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शहीद भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद की इस गांव के लोगों ने की थी खातिरदारी, अनसुनी कहानी जानकर हो जाएंगे हैरान

एटा में 1857 की क्रांति के दौरान सूरमा बहादुर सह ने अंग्रेजों से लोहा लेते वक्त उनकी गर्दन पर तलवार से प्रहार किया था, लेकिन यह वीर जब तक सांस रही तब तक अपना घोड़ा दौड़ाते रहे और जब गांव में आकर घोड़ा रुका, तब ही प्राण निकले.

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1857 की क्रांति
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Published : Aug 16, 2022, 12:40 PM IST

Updated : Aug 16, 2022, 1:54 PM IST

एटाः जिले के धौलेश्वर मंदिर में शहीद भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद दो साल तक रहे थे. एटा के राव बिजेंद्र सिंह चौहान के पूर्वजों ने कई सालों तक इन क्रांतिकारियों खाना खिलाया था. साल 1857 के आजादी की लड़ाई का शंखनाद धौलेश्वर के इस शिव मंदिर से हुआ था, जहां क्रांतिकारियों की पहली बैठक हुई थी.

यूपी के एटा जिले के गांव धौलेश्वर का आजादी की लड़ाई में बड़ा योगदान रहा था. इनमें कई ऐसे हैं, जिनकी बहादुरी के चर्चे धौलेश्वर गांव के बुजुर्ग जब सुनाते हैं, तो हर किसी का खून उबाल लेने लगता है. इस गांव के सूरमां बहादुर सह के बारे में बताया जाता है कि अंग्रेजों से लोहा लेते वक्त उनकी गर्दन पर तलवार से प्रहार किया था, लेकिन यह वीर जब तक सांस रही तब तक अपना घोड़ा दौड़ाता रहा और जब गांव में आकर घोड़ा रुका, तब ही प्राण निकले. गांव धौलेश्वर शूरवीरों के इतिहास से भरा पड़ा है.

जानकारी देते स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के पिता साफा बांधे गिरीश सिंह चौहान

1857 की क्रांति में शहीद हुए गांव के कई वीरः गांव के बुर्जुगों के अनुसार, साल 1857 में जब स्वतंत्रता संग्राम शुरू हो चुका था. निधौली कलां क्षेत्र के छोटे से गांव धौलेश्वर में इस संग्राम की ऐसी अलख जगी कि गांव के गांव के हीरा सह, आशाराम सह, गंगाधर सह, कुंवर खुशहाल सह आदि आगे आ गए थे. अंग्रेजों की सैन्य शक्ति ज्यादा थी, जबकि धौलेश्वर की सेना में गिने-चुने ही क्रांतिकारी थे. अंग्रेजों से लड़ाई लड़ते हुए गांव के हीरा सह और बहादुर सह शहीद हो गए थे.

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राव बिजेंद्र सिंह चौहान के पूर्वज

ये भी पढ़ें- लखीमपुर खीरी की पुलिस ने पत्रकार को दिया थर्ड डिग्री

गांव के ब्रजराज सह बताते हैं कि उन्होंने अपने पुरखों से किस्से सुने हैं. आजादी की लड़ाई का शंखनाद धौलेश्वर के एक शिव मंदिर से हुआ था, जहां क्रांतिकारियों की पहली बैठक हुई. उस वक्त कर्नल नील अंग्रेजी सेना का नेतृत्व कर रहा था. एक दिन जब क्रांतिकारी एक ही जगह पर एकत्रित थे, तो मुखबिरों ने कर्नल को सूचना दे दी. कर्नल ने अपनी सेना के साथ आकर क्रांतिकारियों को घेर लिया. दोनों ओर से मुकाबला हुआ. इस दौरान क्रांतिकारी बहादुर सह की गर्दन पर तलवार से प्रहार हुआ, जिससे गर्दन काफी कट गई, लेकिन फिर भी वे अपना घोड़ा दौड़ाते रहे, यह घोड़ा भी इतना स्वामी भक्त था कि वह गांव आकर ही रुका और बहादुर सह वहीं, वीरगति को प्राप्त हो गए.

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राव बिजेंद्र सिंह चौहान के पूर्वज

अंग्रेजों के दमन का मुकाबलाः ब्रजराज बताते हैं कि यहां के चौहानों को स्वतंत्रता संग्राम में अपनी सक्रिय भूमिका का भारी मूल्य चुकाना पड़ा था. अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों और उनके परिजनों का भरपूर उत्पीड़न किया. यहां के लोगों ने अपनी अंतिम सांस तक विदेशी शत्रुओं से मुकाबला किया, कर्नल सीटन ने उस दौरान अपनी किताब में लिखा था, 'मैं शत्रुओं का सफाया कर एटा जिला मुख्यालय पर आ गया हूं.'

ये भी पढ़ें- भरभराकर गिर पड़ा ऐतिहासिक बड़े इमामबाड़े की बुर्जी, पर्यटकों के लिए बंद रहेगा भुलभुलैया

राव विजेंद्र सिंह चौहान बताते हैं कि, उनके बाबा के बाबा हिम्मत सिंह, हीरा सिंह, हरिश्चंद्र सिंह, छत्तर सिंह अंग्रेजों से युद्ध करते समय मारे गए. अंग्रेजों ने किला पर कब्जा करने के लिए उनको घेर लिया था. जिसके बाद सुबह से शाम तक युद्ध चला और राजा का परिवार और कई अंग्रेज मारे गए.

