत 108 इकाइयां हैं. हालांकि मंदी के कारण 40 प्रतिशत इकाइयां बंद हो चुकी हैं, जिनसे 20 हजार लोग जुड़े हुए हैं. यूरोपियन देशों में मुख्य रूप से इसकी सप्लाई है. श्रीलंका, दुबई, अफगानिस्तान, इरान, ईराक समेत पूरे भारत में सप्लाई है.

टेक्सटाइल पार्क की स्थापना
जिलाधिकारी मोनिका रानी ने बताया कि मिनिस्ट्री ऑफ टेक्सटाइल के द्वारा टेक्सटाइल पार्क की स्थापना कराई जा रही है. भूमि इत्यादि प्रदान की जा चुकी है. इससे एक तरफ टेक्सटाइल उद्योग को लाभ मिलेगा, तो दूसरी ओर टेक्सटाइल उद्योग को प्रदूषण नियंत्रण करने के संबंध में जो बार-बार नोटिस प्राप्त होती थी, उससे राहत मिलेगी.

Intro:
नोट- इस खबर के 5 विजुअल up_fbd_ 01_taxtile_vis_7205401 नाम से भेजे जा चुके हैं।।।
एंकर- यूपी के फर्रुखाबाद में ब्लाॅक प्रिंटिंग की कला जितनी पुरानी है उतनी ही विविधताओं से भरी हुई है. आज के आधुनिकीकरण के युग में जनपद की 300 वर्ष पुरानी ब्लाॅक प्रिंटिंग की पारंपरिक कला लुप्त होने की कगार पर है. इसी को बचाने के लिए फर्रूखाबाद में 200 करोड़ के निवेश से टेक्सटाइल पार्क बनाया जाएगा. माना जा रहा है कि इस पार्क के बन जाने से कपड़ा उद्योग को प्रोत्साहन मिलेगा और रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगें. इसके लिए 14 हेक्टेयर जमीन की भी व्यवस्था की गई है.
Body:वीओ- ब्लाॅक प्रिंटिंग कला के इस स्वरूप में कारीगर लकड़ी के बने खांचे का उपयोग कर कपड़े पर सुंदर डिजाइन बनाते हैं. मगर,हाथ से होने वाली कला के समाप्त होने के कगार पर पहुंचने के कई कारण हैं.एक तरफ जहां शहर में बढ़ते प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने काम कर रही टेक्सटाइल इकाइयों को शहर से बाहर ले जाने के निर्देश दिए थे. तो वहीं टैक्सटाइल उद्योग को प्रदूषण नियंत्रण करने के संबंध में बार-बार नोटिस प्राप्त होती थी.इससे उद्यमी परेशान हैं.
बाइट- संजय सिंह, उद्यमी
बाइट- विजय सिंह, उद्यमी
वीओ- केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने काम कर रही टेक्सटाइल इकाइयों को शहर से बाहर ले जाने के निर्देश दिए थे. जिसके तहत भारत सरकार के टेक्सटाइल मंत्रालय ने फर्रूखाबाद में टेक्सटाइल पार्क की स्थापना की स्वीकृति दी. अब इस पार्क को केन्द्र सरकार के सहयोग से राज्य सरकार द्वारा लगभग 200 करोड़ की लागत से विकसित किया जाएगा.यहां टेक्सटाइल की 104 इकाइयां चल रही हैं. इनमें से 80 इकाइयां टेक्सटाइल पार्क में शिफ्ट होने की स्थिति में हैं.
बाइट- रोहित ग्रोवर, फर्रुखाबाद टेक्सटाइल्स पार्क प्रा.लिमिटेड के प्रबंध निदेशक
वीओ- वहीं कटाई से लेकर सिलाई से लेकर डिजाइनिंग तक का सारा काम कारीगरों द्वारा किया जाता है. काॅटन फैब्स द्वारा तैयार किये गए कपड़े, रजाईयों की डिजाइन पूरी तरह से पारंपरिक हैं. इनकी खपत विदेशों तक में होती है.
बाइट- गौरव अग्रवाल, उद्यमी
बाइट- विशंभर शर्मा, कारीगर
बाइट- राकेश गुप्ता, कारीगर
Conclusion:वीओ- फर्रुखाबाद टेक्सटाइल्स पार्क प्रा.लिमिटेड के प्रबंध निदेशक रोहित गोयल कहते हैं कि प्रारम्भ में पहले आलू पर डिजाइन गोद कर प्राकृतिक रंगों में चादरों की छपाई होती थी. जो कि बाद में ब्लाॅक प्रिंट में परिवर्तित हो गया. इसके बाद 70 के दशक से स्क्रिन प्रिंटिंग का काम भी शुरू हो गया. जो अब तक चल रहा है.पर्दो व बेड शीट की छपाई होती थी. रजाई की लिहाफ, काॅटन व सिल्क की साड़ियां प्रिंट होकर पूरे भारत में सप्लाई जाती थी. हालांकि कई कारणों से धीरे-धीरे यहां के उद्यमी अन्य जगहों पर चले गए. वर्तमान में स्क्रिन प्रिंटिग से काम किया जा रहा है. कुछ दस से 15 प्रतिशत उद्यमी ब्लाॅक प्रिंटिग को अभी भी जिंदा रखते हुए काम कर रहे हैं. टैक्टसाइल की छोटी व 200 ईकाइयां है जो कि सरकार द्वारा पंजीकृत इकाईयां 108 हैं. हालांकि मंदी के कारण 40 प्रतिशत इकाईयां बंद चल रही हैं। जिनमें 20 हजार लोग जुड़े हुए हैं.यूरोपियन देशों में मुख्य रूप से सप्लाई है. श्रीलंका, दुबई, अफगानिस्तान,इरान,ईराक समेत पूरे भारत में सप्लाई है.
बाइट- रोहित गोयल,
वीओ- जिलाधिकारी मोनिका रानी ने बताया कि मिनिस्टी आफ टेक्सटाइल के द्वारा टेक्सटाइल पार्क की स्थापना कराई जा रही है. भूमि इत्यादि प्रदान की जा चुकी है। इससे दो लाभ होंगे. एक तरफ टेक्सटाइल उद्योग को लाभ मिलेगा तो दूसरी ओर टैक्सटाइल उद्योग को प्रदूषण नियंत्रण करने के संबंध में बार-बार नोटिस प्राप्त होती थी.इससे जो उद्यमी परेशान होते हैं तो उसका लाभ भी मिलेगा.
बाइट- मोनिका रानी, जिलाधिकारी

Last Updated : Sep 30, 2019, 3:33 PM IST
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