फर्रुखाबादः ब्लॉक प्रिंटिंग कला के इस स्वरूप में कारीगर लकड़ी के बने खांचे का उपयोग कर कपड़े पर सुंदर डिजाइन बनाते हैं, लेकिन हाथ से तैयार होने वाली यह कला अब दम तोड़ती नजर आती है. इस कला के समाप्त होने के कगार पर पहुंचने के कई कारण हैं. उद्यमी संजय सिंह कहते हैं कि एक तरफ जहां शहर में बढ़ते प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने शहर में काम कर रही टेक्सटाइल इकाइयों को शहर से बाहर ले जाने के निर्देश दिए थे तो वहीं टेक्सटाइल उद्योग को प्रदूषण नियंत्रण करने के संबंध में बार-बार नोटिस मिले. इससे उद्यमी परेशान हैं.
आलू पर डिजाइन गोद कर होती थी छपाई
फर्रुखाबाद टेक्सटाइल्स पार्क प्रा. लिमिटेड के प्रबंध निदेशक रोहित गोयल कहते हैं कि प्रारम्भ में पहले आलू पर डिजाइन गोद कर प्राकृतिक रंगों में चादरों की छपाई होती थी, जो कि बाद में ब्लॉक प्रिंट में परिवर्तित हो गई. इसके बाद 70 के दशक से स्क्रिन प्रिंटिंग का काम भी शुरू हो गया, जो अब तक चल रहा है. पर्दों व बेड शीट की छपाई होती थी. रजाई की लिहाफ, कॉटन व सिल्क की साड़ियां यहां प्रिंट होती थीं, जिसकी सप्लाई पूरे भारत में की जाती थी.
विदेशों में होती है सप्लाई
उद्यमी विजय सिंह कहते हैं कि कई कारणों से धीरे-धीरे यहां के उद्यमी अन्य जगहों पर चले गए. वर्तमान में स्क्रिन प्रिंटिग से काम किया जा रहा है. कुछ 10 से 15 प्रतिशत उद्यमी ब्लॉक प्रिंटिग को अभी भी जिंदा रखते हुए काम कर रहे हैं. टेक्सटाइल की छोटी और बड़ी 200 इकाइयां हैं, जिनमें सरकार द्वारा पंजीकृत 108 इकाइयां हैं. हालांकि मंदी के कारण 40 प्रतिशत इकाइयां बंद हो चुकी हैं, जिनसे 20 हजार लोग जुड़े हुए हैं. यूरोपियन देशों में मुख्य रूप से इसकी सप्लाई है. श्रीलंका, दुबई, अफगानिस्तान, इरान, ईराक समेत पूरे भारत में सप्लाई है.
टेक्सटाइल पार्क की स्थापना
जिलाधिकारी मोनिका रानी ने बताया कि मिनिस्ट्री ऑफ टेक्सटाइल के द्वारा टेक्सटाइल पार्क की स्थापना कराई जा रही है. भूमि इत्यादि प्रदान की जा चुकी है. इससे एक तरफ टेक्सटाइल उद्योग को लाभ मिलेगा, तो दूसरी ओर टेक्सटाइल उद्योग को प्रदूषण नियंत्रण करने के संबंध में जो बार-बार नोटिस प्राप्त होती थी, उससे राहत मिलेगी.