राजा के भाई ने बताया कि आज भी एटा बॉर्डर पर हाथरस जिले के गांव में उनका किला है, लेकिन सरकार की अनदेखी के कारण लोग उस पर धीरे-धीरे कब्जा कर रहे हैं और किले का अस्तित्व खत्म करते जा रहे हैं अब किले का अस्तित्व खतरे में है, वहीं, जिस गांव के लोगों ने आजादी की जंग में बढ़-चढ़कर भाग लिया था अब उस गांव की दुर्दशा देखी नहीं जाती., करीब 4 हजार की आबादी वाले इस गांव की गलियां टूटी पड़ी हैं. सड़कें बदहाल हैं.

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एटाः जिले के धौलेश्वर मंदिर में शहीद भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद दो साल तक रहे थे. एटा के राव बिजेंद्र सिंह चौहान के पूर्वजों ने कई सालों तक इन क्रांतिकारियों खाना खिलाया था. साल 1857 के आजादी की लड़ाई का शंखनाद धौलेश्वर के इस शिव मंदिर से हुआ था, जहां क्रांतिकारियों की पहली बैठक हुई थी.

यूपी के एटा जिले के गांव धौलेश्वर का आजादी की लड़ाई में बड़ा योगदान रहा था. इनमें कई ऐसे हैं, जिनकी बहादुरी के चर्चे धौलेश्वर गांव के बुजुर्ग जब सुनाते हैं, तो हर किसी का खून उबाल लेने लगता है. इस गांव के सूरमां बहादुर सह के बारे में बताया जाता है कि अंग्रेजों से लोहा लेते वक्त उनकी गर्दन पर तलवार से प्रहार किया था, लेकिन यह वीर जब तक सांस रही तब तक अपना घोड़ा दौड़ाता रहा और जब गांव में आकर घोड़ा रुका, तब ही प्राण निकले. गांव धौलेश्वर शूरवीरों के इतिहास से भरा पड़ा है.

जानकारी देते स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के पिता साफा बांधे गिरीश सिंह चौहान

1857 की क्रांति में शहीद हुए गांव के कई वीरः गांव के बुर्जुगों के अनुसार, साल 1857 में जब स्वतंत्रता संग्राम शुरू हो चुका था. निधौली कलां क्षेत्र के छोटे से गांव धौलेश्वर में इस संग्राम की ऐसी अलख जगी कि गांव के गांव के हीरा सह, आशाराम सह, गंगाधर सह, कुंवर खुशहाल सह आदि आगे आ गए थे. अंग्रेजों की सैन्य शक्ति ज्यादा थी, जबकि धौलेश्वर की सेना में गिने-चुने ही क्रांतिकारी थे. अंग्रेजों से लड़ाई लड़ते हुए गांव के हीरा सह और बहादुर सह शहीद हो गए थे.

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राव बिजेंद्र सिंह चौहान के पूर्वज

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गांव के ब्रजराज सह बताते हैं कि उन्होंने अपने पुरखों से किस्से सुने हैं. आजादी की लड़ाई का शंखनाद धौलेश्वर के एक शिव मंदिर से हुआ था, जहां क्रांतिकारियों की पहली बैठक हुई. उस वक्त कर्नल नील अंग्रेजी सेना का नेतृत्व कर रहा था. एक दिन जब क्रांतिकारी एक ही जगह पर एकत्रित थे, तो मुखबिरों ने कर्नल को सूचना दे दी. कर्नल ने अपनी सेना के साथ आकर क्रांतिकारियों को घेर लिया. दोनों ओर से मुकाबला हुआ. इस दौरान क्रांतिकारी बहादुर सह की गर्दन पर तलवार से प्रहार हुआ, जिससे गर्दन काफी कट गई, लेकिन फिर भी वे अपना घोड़ा दौड़ाते रहे, यह घोड़ा भी इतना स्वामी भक्त था कि वह गांव आकर ही रुका और बहादुर सह वहीं, वीरगति को प्राप्त हो गए.

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राव बिजेंद्र सिंह चौहान के पूर्वज

अंग्रेजों के दमन का मुकाबलाः ब्रजराज बताते हैं कि यहां के चौहानों को स्वतंत्रता संग्राम में अपनी सक्रिय भूमिका का भारी मूल्य चुकाना पड़ा था. अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों और उनके परिजनों का भरपूर उत्पीड़न किया. यहां के लोगों ने अपनी अंतिम सांस तक विदेशी शत्रुओं से मुकाबला किया, कर्नल सीटन ने उस दौरान अपनी किताब में लिखा था, 'मैं शत्रुओं का सफाया कर एटा जिला मुख्यालय पर आ गया हूं.'

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राव विजेंद्र सिंह चौहान बताते हैं कि, उनके बाबा के बाबा हिम्मत सिंह, हीरा सिंह, हरिश्चंद्र सिंह, छत्तर सिंह अंग्रेजों से युद्ध करते समय मारे गए. अंग्रेजों ने किला पर कब्जा करने के लिए उनको घेर लिया था. जिसके बाद सुबह से शाम तक युद्ध चला और राजा का परिवार और कई अंग्रेज मारे गए.

राजा के भाई ने बताया कि आज भी एटा बॉर्डर पर हाथरस जिले के गांव में उनका किला है, लेकिन सरकार की अनदेखी के कारण लोग उस पर धीरे-धीरे कब्जा कर रहे हैं और किले का अस्तित्व खत्म करते जा रहे हैं अब किले का अस्तित्व खतरे में है, वहीं, जिस गांव के लोगों ने आजादी की जंग में बढ़-चढ़कर भाग लिया था अब उस गांव की दुर्दशा देखी नहीं जाती., करीब 4 हजार की आबादी वाले इस गांव की गलियां टूटी पड़ी हैं. सड़कें बदहाल हैं.

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Last Updated : Aug 16, 2022, 1:54 PM IST
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